पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा है कि यूपीएससी के पास ना तो अधिकार क्षेत्र है और ना ही उसमें किसी राज्य के डीजीपी पर विचार करने और नियुक्त करने की विशेषज्ञता है. सरकार ने कहा है कि यह भारतीय संघीय शासन प्रणाली के अनुरूप नहीं है. ये अर्जी ममता बनर्जी सरकार द्वारा 1986 बैच के एक आईपीएस अधिकारी को राज्य के कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नामित करने के एक दिन बाद दाखिल की गई है, जबकि नए डीजीपी के चयन को लेकर राज्य और यूपीएससी के बीच खींचतान चल रही है. राज्य सरकार के अनुसार, यूपीएससी ने पद के लिए सुझाए गए नामों की बंगाल सरकार की सूची में कई खामियां निकाल दी है. सरकार ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र में समन्वय से काम करती हैं. लेकिन उसी समय वो एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं.
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वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने बुधवार को सीजेआई एनवी रमना से जल्द सुनवाई की मांग की है. लूथरा ने पीठ को बताया कि राज्य में एक नियमित डीजीपी नहीं है और शीर्ष अदालत ने एक कार्यवाहक पुलिस प्रमुख की नियुक्ति पर रोक लगाई है. अपने आवेदन के माध्यम से राज्य ने शीर्ष अदालत से 2018 में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे द्वारा दायर एक याचिका को अंतिम रूप देने के लिए अनुरोध किया है, जिसमें पुलिस सुधारों पर 1996 के प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दूर करने के लिए राज्यों द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. सितंबर 2006 में दिए गए इस फैसले ने राज्यों के डीजीपी के चयन और न्यूनतम कार्यकाल से संबंधित विशिष्ट निर्देश जारी किए थे. इसके अनुसार, राज्य के डीजीपी का चयन राज्य द्वारा और यूपीएससी द्वारा उस रैंक पर पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध विभाग के तीन वरिष्ठतम अधिकारियों में से किया जाएगा.
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