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पत्‍नी कमाऊ, तो भी गुजारे भत्‍ते की हकदार, हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

कलकत्‍ता हाई कोर्ट ने कहा कि तलाक के बाद महिला का खर्च उठाना उसके पूर्व पति का सामाजिक, नैतिक व कानूनी दायित्व है. इससे बचा नहीं जा सकता. अगर पुरुष पूरी तरह से स्‍वस्‍थ है, तो फिर वह काम कर गुजारा भत्‍ता क्‍यों नहीं दे सकता?

पत्‍नी कमाऊ, तो भी गुजारे भत्‍ते की हकदार, हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
कलकत्‍ता हाई कोर्ट का अहम फैसला, बेरोजगार पति को भी देना होगा पूर्व पत्‍नी को भरण-पोषण का खर्च
  • अदालत ने अहम फैसले में कहा कि पूर्व पति बेरोजगार होने के बावजूद भरण-पोषण का खर्च उठाने से नहीं बच सकता है.
  • फैमिली कोर्ट ने पति की बेरोजगारी को देखते हुए भरण-पोषण देने से इनकार किया था, लेकिन हाई कोर्ट ने फैसला पलटा.
  • हाई कोर्ट ने कहा, यदि पुरुष पूरी तरह स्वस्थ और सक्षम है तो बेरोजगारी उसकी इच्छा से चुना गया विकल्प माना जाएगा.
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कोलकाता:

कई पुरुष पत्‍नी से तलाक लेते समय यह दलील देते हैं कि वह बेरोजगार हैं और पत्‍नी कमाती है, इसलिए भरण-पोषण का खर्च नहीं उठा सकते है. लेकिन कलकत्‍ता हाई कोर्ट ने अपने अहम फैसले में साफ कर दिया है कि बेरोजगार पूर्व पति पत्‍नी के भरण-पोषण का खर्च उठाने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है. फिर चाहे महिला नौकरी ही क्‍यों न करती हो. न्यायमूर्ति अजय कुमार मुखोपाध्याय की पीठ ने ऐसे मामले में यह निर्णय दिया है, जहां महिला 12,000 रुपये के मासिक वेतन पर काम करती है और उसका पूर्व पति बेरोजगार है. 

खुद बेरोजगार, फिर पत्‍नी को कहां से दे खर्चा?

कोलकाता फैमिली कोर्ट ने पूर्व पति की आर्थिक स्थिति देखते हुए उसके पक्ष में फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा था कि पति बेरोजगार है, वह अपना खर्च उठाने की हालत में नहीं है. वह इस समय किसी दूसरे पर निर्भर होगा. ऐसे में वह पूर्व पत्‍नी का खर्च कैसे उठा सकता है? वह पत्‍नी को देने के लिए पैसे कहां से लाएगा? इन्‍हीं कुछ सवालों को उठाते हुए फैमिली कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि शख्‍स अपनी पूर्व पत्‍नी को भरण-पोषण का खर्च न दे. लेकिन महिला ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई और कलकत्‍ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.   

कोई सक्षम पुरुष अगर बेरोजगार बना रहता है, तो...! 

कलकत्‍ता हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को सिरे से खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि तलाक के बाद महिला का खर्च उठाना उसके पूर्व पति का सामाजिक, नैतिक व कानूनी दायित्व है. इससे बचा नहीं जा सकता. अगर पुरुष पूरी तरह से स्‍वस्‍थ है, तो फिर वह काम क्‍यों नहीं कर रहा है? किसी ने उसे काम करने से रोका नहीं है, फिर वह बेरोजगार क्‍यों बने रहना चाहता है? कोई सक्षम पुरुष अगर बेरोजगार बना रहता है, तो यह इच्छा से लिया गया निर्णय है. शख्‍स को काम करना चाहिए और अपनी जिम्‍मेदारियों को उठाना चाहिए.  

इस कपल ने साल 2012 में कोर्ट मैरिज की थी. यह एक लव मैरिज थी. सामाजिक विवाह नहीं होने के कारण ससुरालवालों ने महिला को स्वीकार नहीं किया था. ऐसे में पति-पत्‍नी में झगड़े होने लगे. हालात इतने खराब हो गए कि पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक का मामला दायर कर दिया. इसके बाद महिला ने खर्च के लिए मासिक 10 हजार रुपये की मांग की थी. इस पर पति ने खुद को बेरोजगार बताया. हाई कोर्ट ने पूरे मामले को बेहद बारीकी से देखा और फैसला किया कि लड़का कमा सकता है, लेकिन बावजूद काम नहीं करता है. ऐसे में उसे पूर्व पत्‍नी को खर्चा देना होगा.  

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