
- सुप्रीम कोर्ट ने हिमालयी क्षेत्र को आपदाओं के गंभीर खतरे में बताया और आपदाओं को विशेष रूप से हिंसक करार दिया.
- हिमाचल प्रदेश की पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की गई.
- हिमाचल के ग्लेशियर का करीब पांचवां हिस्सा पिघल चुका है, जिससे नदियों के प्रवाह प्रभावित हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हिमालय में आने वाली आपदाओं के मद्देनजर एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूरा हिमालयी क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के गंभीर खतरे में है और इस साल आपदाएं विशेष तौर से 'हिंसक' रही हैं. यह टिप्पणी जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की.
'पूरा हिमालयी क्षेत्र प्रभावित'
पीठ ने कहा कि समस्या सिर्फ हिमाचल प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरा हिमालयी क्षेत्र इससे प्रभावित हो रहा है. जस्टिस मेहता ने सुनवाई के दौरान यह भी उल्लेख किया कि जब अदालत में इस मामले की सुनवाई चल रही थी, उसी समय प्रदेश में एक और भयावह प्राकृतिक घटना घटी. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में अपना फैसला 23 सितंबर को सुनाएगा. सुनवाई में न्याय मित्र, वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि यह मामला बहुत बड़ा है और इसके कई पहलुओं की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जानी चाहिए.
वहीं हिमाचल राज्य सरकार की रिपोर्ट मे बताया गया है कि ग्लेशियर का 1/5 यानी पांचवा हिस्सा गायब हो गया है. इससे भी नदियों की परवाह प्रणालियां प्रभावित हुई हैं - साथ ही जलवायु परिवर्तन का भी प्रदेश में पहाड़ों की सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट ने दी थी चेतावनी
इससे पहले, पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि यदि मौजूदा हालात पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो एक दिन हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से चार हफ्ते के अंदर रिपोर्ट तलब की थी. इसमें सरकार को अब तक उठाए गए कदमों और भविष्य की योजनाओं का ब्यौरा देने को कहा गया था. अपने जवाब में राज्य सरकार को बताना था कि उसने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं और भविष्य को लेकर क्या योजना है. कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक राज्य सरकार रिपोर्ट दाखिल भी कर चुकी है.
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