
दिल्ली के शाहदरा में गुरुद्वारे पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के दावे का मामला सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. जस्टिस संजय करोल की अध्यक्षता वाली बेंच मे जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आप जिस जगह पर दावे की बात कर रहे हैं, वहां पहले से गुरुद्वारा है, वो भी आजादी से पहले का. आपको खुद ही उस दावे को छोड़ देना चाहिए.
याचिकाकर्ता कि ओर से वरिष्ठ वकील संजय घोष ने तर्क देते हुए कहा कि मेरे दावे पर निचली अदालतों ने माना है कि वहां मस्जिद थी, हालांकि अब वहां एक तरह का गुरुद्वारा है. इस पर जस्टिस शर्मा ने कहा कि किसी तरह का गुरुद्वारा नहीं बल्कि उस गुरुद्वारे में लोग पूजा पाठ करते हैं. फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. इसी के साथ अदालत ने शाहदरा में एक संपत्ति पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के दावे को 'वक्फ संपत्ति' के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि उस स्थान पर एक गुरुद्वारा मौजूद है. अदालत वक्फ बोर्ड द्वारा 2010 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा थी, जिसके तहत संपत्ति पर दावा करने वाले वक्फ बोर्ड के मुकदमे को खारिज कर दिया गया था. यह विवाद 1980 के दशक का है, जब दिल्ली वक्फ बोर्ड ने हीरा सिंह (अब मृतक) के खिलाफ शाहदरा के एक गांव में एक संपत्ति पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया था.
इसने दावा किया कि संपत्ति एक वक्फ संपत्ति थी और अनादि काल से इसका उपयोग किया जा रहा था. प्रतिवादी ने इस मुकदमे को समय-सीमा समाप्त बताते हुए चुनौती दी और दावा किया कि संपत्ति उसके मालिक-मोहम्मद अहसान द्वारा उसे बेची गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि संपत्ति का इस्तेमाल गुरुद्वारा के रूप में किया जा रहा था, जिसका प्रबंधन गुरुद्वारा प्रबंध समिति द्वारा किया जाता है. बोर्ड द्वारा दायर दो पहले के मुकदमों को 23.1.1970 और 22.8.1978 को वापस ले लिया गया था. ट्रायल कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया और मुकदमे को खारिज कर दिया.
प्रथम अपीलीय अदालत ने 1989 में अपने निष्कर्षों का समर्थन किया. जब प्रतिवादी ने हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील की, तो मुकदमा खारिज कर दिया गया और कहा कि बोर्ड यह साबित करने में विफल रहा कि संपत्ति एक वक्फ संपत्ति है.
हाईकोर्ट ने कहा कि न तो वक्फ संपत्ति के रूप में अनादि काल से मुकदमे की संपत्ति के स्थायी समर्पण/उपयोग को साबित किया गया है और न ही दस्तावेजी साक्ष्य उसकी सहायता करते हैं. प्रतिवादी ने स्वीकार किया कि उसका 1947-48 से इस संपत्ति पर कब्जा है.इस आदेश के खिलाफ बोर्ड ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
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