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This Article is From Apr 25, 2023

"ये मामला इतना आसान भी नहीं जितना दिखता है...", समलैंगिक शादी मामले की सुनवाई के दौरान SC 

CJI ने कहा कि एक समाधान कैसे तैयार किया जाए. इसे लेकर बहुत सोच-विचार किया जाना है. एक बार जब हम विशेष विवाहों को वैध कर देते हैं तो यह एक पैंडोरा बॉक्स भी खोल सकता है.

समलैंगिक शादी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर हुई सुनवाई

नई दिल्ली:

समलैंगिक शादी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भी सुनवाई की. सुनवाई के दौरान पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मुद्दे को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की. पीठ ने कहा कि ये मामला इतना आसान नहीं है जितना दिखाई देता है. समलैंगिक विवाह को वैध बनाना आसान काम नहीं है. पीठ ने आगे कहा कि कानून बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में है. हमें ये देखना है कि हम कितनी दूर तक जा सकते हैं. साथ ही हम ये भी कहना चाहते हैं कि समाधान कैसे तैयार किया जाए, इस पर काफी विचार की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि हालांकि, हमने शुरू में सोचा था कि हम पर्सनल लॉ को नहीं छूएंगे, लेकिन बिना पर्सनल लॉ को छूए समलैंगिक शादी को मान्यता देना आसान काम नहीं है. 

"ये मामला ऐसा जैसे कमरे में हाथी घुस गया हो"

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि विवाह, तलाक, गोद लेना, उत्तराधिकार, विरासत सभी पर विधायिका के पास शक्ति है. हमें यह जांचने की जरूरत है कि हम किस हद तक दखल दे सकते हैं. अदालतें कहां तक जा सकती हैं. हम एक ऐसे मुकाम पर आ गए हैं कि बहुत सारे मुद्दे सामने आ रहे हैं. ये मामला ऐसा जैसे कमरे में हाथी घुस जाए 

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की गुंजाइश क्या है ये सवाल है

सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संसद को विवाह, तलाक,  बच्चों और नाबालिगों, संयुक्त परिवार और विभाजन के विषय पर कानून बनाने का अधिकार है. इसलिए ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की गुंजाइश क्या है ये सवाल है. हम किस हद तक हस्तक्षेप कर सकते हैं? हमें जांच करनी है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं से पूछे गए ये सवाल महत्वपूर्ण हैं क्योंकि केंद्र, एनसीपीसीआर और बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का विरोध करते हुए कहा था कि यह अनिवार्य रूप से हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद संसद और सरकार का डोमेन है. 

"याद रखें कि कई ओवरलैंपिंग भी हैं"

CJI ने कहा कि एक समाधान कैसे तैयार किया जाए. इसे लेकर बहुत सोच-विचार किया जाना है. एक बार जब हम विशेष विवाहों को वैध कर देते हैं तो यह एक पैंडोरा बॉक्स भी खोल सकता है. हमें ' एलीफेंट इन द रूम ' को  संबोधित करना होग. याद रखें कि कई ओवरलैपिंग भी हैं.पहले हमने कहा था कि हम केवल एक पहलू से निपट रहे हैं  कि क्या समान लिंग विवाह की अनुमति देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम की व्याख्या की जा सकती है और कहा था कि दायरे को चौड़ा नहीं किया जा सकता है. 

"समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार है"

दरअसल, मुकुल रोहतगी ने  कहा था कि समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार है , SC को यह घोषित करना चाहिए कि सभी परिणामी अधिकार - दत्तक ग्रहण, उत्तराधिकार, विरासत, समान-लिंग वाले जोड़ों को उपलब्ध कराए जाने चाहिए जैसा कि वर्तमान में विषमलैंगिक जोड़ों के लिए उपलब्ध है. लेकिन अब हमारा विचार है कि कई टकराव  भी हैं.आप इस बात पर विवाद नहीं कर सकते हैं कि संसद के पास इन याचिकाओं द्वारा कवर किए गए कैनवास में हस्तक्षेप करने की शक्तियां हैं.यह विशेष रूप से विवाह और तलाक को कवर करती है तो सवाल यह है कि वास्तव में कौन सा मुद्दा है जिनमें यह अदालत हस्तक्षेप कर सकती है.वास्तव में सवाल यह है कि अदालतें कितनी दूर तक जा सकती हैं?

आप इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सकते हैं कि इन याचिकाओं द्वारा कवर किए गए कैनवास पर संसद के पास विधायी शक्ति है.जो संविधान से पहले पर्सनल लॉ का हिस्सा थे, अब सूची 3 के तहत संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.यदि यह शक्ति विशेष रूप से संसद को प्रदान की जाती है, तो न्यायालय वास्तव में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कहां तक कर सकता है? वे कौन से हित हैं जिन्हें न्यायालय के पास अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है.मुझे नहीं लगता कि हम यह कहने के लिए इतनी दूर ले जा सकते हैं कि आप जानते हैं कि यह कहना कि यह संसद का मामला है, ब्रिटिश संसदीय स्वरूप को थोपना चाहता है, हो सकता है कि यह इसे कहने का सही तरीका न हो.

"सरकार अदालत में नहीं कह सकती कि यह संसद का मामला है"

वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी की दलीलों के जवाब में यह टिप्पणी की गई कि सरकार अदालत में आकर यह नहीं कह सकती कि यह संसद का मामला है. उन्होंने  दावा किया कि जब किसी समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उन्हें अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक न्यायालय का रुख करने का अधिकार है.

SMA  उस अर्थ में एक अपवाद था

इस मामले की सुनवाई के दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि 1956 में हिंदू कोड बिल द्वारा पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध किए जाने से पहले और फिर अन्य कानून भी हैं, जो अधिनियमित किए गए थे.जैसे विवाह में गोद लेना, उस मामले के लिए असंहिताबद्ध हिंदू कानून द्वारा शासित थे.हिंदू कोड बिल  इसे संहिताबद्ध करने के लिए था. अब SMA  उस अर्थ में एक अपवाद था क्योंकि यह धर्म के प्रति तटस्थ होने का दावा करता था.यह विचार अंतर-धार्मिक अंतर्जातीय विवाहों के विधायी ढांचे के लिए था.इसलिए उन्होंने जो किया वह एक अपवाद को तराशने के लिए था.अब यह दलील भी है कि हम इसे केवल SMA  तक ही सीमित रखें.आप समलैंगिक जोड़े के विवाह के लिए एक गैर-धार्मिक ढांचा बनाएं. यह उन लोगों के लिए है जो धर्मनिरपेक्ष कानून द्वारा शासित हैं. फिर भी इन 4 समुदायों, हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख के मामले में SMA आपको वापस ले लेता है. 

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