संजीव चतुर्वेदी की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
हाल ही में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम के लिए रेमन मैग्गेसे पुरस्कार जीतने वाले ब्यूरोक्रेट संजीव चतुर्वेदी को एक और कामयाबी मिली है। अदालत के दखल और आदेश के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी की उस मांग को मान लिया है जिसमें उन्होंने अपना काडर हरियाणा से बदलकर उत्तराखंड करने की मांग की थी। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली अपाइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट, यानी एसीसी ने इस बारे में अपनी सहमति दे दी है। संजीव चतुर्वेदी ने एसीसी के इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा है कि उन्हें यह राहत न्यायपालिका के कड़े रवैये की वजह से मिली।
इससे पहले इसी साल जनवरी में एसीसी ने चतुर्वेदी की अर्ज़ी पर हरियाणा और उत्तराखंड से दोबारा राय मांगने को कहा था। इसके बाद चतुर्वेदी ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि उनको प्रताड़ित करने के लिए ही केंद्र सरकार उनके काडर बदलने की अर्ज़ी लटकाए हुए है।
इसके बाद फरवरी में अदालत (कैट) ने एसीसी के ऑर्डर पर रोक लगा दी। फिर मई में उस ऑर्डर को रद करके कहा कि सरकार दो महीने में इस बारे में फैसला करे। कैट ने इस बारे में कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए रवींद्रनाथ टैगोर की कविता को उद्धृत किया था और कहा था कि अदालत के दरवाजे चतुर्वेदी के लिए हमेशा खुले रहेंगे।
2002 बैच के आईएफएस अधिकारी चतुर्वेदी ने हरियाणा में वन अधिकारी रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए थे। इसके लिए कांग्रेस की हुड्डा सरकार से उन्हें काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और राष्ट्रपति के दखल के बाद उन्हें राहत मिली थी। दिल्ली आने के बाद चतुर्वेदी ने हरियाणा में अपनी जान को खतरा बताते हुए 2012 में अपना काडर बदलने की अर्ज़ी केंद्र सरकार को दी थी। इस बीच एम्स में भी उन्होंने कई घोटाले उजागर किए जिसके बाद उन्हें सीवीओ पद से हटा दिया गया। चतुर्वेदी की शिकायत थी कि इसीलिए उनके काडर बदलने की अर्ज़ी पर भी अड़ंगा लगाया गया।
अब चतुर्वेदी उत्तराखंड में पोस्टिंग की मांग सकते हैं लेकिन दिल्ली में भी उनका कार्यकाल खत्म नहीं हुआ है। दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उन्हें अपने ओएसडी के तौर पर मांग रहे हैं, लेकिन केंद्र ने इसकी सहमति नहीं दी है। सवाल है कि क्या चतुर्वेदी उत्तराखंड जाएंगे या फिर केंद्र में रहकर दिल्ली सरकार में प्रतिनियुक्ति का इंतज़ार करेंगे। वैसे एम्स में उन्हें सरकार ने कोई काम नहीं दिया है। इस शिकायत को लेकर उन्होंने कोर्ट में भी गुहार लगाई लेकिन केंद्र सरकार बाकायदा हलफनामा देकर अदालत में कह चुकी है कि वह अपने फैसले पर कायम है।
इससे पहले इसी साल जनवरी में एसीसी ने चतुर्वेदी की अर्ज़ी पर हरियाणा और उत्तराखंड से दोबारा राय मांगने को कहा था। इसके बाद चतुर्वेदी ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि उनको प्रताड़ित करने के लिए ही केंद्र सरकार उनके काडर बदलने की अर्ज़ी लटकाए हुए है।
इसके बाद फरवरी में अदालत (कैट) ने एसीसी के ऑर्डर पर रोक लगा दी। फिर मई में उस ऑर्डर को रद करके कहा कि सरकार दो महीने में इस बारे में फैसला करे। कैट ने इस बारे में कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए रवींद्रनाथ टैगोर की कविता को उद्धृत किया था और कहा था कि अदालत के दरवाजे चतुर्वेदी के लिए हमेशा खुले रहेंगे।
2002 बैच के आईएफएस अधिकारी चतुर्वेदी ने हरियाणा में वन अधिकारी रहते हुए भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए थे। इसके लिए कांग्रेस की हुड्डा सरकार से उन्हें काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ा और राष्ट्रपति के दखल के बाद उन्हें राहत मिली थी। दिल्ली आने के बाद चतुर्वेदी ने हरियाणा में अपनी जान को खतरा बताते हुए 2012 में अपना काडर बदलने की अर्ज़ी केंद्र सरकार को दी थी। इस बीच एम्स में भी उन्होंने कई घोटाले उजागर किए जिसके बाद उन्हें सीवीओ पद से हटा दिया गया। चतुर्वेदी की शिकायत थी कि इसीलिए उनके काडर बदलने की अर्ज़ी पर भी अड़ंगा लगाया गया।
अब चतुर्वेदी उत्तराखंड में पोस्टिंग की मांग सकते हैं लेकिन दिल्ली में भी उनका कार्यकाल खत्म नहीं हुआ है। दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उन्हें अपने ओएसडी के तौर पर मांग रहे हैं, लेकिन केंद्र ने इसकी सहमति नहीं दी है। सवाल है कि क्या चतुर्वेदी उत्तराखंड जाएंगे या फिर केंद्र में रहकर दिल्ली सरकार में प्रतिनियुक्ति का इंतज़ार करेंगे। वैसे एम्स में उन्हें सरकार ने कोई काम नहीं दिया है। इस शिकायत को लेकर उन्होंने कोर्ट में भी गुहार लगाई लेकिन केंद्र सरकार बाकायदा हलफनामा देकर अदालत में कह चुकी है कि वह अपने फैसले पर कायम है।
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