चारों तरफ बर्फ ही बर्फ, दुर्गम पहाड़ी का इलाका और ऊंचाई करीब 16 हज़ार फीट. ऐसे मुश्किल हालात में पहुंचना ही काफी कठिन होता है. कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है. इसी कहावत को चिरतार्थ कर दिखाया है सेना के गजराज कोर ने जिसने 16 हज़ार फीट में दुर्गम पहाड़ियों में जहां बर्फ़, कठोर चट्टानी ढाल और लगातार बदलते मौसम के बीच मोनो रेल चलाई है.

कामेंग हिमालय की पहाड़ियों में अब यह हाई एल्टीट्यूड मोनो रेल चीन से लगी सरहद पर तैनात सैनिकों के लिये जीवनरेखा बन गई है. कोर ने ऊंचाई वाले इलाकों में सैनिकों को लॉजिस्टिक सपोर्ट का एक अनोखा समाधान पेश किया है, जिससे अग्रिम चौकी तक सैनिकों को आवश्यक सामान पहुंचाने में काफी सहूलियत हो रही है. यह मोनो रेल प्रणाली उन अग्रिम चौकियों के लिए वरदान साबित हो रही है, जो बर्फबारी और मौसम की मार से लंबे समय तक कट जाते थे. कई बार इसकी वजह से ओपेरशनल दिक्कतें पैदा हो जाती थी.

इसके आने से गोला-बारूद, राशन, ईंधन और इंजीनियरिंग सामग्री जैसे आवश्यक सामान को यह प्रणाली खड़ी ढलानों पर सुरक्षित पहुंचाती है. उबड़ खाबड़ जमीन , दिन-रात, हर मौसम में भी इसे संचालित किया जा सकता है. यह प्रणाली एक बार में 300 किलोग्राम से अधिक भार ढोने में सक्षम हैं.

सेना का यह मोनो रेल सिस्टम केवल लॉजिस्टिक्स तक सीमित नहीं है। यह जरूरत पड़ने पर घायल सैनिकों को तेजी से निकालने के काम भी आ रहा है. खासकर उन इलाकों में जहां हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पाते. पैदल निकासी जोखिम भरी होती है. इन हालातों में यह मोनो रेल सेवा एक बड़ा कारनामा है जिसने सैनिकों की मुश्किल काफी आसान हो गई है. गजराज कोर का यह इन-हाउस सिस्टम न सिर्फ ऑपेरशनल कैपेबिलिटी को मजबूत करता है, बल्कि ऊंचाई वाले अलग-थलग इलाकों में तैनात सैनिकों की तैयारियां मजबूत हुई है. ऐसे चुनौती भरे माहौल में अब वह दुश्मनों को माकूल जवाब दे पाएंगे.
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