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This Article is From Jan 19, 2023

सतलुज यमुना लिंक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई, अब 15 मार्च को होगी

पिछले साल सितंबर में 20 साल पुराना पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना लिंक यानी SYL मामला फिर गरमा गया था. केंद्र सरकार ने आरोप लगाया था कि पंजाब सरकार मामले में सहयोग नहीं कर रही है.

सतलुज यमुना लिंक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई, अब 15 मार्च को होगी
केंद्र सरकार ने आरोप लगाया था कि पंजाब सरकार मामले में सहयोग नहीं कर रही

नई दिल्‍ली: हरियाणा और पंजाब के बीच पानी के बंटवारे को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट अब 15 मार्च को सुनवाई करेगा. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी के सुनवाई के लिए उपलब्ध न होने की वजह से इस मामले में सुनवाई टल गई. हरियाणा ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच दो दौर की मीटिंग हो चुकी है, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है. अब सुप्रीम कोर्ट को ही इस मुद्दे पर सुनवाई कर हल निकालना होगा.

पिछले साल सितंबर में 20 साल पुराना पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना लिंक यानी SYL मामला फिर गरमा गया था. केंद्र सरकार ने आरोप लगाया था कि पंजाब सरकार मामले में सहयोग नहीं कर रही है. नए मुख्‍यमंत्री को भी पत्र लिखा गया, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. इससे पहले भी केंद्र सरकार पंजाब के पहले के मुख्यमंत्रियों से बात करती रही, लेकिन कोई हल नहीं निकला. 

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के मुख्यमंत्री को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की देखरेख में हरियाणा के मुख्‍यमंत्री से मिलकर मतभेद और समाधान के लिए प्रयास करने को कहा था. जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा था. प्राकृतिक संसाधनों को साझा किया जाना चाहिए, खासकर पंजाब में सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए सभी पार्टियों को इस मामले में सहयोग करना चाहिए.  

अटॉर्नी जनरल  के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र ने पूर्व में भी पंजाब के मुख्‍यमंत्री को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. अप्रैल 2022 में पंजाब के नए मुख्‍यमंत्री को एक पत्र लिखा गया था और उन्होंने अभी तक जवाब नहीं दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा बुलाई गई बैठक में बातचीत करके समाधान के लिए प्रयास करने को कहा था.  

जुलाई 2020 में भी सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री को निर्देश देते हुए कहा था कि वो आपस मे मीटिंग करके यह बताए कि इस समस्या का हल निकाल सकते है या नहीं. मामले की सुनवाई इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "इस समस्या का समाधान निकलना चाहिए." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार महीनों के समय दिया था. केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि इस मामले में उन्हें आपसी बातचीत से समाधान निकालने के लिए तीन महीनों का वक्त चाहिए.

केंद्र सरकार ने कहा था कि हम दोनों राज्य सरकारों यानी (हरियाणा सरकार और पंजाब सरकार) के संपर्क में है और बातचीत चल रही है. कोर्ट ने कहा था कि आप तीन नहीं चार महीनों के समय लीजिये. वहीं, हरियाणा सरकार ने कहा था कि इस मामले में एक टाइम लाइन होना चाहिए. ऐसा न हो ये मामला अंनतकाल तक चलता रहे.  सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि केंद्र SYL विवाद का हल निकालने के लिए गंभीर है. केंद्र ने दोनों राज्यों के साथ हाई लेवल मीटिंग बुलाई गई है.  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये कोर्ट का आदेश है जिसका पालन देश के सभी नागरिकों को करना चाहिए. अगर केंद्र दोनों राज्यों से बातचीत का हल निकलता, तो कोर्ट सुनवाई जारी रखेगा. कोर्ट ने साफ किया था कि लिंक नहर का निर्माण करना ही होगा, उसमें कितना पानी आएगा ये बाद में तय किया जाएगा. कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब को कानून व्यवस्था बनाए रखने के आदेश दिए. कोर्ट ने कहा कि सतलुज यमुना लिंक को लेकर यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश बरकरार रहेंगे. राज्यों में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी दोनों राज्यो पर है. पंजाब और हरियाणा दोनों सुनिश्चित करेंगे कि लिंक नहर को लेकर कानून व्यवस्था ना बिगडे़. 

गौरतलब है कि 10 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब द्वारा पड़ोसी राज्यों के साथ सतजुल यमुना लिंक नहर समझौता निरस्त करने के लिए 2004 में बनाए गए कानून को असंवैधानिक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर दिए फैसले में कहा था कि वह राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए सभी रेफरेंस पर अपना नकारात्मक जवाब देते हैं. पंजाब सरकार करार रद्द करने के लिए एकतरफा फैसला नहीं ले सकती. कोर्ट ने कहा कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, इंटर स्टेट नदी जल विवाद एक्ट और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने साफ किया था कि पंजाब अन्य राज्यों से किए गए एग्रीमेंट के बारे में एकतरफा फैसला नहीं ले सकता. 

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