
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी राजनीति में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना देश की एकता और अखंडता के लिए सांप्रदायिकता जितना ही खतरनाक बताया है.
- अदालत ने कहा कि कई राजनीतिक दल चुनावों के दौरान क्षेत्रवाद को बढ़ावा देकर वोट मांगते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है.
- ये टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने AIMIM के पंजीकरण रद्द करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान की.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को क्षेत्रीय राजनीति को लेकर बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनावी राजनीति में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना, देश की एकता और अखंडता के लिए सांप्रदायिकता जितना ही खतरनाक है. अदालत ने स्पष्ट किया कि कई राजनीतिक दल चुनावों के दौरान क्षेत्रवाद को हवा देकर वोट मांगते हैं, जो राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध है.
यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह सिर्फ एक पार्टी को निशाना नहीं बना सकती, जबकि कई दल सांप्रदायिक या क्षेत्रीय आधार पर राजनीति कर रहे हैं.
'क्या ये देश की अखंडता के खिलाफ नहीं?'
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'क्या यह पूछना गलत है कि चुनावों में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ नहीं है?' अदालत ने चिंता जताई कि इस तरह की राजनीति देश की सामूहिक पहचान और संविधान के मूल सिद्धांतों को नुकसान पहुंचा सकती है.
AIMIM को राहत, कोर्ट ने दी ये सलाह
हालांकि कोर्ट ने AIMIM के संविधान का अध्ययन करने के बाद कहा कि उसमें ऐसा कुछ नहीं पाया गया है जो संविधान का उल्लंघन करता हो. साथ ही अदालत ने ये भी जोड़ा कि यदि कोई धार्मिक कानून संविधान द्वारा संरक्षित है, तो किसी राजनीतिक दल को उसका प्रचार करने का अधिकार है.
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह किसी पार्टी विशेष का नाम लिए बिना चुनाव सुधारों से जुड़े व्यापक मुद्दों पर तटस्थ याचिका दाखिल कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्रीय और सांप्रदायिक भावनाओं के इस्तेमाल पर एक बड़ा संकेत मानी जा रही है.
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