
Supreme Court Big Step On Pahalgam Attack: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पहलगाम आतंकवादी हमले की निंदा की और पीड़ितों की याद में एक मिनट का मौन रखा. ठीक 2:00 बजे, नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के परिसर में सायरन बजने लगे. न्यायाधीश, वकील, मुक़दमेबाज़ और कोर्ट के कर्मचारी एक साथ खड़े होकर दो मिनट का मौन धारण किए. यह पहली बार था जब भारत की शीर्ष अदालत ने सामूहिक और औपचारिक रूप से आतंकवादी कृत्य पर प्रतिक्रिया व्यक्त की.
ऐतिहासिक रूप से, सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे प्रदर्शनों से परहेज किया है, यहां तक कि 26/11 मुंबई हमलों जैसे पिछले आतंकवादी हमलों के दौरान भी. परंपरागत रूप से, न्यायालय महात्मा गांधी की हत्या की याद में प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को सुबह 11:00 बजे दो मिनट का मौन रखता है.
भूषण आर गवई ने की पहल
वरिष्ठ न्यायालय अधिकारियों के अनुसार, यह पहल न्यायमूर्ति भूषण आर गवई ने की, जो वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं और मुख्य न्यायाधीश बनने की दौड़ में सबसे आगे हैं. उन्होंने इस बारे में न्यायमूर्ति सूर्यकांत से परामर्श किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना बुधवार को देश से बाहर थे. पहलगाम घटना से सामने आए फुटेज और इमेजेज की समीक्षा करने के बाद, वरिष्ठ न्यायाधीशों ने लंच अवकाश के दौरान एक आपातकालीन कंसल्टेशन आयोजित किया. दोपहर 1:45 बजे तक, सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सभी न्यायाधीश एकत्र हो गए थे, और एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया गया और उसे अपनाया गया. दोपहर 2:00 बजे, प्रोटोकॉल का पालन करते हुए, सायरन बजाया गया और मौन रखा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान में कहा, "भारत के मुकुट रत्न यानी कश्मीर की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने आए पर्यटकों पर हमला निस्संदेह मानवता के मूल्यों और जीवन की पवित्रता का अपमान है और यह न्यायालय इसकी कड़ी निंदा करता है."
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "देश की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत, जो अपने अधिकार क्षेत्र के मामले में दुनिया की सबसे शक्तिशाली अदालत है, दुखी और घायल राष्ट्र के साथ खड़ी है. यह दुनिया के लिए और आतंक फैलाने वालों और सीमा पार से उन पर नजर रखने वालों के लिए एक अभूतपूर्व कड़ा संदेश है. यह दर्शाता है कि पहलगाम में बेरहमी से मारे गए लोगों के रिश्तेदारों के दिलों और जीवन में ही घाव नहीं हैं, बल्कि पूरा देश घायल और आहत है."
अन्य अदालतों ने भी की निंदा
सर्वोच्च न्यायालय के इस कदम से भारत की न्यायपालिका पर एक दुर्लभ प्रभाव पड़ा. दिल्ली, मुंबई, गुजरात और जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के उच्च न्यायालयों ने भी इसी तरह की निंदा की और एकजुटता दिखाते हुए मौन रखा. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के 300 से अधिक सदस्य पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने के लिए उसी समय अदालत के केंद्रीय लॉन में एकत्र हुए.
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