- EV वाहनों को बढ़ावा देने के लिए SC ने लग्जरी पेट्रोल-डीजल वाहनों पर चरणबद्ध तरीके से बैन का सुझाव दिया है
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार इस विचार से सहमत है और इस दिशा में काम किया जा रहा है
- चार्जिंग स्टेशनों की कमी पर कोर्ट ने कहा कि जैसे-जैसे इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ेंगे, चार्जिंग स्टेशन भी बढ़ जाएंगे
सुप्रीम कोर्ट ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देने के लिए एक अहम सुझाव देते हुए कहा कि पेट्रोल और डीजल से चलने वाली लग्जरी गाड़ियों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने पर विचार किया जा सकता है. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने कोर्ट को बताया कि सरकार भी इस विचार से सहमत है. सरकार इस दिशा में अग्रसर है. इस प्रोजेक्ट से 13 मंत्रालय सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं.
EV वाहनों को बढ़ावा देने की याचिका
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सुझाव दिया. इस याचिका में सरकार की ईवी को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग की गई है.
'पहले महंगी गाड़ियों पर बैन से शुरुआत संभव'
जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि अब बाजार में बड़े और उच्चस्तरीय इलेक्ट्रिक वाहन भी उपलब्ध हैं, इसलिए शुरुआत उच्च श्रेणी के पेट्रोल/डीजल वाहनों पर प्रतिबंध से की जा सकती है. उन्होंने कहा कि अब इलेक्ट्रिक वाहनों में भी बड़े और आरामदायक मॉडल आ गए हैं. तो क्यों न पहले बहुत महंगी गाड़ियों पर रोक लगाई जाए? इससे आम आदमी प्रभावित नहीं होगा क्योंकि ऐसी गाड़ियां केवल बहुत कम लोग खरीद सकते हैं.
गाड़ियां बढ़ेंगी तो चार्जिंग स्टेशन भी बढ़ जाएंगे
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि पहले इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें अधिक थीं, इसलिए प्रोत्साहन योजनाएं लाई गईं. अब मुख्य चुनौती चार्जिंग स्टेशनों की कमी है. इस पर कोर्ट ने कहा कि जैसे-जैसे सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ेगी, चार्जिंग स्टेशनों की संख्या भी अपने आप बढ़ जाएगी. अदालत का कहना था कि ये सब बाजार से जुड़े मसले हैं. जब इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ेंगे तो चार्जिंग स्टेशन भी आएंगे. मौजूदा पेट्रोल पंपों पर भी वाहिन चार्जिंग की सुविधा दी जा सकती है.
कोर्ट के सुझाव से सरकार भी सहमत
अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव से सहमति जताई, साथ ही माना कि क्रियान्वयन स्तर पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है. उनका कहना था कि सरकार में इसे लेकर कई बैठकें हुई हैं. कार्यान्वयन के स्तर पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.
EV नीति की समीक्षा की जरूरतः कोर्ट
कोर्ट ने यह भी कहा कि ईवी नीति की फिर से समीक्षा की जरूरत हो सकती है. इस नीति को बने हुए पांच साल हो गए हैं, अब इसे फिर से देखा जाना चाहिए. सुनवाई के अंत में अटॉर्नी जनरल ने बताया कि अब तक जारी अधिसूचनाओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट दायर की जाएगी. इसके बाद कोर्ट ने मामला चार हफ्ते बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया.
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