 
                                            - सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में सभी राज्यों और UT के मुख्य सचिवों को फिजिकली पेश होने का आदेश दिया
- कोर्ट ने सॉलिसिटर की वर्चुअल पेशी की मांग को खारिज करते हुए प्रत्यक्ष रूप से पेश होने का कहा
- कोर्ट ने सरकारों की नियम बनाने के बाद भी कार्रवाई न करने पर कड़ी नाराजगी जताई
आवारा कुत्तों के मामले में तीन नवंबर को राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को फिजिकली सुप्रीम कोर्ट में पेश होना ही होगा. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बेहद सख्त नजर आ रहा है. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि किसी को भी वर्चुअल पेशी की इजाजत नहीं है. दरअसल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रत्यक्ष रूप से पेश होने से छूट देने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है.
आवारा कुत्तों के मामले पर सॉलिसिटर जनरल की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पेश होना ही होगा.' सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रत्यक्ष रूप से पेश होने से छूट देने की मांग की थी. सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि उन्हें प्रत्यक्ष रूप से पेश होने के बजाय, वर्चुअल रूप से पेश होने दें.
'वे अदालती आदेश पर सो रहे'
 
इसके जवाब में जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, 'नहीं, उन्हें प्रत्यक्ष रूप से आने दें. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायालय यहां समय दे रहा है, सरकार नियम बनाती है, कोई कार्रवाई नहीं करती. वे (अदालती आदेश ) पर सो रहे हैं. उन्हें आने दीजिए, हम उनसे निपट लेंगे. उन्हें प्रत्यक्ष रूप से आकर बताना होगा कि अनुपालन हलफनामे क्यों दाखिल नहीं किए गए. 27 अक्टूबर को, अदालत ने हलफनामे दाखिल करने के अपने निर्देशों का पालन न करने पर, दो को छोड़कर, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तलब किया था.
'अदालत के आदेश के प्रति कोई सम्मान नहीं. तो ठीक है, उन्हें आने दीजिए'
न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, 'जब हम उनसे अनुपालन हलफनामा दाखिल करने के लिए कहते हैं, तो वे बस, इस पर चुप्पी साधे रहते हैं. अदालत के आदेश के प्रति कोई सम्मान नहीं. तो ठीक है, उन्हें आने दीजिए.' मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि मुख्य सचिवों को प्रत्यक्ष रूप से पेश होने के बजाय डिजिटल माध्यम से अदालत के समक्ष पेश होने की अनुमति दी जाए. शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर को आवारा कुत्तों के मामले की सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को तीन नवंबर को अदालत के समक्ष उपस्थित होकर यह बताने का निर्देश दिया था कि अदालत के 22 अगस्त के आदेश के बावजूद अनुपालन हलफनामा क्यों नहीं दाखिल किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को आवारा कुत्तों के मामले का दायरा दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमाओं से आगे बढ़ाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने न्यायालय ने नगर निगम अधिकारियों को पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियमों के अनुपालन के उद्देश्य से कुत्तों के लिए उपलब्ध बाड़ा, पशु चिकित्सकों, कुत्तों को पकड़ने वाले कर्मियों और विशेष रूप से संशोधित वाहनों एवं पिंजरों जैसे संसाधनों के पूर्ण आंकड़ों के साथ अनुपालन पर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. पीठ ने इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्षकार बनाया था और कहा था कि एबीसी नियमों का प्रयोग पूरे भारत में एक समान है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एक स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा है जो 28 जुलाई को राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों के काटने से विशेष रूप से बच्चों में रेबीज होने की एक मीडिया रिपोर्ट आने के बाद शुरू किया गया था.
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