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असली अपराधी तक पहुंचने वाले रास्ते बंद... निठारी कांड में सुरेंद्र कोली को राहत देते हुए SC की सख्त टिप्पणी

निठारी कांड पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जांच एजेंसियों की लापरवाही ने न केवल साक्ष्यों को नष्ट किया बल्कि कई महत्वपूर्ण सुराग भी हमेशा के लिए खो दिए.

असली अपराधी तक पहुंचने वाले रास्ते बंद... निठारी कांड में सुरेंद्र कोली को राहत देते हुए SC की सख्त टिप्पणी
निठारी कांड में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी.
  • सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड में सुरेन्द्र कोली की उम्रकैद की सजा को वापस लेते हुए सख्त टिप्पणी की.
  • सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों की लापरवाही और देरी को सच तक पहुंचने में बाधा बताया है.
  • फॉरेंसिक जांच में चूक और साक्ष्य संरक्षण में गड़बड़ी की वजह से अपराधी की कानूनी पहचान नहीं हो सकी.
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निठारी हत्याकांड केस में सुरेन्द्र कोली को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. अदालत ने आखिरी मामले में उसकी उम्रकैद की सजा का फैसला वापस ले लिया. हालांकि अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले में लापरवाही और देरी ने सच तक पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए. जांच एजेंसियों की लापरवाही, प्रक्रिया में खामियां और देरी ने पूरी फेक्ट फाइंडिंग प्रक्रिया को जंग लगा दिया और उन रास्तों को बंद कर दिया जो असली अपराधी तक पहुंच सकते थे.

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सुप्रीम कोर्ट ने का कि इतने सालों की जांच के बावजूद अपराधी की पहचान कानूनी मानकों के अनुरूप स्थापित नहीं हो सकी. बेंच की अगुवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ ने सुरेंद्र कोली की अंतिम सजा को रद्द करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति केवल शक या अनुमान के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, चाहे अपराध कितना भी जघन्य क्यों न हो.

असली अपराधी की पहचान नहीं हो सकी

अदालत ने कहा कि निठारी के अपराध भयावह थे, और पीड़ित परिवारों की पीड़ा असहनीय है. लेकिन यह बहुत ही खेद का विषय है कि इतने लंबे समय बाद भी असली अपराधी की पहचान कानूनी रूप से प्रमाणित नहीं हो सकी. आपराधिक कानून संदेह या हठधर्मिता पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों पर आधारित होता है. कोर्ट ने कहा कि संदेह, चाहे कितना भी गंभीर हो, प्रमाण' का विकल्प संदेह से परे नहीं हो सकता.

लापरवाही और देरी ने जांच की जड़ खोखली कर दी

जस्टिस विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जांच एजेंसियों की लापरवाही ने न केवल साक्ष्यों को नष्ट किया बल्कि कई महत्वपूर्ण सुराग भी हमेशा के लिए खो दिए.

  • अदालत ने पाया कि अपराध स्थल को खुदाई शुरू होने से पहले सुरक्षित नहीं किया गया था.
  • आरोपी के बयान को समय पर दर्ज नहीं किया गया.
  • रिमांड पेपरों में विरोधाभास थे.
  • बिना समय पर न्यायिक जांच या मेडिकल परीक्षण के आरोपी को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया.

फॉरेंसिक जांच में गंभीर चूक

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फॉरेंसिक सबूतों को समय पर और सही तरीके से सुरक्षित नहीं किया गया.
  • जिस मकान (डी-5, निठारी) से शवों के अवशेष मिले, वहां से कोई ऐसा वैज्ञानिक सबूत नहीं मिला जो घटनाओं से सीधे जुड़ता हो.
  • पुलिस ने घर और मोहल्ले के प्रत्यक्षदर्शी गवाहों से पर्याप्त पूछताछ नहीं की.
  • सरकारी कमेटी द्वारा सुझाए गए अंग व्यापार कोण की भी गहराई से जांच नहीं की .
  • इन सभी चूकों ने साक्ष्य की विश्वसनीयता को कमजोर किया और सत्य तक पहुंचने का मार्ग संकुचित कर दिया.
  • जब सबूत विफल हो जाएं, तो कानूनन एकमात्र रास्ता दोषसिद्धि को रद्द करना ही होता है,भले ही अपराध कितना ही भयानक क्यों न हो.

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे अब भी पुलिस और जांच एजेंसियों की क्षमता पर भरोसा है, लेकिन संविधानिक प्रक्रियाओं और अधिकारों का पालन अनिवार्य है ताकि न्याय में चूक न हो.

निठारी कांड के बारे में जानें

बता दें कि निठारी कांड 2006 में उजागर हुआ था, जब नोएडा सेक्टर-31 स्थित एक घर के पास मानव अवशेष मिले थे.यह मामला भारत के सबसे भयावह अपराधों में से एक बन गया. जांच के बाद कारोबारी मोनिंदर सिंह पंधेर और उनके नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया गया था. कोली को 2011 में एक मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. लेकिन 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अन्य 12 मामलों में दोनों को बरी कर दिया था, यह कहते हुए कि अभियोजन के सबूत अविश्वसनीय थे. सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2025 में राज्य की अपीलें भी खारिज कर दी थीं. इसके बाद सुरेंद्र कोली ने अपने पुराने दोषसिद्धि आदेश के खिलाफ क्यूरेटिव याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए उसकी सजा रद्द कर दी. 

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