नई दिल्ली:
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग यानी एनजेएसी बनाने के केंद्र सरकार ने अपने फैसले को सही ठहराया है।
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील दी है कि संसद द्वारा विवेक से लिए गए फैसले पर न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती और संसद अपने फैसले के लिए जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने संविधान पीठ में बहस करते हुए कि कहा कि जिस तरह संविधान के अध्यादेश 124 को समझा गया। उससे संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर की आत्मा भी परेशान होगी, क्योंकि संविधान में कहीं भी कोलेजियम सिस्टम की बात नहीं है।
हालांकि इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि सरकार इस नए सिस्टम को इसलिए नहीं लाई क्योंकि डॉ. अम्बेड़कर की आत्मा परेशान है, बल्कि इसके पीछे कुछ और कारण है।
रोहतगी ने कहा कि न्यायपालिका की आजादी जजों की नियुक्ति के बाद ही शुरू होती है और नए सिस्टम में जजों की ही प्रमुखता है। अगर तीन में से दो जज किसी व्यक्ति की नियुक्ति पर सवाल उठाते हैं तो उसकी नियुक्ति नहीं हो सकती।
याचिकाकर्ता का ये कहना कि इस सिस्टम से न्यायपालिका की आजादी में खलल होगा, ये बात किसी भी तरह से ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि 1993 का कोलेजियम सिस्टम उस वक्त की सरकार के रवैए की वजह से बना क्योंकि उस वक्त सरकार ने न्यायपालिका को भी घेरने की कोशिश की थी। ये सुनवाई आगे भी जारी रहेगी। इस मामले में संविधान पीठ पहले भी केंद्र सरकार पर कई सवाल उठा चुकी है।
इससे पहले कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वो बताए कि नया सिस्टम किस तरह कोलेजियम सिस्टम से बेहतर है और इससे न्यायपालिका की आजादी में खलल नहीं पड़ेगा। अगर सरकार कोर्ट को संतुष्ट कर देती है तो कोर्ट इस सिस्टम को मान लेगी।
इससे पहले आयोग के बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं और कहा गया है कि इस आयोग को खत्म किया जाए। केंद्र सरकार ने पहले दलील दी थी कि 1993 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने कोलेजियम सिस्टम बनाया था लिहाजा इस मामले को भी 9 या 11 जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील दी है कि संसद द्वारा विवेक से लिए गए फैसले पर न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती और संसद अपने फैसले के लिए जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने संविधान पीठ में बहस करते हुए कि कहा कि जिस तरह संविधान के अध्यादेश 124 को समझा गया। उससे संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर की आत्मा भी परेशान होगी, क्योंकि संविधान में कहीं भी कोलेजियम सिस्टम की बात नहीं है।
हालांकि इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि सरकार इस नए सिस्टम को इसलिए नहीं लाई क्योंकि डॉ. अम्बेड़कर की आत्मा परेशान है, बल्कि इसके पीछे कुछ और कारण है।
रोहतगी ने कहा कि न्यायपालिका की आजादी जजों की नियुक्ति के बाद ही शुरू होती है और नए सिस्टम में जजों की ही प्रमुखता है। अगर तीन में से दो जज किसी व्यक्ति की नियुक्ति पर सवाल उठाते हैं तो उसकी नियुक्ति नहीं हो सकती।
याचिकाकर्ता का ये कहना कि इस सिस्टम से न्यायपालिका की आजादी में खलल होगा, ये बात किसी भी तरह से ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि 1993 का कोलेजियम सिस्टम उस वक्त की सरकार के रवैए की वजह से बना क्योंकि उस वक्त सरकार ने न्यायपालिका को भी घेरने की कोशिश की थी। ये सुनवाई आगे भी जारी रहेगी। इस मामले में संविधान पीठ पहले भी केंद्र सरकार पर कई सवाल उठा चुकी है।
इससे पहले कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वो बताए कि नया सिस्टम किस तरह कोलेजियम सिस्टम से बेहतर है और इससे न्यायपालिका की आजादी में खलल नहीं पड़ेगा। अगर सरकार कोर्ट को संतुष्ट कर देती है तो कोर्ट इस सिस्टम को मान लेगी।
इससे पहले आयोग के बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं और कहा गया है कि इस आयोग को खत्म किया जाए। केंद्र सरकार ने पहले दलील दी थी कि 1993 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने कोलेजियम सिस्टम बनाया था लिहाजा इस मामले को भी 9 या 11 जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया था।
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