तमिलनाडु के आठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए विचार न करने पर दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने खारिज कर दी है. SC ने कहा कि ये याचिका कानून में ठहरने वाली नहीं है.दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु के आठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा दायर एक रिट याचिका में आरोप लगाया था कि मद्रास हाईकोर्ट कॉलेजियम ने उनके नामों को अनदेखा कर दिया और इसके बजाय हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने के लिए उनसे जूनियर लोगों की सिफारिश की. याचिकाकर्ताओं में मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (सतर्कता) आर. पूर्णिमा, तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (TNSLSA) के सदस्य सचिव के. राजसेकर और चेन्नई फैमली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एकेए रहमान, प्रधान जिला न्यायाधीश आर. सैथिवेल, ए.कांताकुमार, ए. नाजिमा बानो, एमडी सुमति और एम सुरेश विश्वनाथ शामिल हैं.
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उन्होंने तर्क दिया कि उनमें से अधिकांश ने 18 फरवरी, 2011 को जिला न्यायाधीश के रूप में भर्ती होने से पहले वकीलों के रूप में 10 साल का अभ्यास पूरा किया था. वर्ष 2017 में, उन्होंने जिला न्यायपालिका में छह साल की सेवा भी पूरी कर ली थी. हालांकि, जब हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति की बात आई तो कॉलेजियम ने उन पर विचार नहीं किया.उन्होंने दावा किया कि हाईकोर्ट कॉलेजियम का ये फैसला संविधान के अनुच्छेद 217 (2) की गलत व्याख्या पर आधारित है और यह अनुच्छेद 217 का उल्लंघन है जिसके परिणामस्वरूप ये मनमाना है और इसके परिणामस्वरूप अनुच्छेद 14
के तहत उनके समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
CJI की अगुवाई वाली पीठ ने दिसंबर 2019 में, याचिकाकर्ताओं के हक के सवाल सीमित सवाल पर नोटिस जारी किया था कि वो 18 वर्षों से न्यायपालिका से जुड़े हैं और इस आधार पर उच्च न्यायालय की न्यायपालिका के लिए उन पर विचार किया जाए.मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने सोमवार को रिट याचिका पर सुनवाई की और इसे फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया था.
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