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सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई गेटवे ऑफ इंडिया के पास जेटी और टर्मिनल निर्माण विरोधी याचिका खारिज की

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील सी.यू. सिंह ने दलील दी थी कि प्रस्तावित मौजूदा जेटी को 250 मीटर दूर ले जाने से भीड़भाड़ कम करने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा. 

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई गेटवे ऑफ इंडिया के पास जेटी और टर्मिनल निर्माण विरोधी याचिका खारिज की
(फाइल फोटो)
  • SC ने गेटवे ऑफ इंडिया के पास 229 करोड़ की लागत से बनने वाले जेटी और टर्मिनल के निर्माण की याचिका खारिज कर दी
  • याचिकाकर्ताओं ने परियोजना के लिए पर्यावरण और तटीय प्राधिकरण की स्वीकृति प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने जेटी निर्माण को कुछ शर्तों के साथ अनुमति दी थी
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नई दिल्ली:

मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया के पास 229 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले यात्री जेटी और टर्मिनल के निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है. भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देनी वाली इस याचिका को खारिज कर दिया है. 

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील सी.यू. सिंह ने दलील दी थी कि प्रस्तावित मौजूदा जेटी को 250 मीटर दूर ले जाने से भीड़भाड़ कम करने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण को इस परियोजना को मंज़ूरी देने का कोई अधिकार नहीं है.

MCZMA  को इस पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं था. अगर उन्हें विचार करना भी था, तो उन्हें रिपोर्ट देखनी चाहिए थी. परियोजना के लिए राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) से परामर्श नहीं किया गया था. यह एक विशाल परियोजना है जो निर्माणाधीन क्षेत्र के हिसाब से उपयुक्त नहीं है. इससे पूरा क्षेत्र बौना हो जाएगा. यह बहुत बड़ा है.

यह एक हेरिटेज क्षेत्र है. बंदरगाह के बीचों-बीच एक विशाल जेटी है जो बंदरगाह के विस्तार जैसा है. हाईकोर्ट का कहना है कि अगर जेटी बंदरगाह के भीतर आती है, तो यह एक स्वतंत्र जेटी नहीं है. क्या इसकी वहन क्षमता है? क्या इसकी जांच की गई है? उनके अपने ट्रैफिक सिमुलेशन अध्ययन में भी इस पर विस्तार से अध्ययन करने के बाद यही कहा गया है.

उन्होंने कहा कि नावों से गोवा आने वाले 75 प्रतिशत लोग पहले गेटवे पर जाते हैं. महाराष्ट्र राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा इस परियोजना से मुंबई की पूरी आबादी को लाभ होगा. मैं यहां पूरी मुंबई की आबादी के लिए हूं.  दूसरा पक्ष कुछ लोगों के लिए है जिन्हें असुविधा होगी.

मुख्य न्यायाधीश गवई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, आप इसे सिर्फ़ ताज महल होटल में ठहरने वाले लोगों के नजरिए से नहीं देख सकते. आमची मुंबई उस इलाके के आस-पास नहीं रहती. वे डोंबिवली वगैरह में हैं. यह नीतिगत मामला है. क्लीन एंड हेरिटेज कोलाबा रेजिडेंट्स एसोसिएशन द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के 15 जुलाई के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर पर आदेश पारित किया.

हाईकोर्ट ने टर्मिनल पर या उसके आसपास क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं, इस पर कुछ शर्तों के साथ जेटी के निर्माण को हरी झंडी दे दी थी. हाईकोर्ट ने जेटी परियोजना को आगे बढ़ने की अनुमति तो दी, लेकिन साथ ही कुछ निर्देश भी जारी किए. परियोजना के तहत प्रस्तावित एम्फीथिएटर का उपयोग केवल बैठने की सुविधा के रूप में किया जाएगा, मनोरंजन के लिए नहीं.

सुविधा केंद्र में स्थित कैफे में केवल पानी और पैक्ड फूड परोसा जाएगा और भोजन की कोई सुविधा नहीं होगी. मौजूदा जेटी को चरणबद्ध तरीके से बंद किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने प्रस्तावित परियोजना में किसी भी प्रकार के सीवेज ट्रीटमेंट सुविधाओं के अभाव की ओर भी ध्यान दिलाया था. हालांकि, उसने परियोजना को रोकने से इनकार कर दिया था और केवल इसके क्रियान्वयन में एक संतुलित और टिकाऊ दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया था.

प्रगति और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के बाद, हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि प्रस्तावित जेटी का मुख्य उद्देश्य यात्रियों का जहाज पर चढ़ना और उतरना था और कुछ नहीं. इसके कारण सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई. क्लीन एंड हेरिटेज कोलाबा रेजिडेंट्स एसोसिएशन और कोलाबा और कफ परेड के तीन निवासियों  ने उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की थीं.

याचिकाकर्ताओं ने टर्मिनल के निर्माण की अनुमति देने वाले राज्य सरकार के फैसले को रद्द करने की मांग की थी. उठाई गई आपत्तियों में यह भी शामिल था कि परियोजना स्थल गेटवे ऑफ इंडिया, जो एक संरक्षित धरोहर स्मारक है, के निकट स्थित है और टर्मिनल तक पहुंच प्रदान करने के लिए गेटवे प्रोमेनेड के साथ समुद्र की ओर वाली दीवार के एक हिस्से को हटाने का प्रस्ताव है.

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, परियोजना के डिजाइन में एक जेटी और टेनिस रैकेट के आकार का टर्मिनल प्लेटफ़ॉर्म शामिल है, जिसमें वीआईपी लाउंज, प्रतीक्षालय, टिकट काउंटर, प्रशासनिक स्थान और 150 वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था है. यह भी तर्क दिया गया कि परियोजना की स्वीकृति प्रक्रिया स्थानीय निवासियों को कोई सूचना दिए बिना या सार्वजनिक परामर्श लिए बिना ही पूरी कर ली गई.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मुंबई यातायात पुलिस ने अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) तब जारी किया जब क्षेत्र में पहले से ही भारी भीड़भाड़ और ट्रैफ़िक जाम की समस्या थी. उन्होंने महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण, विरासत संरक्षण समिति और यातायात पुलिस द्वारा दी गई स्वीकृतियों को भी चुनौती दी थी.

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