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न्यूज़ क्लिक के फाउंडर की रिहाई: ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर सकती पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब समझिए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत  ‘‘सबसे अटूट'' मौलिक अधिकार है. इसे भी किसी तरह नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया जा सकता है.

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न्यूज़ क्लिक के फाउंडर की रिहाई: ऐसे ही गिरफ्तार नहीं कर सकती पुलिस, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब समझिए
प्रतीकात्मक

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ‘न्यूज क्लिक' के फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ को बुधवार शाम रिहा कर दिया गया. देश की सबसे बड़ी अदालत ने यूएपीए मामले में उनकी गिरफ्तारी और रिमांड को गलत माना. कोर्ट का यह फैसला अपने आप में एक नजीर है. इसका असर आने वाले दिनों में दूसरे फैसलों पर भी दिख सकता है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिए किसी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस के सामने एक साफ-साफ लकीर खींच दी है. कोर्ट ने साफ कहा कि गिरफ्तारी के वक्त पुलिस को इसका आधार लिखित तौर पर देना होगा. जानिए आखिर सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला सुनाते हुए क्या-क्या कहा और इस फैसले का एक आम आदमी के लिए क्या मतलब है...

पुरकायस्थ की रिहाई का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

गिरफ्तारी का आधार जानना आम नागरिक का मौलिक अधिकार

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूएपीए या अन्य कानून के तहत किसी भी शख्स की गिरफ्तारी से पहले अब पुलिस को पहले लिखित में ये बताना जरूरी होगा कि उसकी गिरफ्तारी किस आधार पर की जा रही है. इसके लिए लिखित में भी सूचित करना होगा. कोर्ट सुनवाई के दौरान ये भी साफ कर दिया है कि किसी भी इंसान के लिए कानूनी कार्रवाई एक जैसी होनी चाहिए और उसे किसी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

गिरफ्तारी के लिखित आधार की कॉपी जल्द मिलना जरूरी

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधारों की एक कॉपी गिरफ्तार किए गए शख्स को ‘‘बिना किसी अपवाद के जल्द से जल्द दी जानी चाहिए''. कोर्ट की इस टिप्पणी से ये साफ हो गया कि गिरफ्तार शख्स को हर हाल में जल्द से जल्द गिरफ्तारी के लिखित आधारों की एक कॉपी मिलनी चाहिए, ताकि उसे अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई की पूरी जानकारी हो.

गिरफ्तारी की रिमांड कॉपी ना मिलने पर गिरफ्तारी अवैध

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई झिझक नहीं है कि लिखित रूप में गिरफ्तारी के लिए रिमांड कॉपी नहीं दी गई, जिसके चलते गिरफ्तारी अवैध है.” जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने जो कहा उससे इस बात की रिमांड की कॉपी ना मिलने पर गिरफ्तारी को भी अवैध साबित किया जा सकता है. 

मौलिक अधिकारों पर नहीं किया जा सकता कब्जा

मौलिक अधिकार पर अतिक्रमण करने के किसी भी प्रयास को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 द्वारा ऐसे मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटना होगा. कोर्ट की इस टिप्पणी से भी साफ हो रहा है कि अगर ऐसा होता है तो उसे इंसान के मौलिक अधिकार का हनन माना जाएगा.

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अटूट अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत  ‘‘सबसे अटूट'' मौलिक अधिकार है. इसे भी किसी तरह नजरअंदाज या अनदेखा नहीं किया जा सकता है. सुनवाई के दौरान कोर्ट की कही इस बात का स्पष्ट संदेश है कि हर नागरिक के लिए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार की अपनी विशेष अहमियत है.

कोर्ट ने पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को क्यों ठहराया अवैध

सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए के तहत एक मामले में पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को ‘कानून की नजर में अवैध' करार दिया और उन्हें जेल से रिहा तुरंत करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 के तहत ‘‘सबसे अटूट'' मौलिक अधिकार है.

फैसला लिखते हुए, न्यायमूर्ति मेहता ने कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी, उसके बाद पिछले साल 4 अक्टूबर का रिमांड आदेश और दिल्ली उच्च न्यायालय का 15 अक्टूबर का रिमांड को वैध करने का आदेश, कानून के विपरीत था और इसलिए इसे रद्द कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई आदेश का हवाला देते हुए क्या कहा

इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूएपीए या अन्य अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप में सूचित किया जाना मौलिक और वैधानिक अधिकार है. किसी को भी ऐसे ही नहीं उठा सकते.

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की हर दलील को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई और संदीप मेहता की बेंच ने कहा, "हम अपीलकर्ता को मुचलका प्रस्तुत करने की आवश्यकता के बिना रिहा करने का निर्देश देने के लिए राजी हो जाते, लेकिन चूंकि आरोप पत्र दायर किया गया है, इसलिए हमें यह निर्देश देना उचित लगता है कि अपीलकर्ता को निचली अदालत की संतुष्टि के मुताबिक जमानती मुचलका जमा करने पर रिहा किया जाए. 

इसके बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने पुरकायस्थ को 1 लाख रुपये के जमानत बांड और तीन शर्तों पर रिहा करने का आदेश दे दिया है. कोर्ट ने इस मामले में सशर्त जमानत देते हुए कहा कि वह मामले में गवाहों से संपर्क नहीं करेंगे और कोर्ट की अनुमति के बिना विदेश यात्रा पर भी नहीं जाएंगे.


कोर्ट में दिल्ली पुलिस का बड़ा दावा 

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में बड़ा दावा किया था. दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि आरोपी को मौखिक तौर पर गिरफ्तारी का आधार बताया गया, साथ ही अरेस्ट मेमो दिया गया था. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के अनुसार FIR कोई इनसाइक्लोपीडिया तो है नहीं. ऐसे में जांच अधिकारी को अधिकार है कि वह मामले की छानबीन करे और चार्जशीट भी दाखिल करे. 

न्यूजक्लिक फाउंडर पर क्या आरोप

पोर्टल के माध्यम से राष्ट्र-विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कथित चीनी फंडिंग के मामले में पुरकायस्थ को गिरफ्तार किया गया था. पुरकायस्थ के खिलाफ आरोप लगाया गया कि ‘न्यूजक्लिक' को चीन के पक्ष में प्रचार के लिए कथित तौर पर धन मिला था.

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