
- SC की संविधान पीठ ने नेपाल और बांग्लादेश में राजनीतिक हालात का उल्लेख करते हुए अपने संविधान पर गर्व जताया.
- चीफ जस्टिस ने नेपाल की यात्रा के दौरान वहां के सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस से मुलाकात की और लुंबिनी दर्शन किए.
- तुषार मेहता ने राज्यपालों की विधेयक मंजूरी में देरी के आंकड़ों का हवाला देते हुए उनकी शक्तियों का बचाव किया.
नेपाल में मौजूदा हालात पर सुप्रीम कोर्ट में एक केस के सुनवाई के दौरान पांच जजों की संविधान पीठ ने टिप्पणी की है. मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व है. उन्होंने पड़ोसी देशों के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि देखिए हमारे पड़ोसी राज्यों में क्या हो रहा है. नेपाल में भी हमने देखा. जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इस बात को आगे बढ़ाते हुए बांग्लादेश का जिक्र किया.
सीजेआई ने कहा कि देखिए हमारे पड़ोसी राज्यों में क्या हो रहा है. नेपाल में भी हमने देखा. जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि बांग्लादेश में भी ऐसा ही हुआ. संविधान पीठ राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई कर रही है. गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही चीफ जस्टिस गवई नेपाल की यात्रा पर गए थे. वहां उन्होंने नेपाल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रकाश मानसिंह राउत के साथ मुलाकात भी की थी. चीफ जस्टिस ने नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी में भी दर्शन पूजन कर दीप जलाए.
यह टिप्पणी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा संविधान में राज्यपालों की शक्तियों का बचाव करते हुए दी गई दलीलों के जवाब में आईं. एसजी मेहता ने कहा कि उनके पास अनुभवजन्य आंकड़े हैं जो दर्शाते हैं कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों को एक महीने से ज़्यादा समय तक सुरक्षित रखने का मामला कितना दुर्लभ है. हालांकि, मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, "हम आंकड़े नहीं ले सकते. यह उनके साथ न्याय नहीं होगा. हमने उनका आंकड़े नहीं लिए, तो हम आपका कैसे ले सकते हैं?
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि हम इसमें नहीं जाएंगे. फिर हमें अनावश्यक रूप से आंकड़ों में जाना होगा. पहले आपने उनके आंकड़ों पर आपत्ति जताई थी. एसजी मेहता ने कहा कि 90% विधेयकों को एक महीने के भीतर मंजूरी दे दी गई. 1970 से लेकर 2025 में अब तक केवल 20 विधेयक ही सुरक्षित रखे गए हैं, जिनमें ये 7 विधेयक भी शामिल हैं.
रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई के दौरान यह मामला तब उठा तब SG की तरफ से यह डाटा दिया गया कि 1970 से लेकर अब तक 17 हजार बिल राज्यपालों के पास भेजे गए है, जिनमें से 90 प्रतिशत बिल एक महीने के अंदर पास किए गए. अभी तक मात्र 20 बिल ही ऐसे हैं जो पास नहीं किए गए है.
इसपर कोर्ट ने कहा कि हम डाटा पर नहीं जाएंगे, क्योंकि अपने (SG) ने याचिकाकर्ताओं को डाटा देने पर आपत्ति उठाई थी. जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा हमारा संविधान 75 सालों से संविधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से चलता आ रहा है, उस दौरान चाहे 50 हो 90 प्रतिशत बिल पास हुए हो इसका कोई मतलब नहीं है.
यह बात उन्होंने तब कहीं जब SG ने 1970 से 2025 के बीच पास हुए बिल का डाटा कोर्ट मे सामने रखने की दलील दी. हालांकि, SG ने अपने डाटा में राज्यपालों के द्वारा पास किए गए बिलों को तीन कैटेगरी में कोर्ट के सामने रखते हुए कहा था कि 90 बिल एक महीने में और बाकी तीन और कुछ ही ऐसे हैं जो छह महीना के बाद ही पारित किए गए है.
उन्होंने कोर्ट को बताया कि कुछ ही बिल ऐसे होते हैं जो अट्रॉशियस या संविधान की भावना के खिलाफ होते हैं. वहीं, पारित नहीं किया जाता. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हर एक बिल की स्थिति अलग-अलग होती है जिसके आधार पर राज्यपाल उन पर निर्णय लेते हैं. हालांकि, आज प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का विरोध करने वाले राज्यों की तरफ से दलीलें पूरी कर ली गई हैं. कल भी इस मामले पर केंद्र सरकार की ओर से दलील जारी रहेगी.
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