तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
आय से अधिक संपत्ति के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट से बरी हुई तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ दायर याचिका में कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर से अपनी बात दोहराते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने संपत्ति का गलत आकलन किया है। हाईकोर्ट का आदेश कानून का तमाशा और गैरकानूनी है। जयललिता को बरी करने से कानून की हार हुई है इसलिए कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट मे कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता की संपत्ति का गलत आकलन किया है। अगर हाईकोर्ट के आकलन को स्वीकार किया जाए तो आय से अतिरिक्त संपत्ति 14 38 लाख 93 हजार 645 रुपये बैठती है जोकि 41 फीसदी अधिक है। यह उनकी संपत्ति का 8.12 फीसदी नहीं है। ऐसे में इस आधार पर आरोपियों को बरी करना सही नहीं है।
जयललिता की संपत्ति का पूरा आकलन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट को कहा कि हाईकोर्ट से संपत्ति का टोटल करने में गलती हुई है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जयललिता की संपत्ति को 8.12 फीसदी बढ़ा हुआ बताया है, जबकि संपत्ति का कुल आकलन करने पर यह 76.70 फीसदी अतिरिक्त बैठती है। अगर आरोपी अपने द्वारा कराई गई कंस्ट्रक्शन की बात अदालत में स्वीकार रहा है तो यह खर्च मिलाकर उनकी कुल आय से 93.60 फीसदी अतिरिक्त संपत्ति हो जाती है। इस तरह साबित होता है कि जयललिता की संपत्ति के आंकलन में हाईकोर्ट से गलती हुई है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जय ललिता के वकील को कहा था कि वह इस केस से संबंधित उनके गवाहों और इस केस से संबंधित दस्तावेजों को अगली सुनवाई से पहले अदालत के समक्ष दायर कर दे।
दरअसल आय से अधिक संपत्ति के मामले में स्पेशल कोर्ट ने जया और तीन अन्य को चार साल की सजा और 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसकी वजह से उन्हें सितंबर 2014 में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी, लेकिन पिछले साल मई मे कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था और कहा था कि अगर आय दस फीसदी ज्यादा हो तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता। इसके बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बनी थी। कर्नाटक हाई कोर्ट के जयललिता को बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट के फैसले पर कर्नाटक सरकार और डीएमके ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर कहा गया था कि हाइकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति का गलत आंकलन किया है। हाईकोर्ट का आदेश सिर्फ तमाशा और गैरकानूनी है। जया को बरी करने से कानून की हार हुई है इसलिए कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए और उनकी सदस्यता को रद्द रखा जाए।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
सुप्रीम कोर्ट मे कर्नाटक सरकार की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में जयललिता की संपत्ति का गलत आकलन किया है। अगर हाईकोर्ट के आकलन को स्वीकार किया जाए तो आय से अतिरिक्त संपत्ति 14 38 लाख 93 हजार 645 रुपये बैठती है जोकि 41 फीसदी अधिक है। यह उनकी संपत्ति का 8.12 फीसदी नहीं है। ऐसे में इस आधार पर आरोपियों को बरी करना सही नहीं है।
जयललिता की संपत्ति का पूरा आकलन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट को कहा कि हाईकोर्ट से संपत्ति का टोटल करने में गलती हुई है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जयललिता की संपत्ति को 8.12 फीसदी बढ़ा हुआ बताया है, जबकि संपत्ति का कुल आकलन करने पर यह 76.70 फीसदी अतिरिक्त बैठती है। अगर आरोपी अपने द्वारा कराई गई कंस्ट्रक्शन की बात अदालत में स्वीकार रहा है तो यह खर्च मिलाकर उनकी कुल आय से 93.60 फीसदी अतिरिक्त संपत्ति हो जाती है। इस तरह साबित होता है कि जयललिता की संपत्ति के आंकलन में हाईकोर्ट से गलती हुई है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जय ललिता के वकील को कहा था कि वह इस केस से संबंधित उनके गवाहों और इस केस से संबंधित दस्तावेजों को अगली सुनवाई से पहले अदालत के समक्ष दायर कर दे।
दरअसल आय से अधिक संपत्ति के मामले में स्पेशल कोर्ट ने जया और तीन अन्य को चार साल की सजा और 100 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसकी वजह से उन्हें सितंबर 2014 में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी, लेकिन पिछले साल मई मे कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था और कहा था कि अगर आय दस फीसदी ज्यादा हो तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता। इसके बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बनी थी। कर्नाटक हाई कोर्ट के जयललिता को बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट के फैसले पर कर्नाटक सरकार और डीएमके ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर कहा गया था कि हाइकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति का गलत आंकलन किया है। हाईकोर्ट का आदेश सिर्फ तमाशा और गैरकानूनी है। जया को बरी करने से कानून की हार हुई है इसलिए कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए और उनकी सदस्यता को रद्द रखा जाए।
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