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दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना की मानहानि के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर दोषी करार

नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को जुर्माना या दो साल की सजा या फिर दोनों तरह का दंड भुगतना पड़ सकता है.

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दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना की मानहानि के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर दोषी करार
दिल्ली के साकेत कोर्ट ने अपने आदेश में मेधा पाटकर को दोषी करार दिया.
नई दिल्ली:

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (VK Saxena) की ओर से दायर किए गए आपराधिक मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) की संस्थापक सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar) को दोषी ठहराया गया है. मेधा पाटकर को इस मामले में जुर्माना या दो साल की सजा या फिर दोनों तरह का दंड भुगतना पड़ सकता है.

यह मामला सन 2006 में दायर किया गया था. दिल्ली के साकेत कोर्ट में इसकी सुनवाई चली. मेधा पाटकर को दोषी ठहराने का आदेश मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पारित किया.

मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी प्रतिष्ठा बड़ी चीज है. यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंध, दोनों को प्रभावित करती है और समाज में किसी भी व्यक्ति की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है.

मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि, मेधा पाटकर ने दावा किया कि शिकायतकर्ता ने मालेगांव का दौरा किया था, एनबीए की प्रशंसा की थी, 40,000 रुपये का चेक जारी किया था, जो लाल भाई समूह से आया था. साथ ही कहा था कि वह कायर हैं, देशभक्त नहीं. मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा, "आरोपी ने इस दावे को प्रकाशित किया इससे याचिकाकर्ता को नुकसान पहुंचाने के उसके इरादे का पता चलता है.''

मजिस्ट्रेट ने कहा कि मेधा पाटकर के एलजी को कायर बताने वाले बयान और यह आरोप कि वे हवाला लेनदेन में संलिप्त थे, न केवल मानहानि का नुकसान है, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने वाला है. उन्होंने कहा, "इसके अलावा, यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हाथों में गिरवी रख रहे हैं, उनकी ईमानदारी पर सीधा हमला था."

कोर्ट के फैसले के अनुसार, मेधा पाटकर ने अपने दावों के पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए. कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि, "सारे सबूत और गवाहों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है उनकी प्रतिष्ठा को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा है."

सन 2000 में शुरू हुई थी कानूनी लड़ाई 

मेधा पाटकर और वीके सक्सेना की कानूनी लड़ाई सन 2000 से चली आ रही है. उस समय लेफ्टिनेंट गवर्नर सक्सेना अहमदाबाद में स्थित एक गैर सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे और खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष भी थे. मेधा पाटकर ने तब उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित किए जाने पर सक्सेना के खिलाफ केस दर्ज कराया था.

वीके सक्सेना ने सन 2006 में एक टीवी चैनल पर उनके बारे में "अपमानजनक" टिप्पणी करने और प्रेस में "अपमानजनक" बयान जारी करने का आरोप लगाते हुए मेधा पाटकर के खिलाफ दो मामले दर्ज कराए थे.

शुरू से ही विवादों में घिरी रही सरदार सरोवर बांध परियोजना

नर्मदा बचाओ आंदोलन की ओर से दावा किया गया था कि गुजरात में सरदार सरोवर बांध के निर्माण, जिसका उद्घाटन सन 2017 में किया गया था, से 40,000 परिवार प्रभावित हो सकते हैं. इस मुद्दे को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया गया था. कहा गया था कि डूब क्षेत्र में आने वाले इन परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़ सकते हैं.

सरदार सरोवर बांध परियोजना सन 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसकी आधारशिला रखे जाने के बाद से ही विवादों में घिर गई थी.

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