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दोस्ती से टकराव तक... ट्रंप की जिद और क्यों खेती-किसानी के लिए अड़ गया भारत

कृषि मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार अमेरिका के टैरिफ के ऐलान के बीच भारत यूएस से मिनी ट्रेड डील की कोशिश कर रहा था.  लेकिन इस मिनी ट्रेड डील ना होने की सबसे बड़ी वजह थी कृषि और डेयरी सेक्टर. इस वजह से ही ये डील नहीं हो पाई है.

अमेरिका को पीएम मोदी की दो टूक

  • प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत अपने किसानों के हितों के खिलाफ किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेगा
  • अमेरिका ने भारत पर कृषि क्षेत्र खोलने का दबाव बनाया लेकिन भारत ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया.
  • भारत ने जीएम खाद्य पदार्थों के आयात पर रोक लगाई है जिससे अमेरिका की मिनी ट्रेड डील असफल रही है
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नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों-इशारों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बोलती बंद कर दी है. पीएम मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि उनके लिए किसानों का हित हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है.पीएम मोदी ने आगे कहा कि भारत अपने किसानों के हितों के खिलाफ कभी भी समझौता नहीं करेगा.पीएम मोदी अपने इस बयान से अमेरिका को कड़ा संदेश भी दे दिया है. पीएम मोदी का ये बयान उस समय आया जब अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा लगाया गया 25 फीसदी टैरिफ आज से लागू हो गया है. 

कृषि मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार अमेरिका के टैरिफ के ऐलान के बीच भारत यूएस से मिनी ट्रेड डील की कोशिश कर रहा था.  लेकिन इस मिनी ट्रेड डील ना होने की सबसे बड़ी वजह थी कृषि और डेयरी सेक्टर. इस वजह से ही ये डील नहीं हो पाई है. अमेरिका में जीएम फूड का प्रोडक्शन काफी होता है. जबकि भारत की पॉलिसी है कि हम जीएम फूड का आयात नहीं सकते है. अमेरिका चाहता था कि भारत ये फूड आयात कराए लेकिन भारत ने इसके पर रोक लगा दी थी. 

अमेरिका, भारत के कृषि बाजार में अपने सस्ते सामान को बेचना चाहता था. लेकिन भारत में 70 फीसदी लोग किसानी क्षेत्र पर निर्भर हैं. ऐसे में भारत अगर इस बात की अनुमति देता तो भारत अमेरिका के सस्ते जीएम फूड का डंपिंग यार्ड बनकर रह जाता. ऐसा करने से भारत के कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का हित कमजोर होता है.

पीएम मोदी के इस बयान से ये तो साफ है कि भारत घरेलू हितों को ताक पर रखकर अमेरिका के कृषि-दुग्ध और जीएम उत्पादों के लिए वो देश को डंपिग ग्राउंड नहीं बनने देगी. यही वजह है कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर मार्च से पांच दौर की वार्ता बेनतीजा रही. अगले दौर की बातचीत अगस्त के अंत में हो सकती है.

आपको बता दें कि अमेरिका बीते लंबे समय से भारत पर कृषि क्षेत्र को व्यापार के लिए खोलने के लिए दबाव बना रहा है.वो भारत को एक बड़े बाज़ार के रूप में देखता है लेकिन भारत खाद्य सुरक्षा, आजीविका और लाखों किसानों के हित का हवाला देकर इससे बचते रहा है. भारत ये कभी नहीं चाहता कि वह अमेरिका के दबाव में आकर अपने किसानों की स्थिति को डमाडोल होने छोड़ दे. 

बात अगर 1950 और 60 के दशक में भारत अपने नागरिकों को खाना खिलाने के लिए भी विदेश से मिलने वाली सहायत पर निर्भर करता था. लेकिन कृषि क्षेत्र में मिली कई बड़ी सफतलाओं ने उसकी ये स्थिति को पूरी तरह से पलटकर रख दिया है. आज का भारत ना सिर्फ अपने लिए अनाज उगाता है बल्कि दुनिया के जरूरतमंद देशों को मदद भी करता है. 

रोजगार के लिए किसानी पर निर्भर है आधी आबादी

भारत में आज भी किसानी से देश की आधी आबादी यानी करीब 70 करोड़ लोगों का भरण पोषण हो रहा है. यही वजह है कि कृषि क्षेत्र को भारत की रीड़ की हड्डी कहा जाता है. आज स्थिति ये है कि खेती भारत के करीब आधे कामगारों को रोजगार देती है.

सब्सिडी देकर बाजार को बिगाड़ने का खेल भी समझिए

आज की तारीख में अमेरिकी सरकार अपने कृषि बाजार को कई तरह की सब्सिडी देती है. इससे अनाज, फल-सब्जी से लेकर तमाम कृषि उत्पादों की कीमतें काफी कम रहती हैं. अमेरिकी इन्हीं कम दामों के सहारे दूसरे देशों में अपने कृषि उत्पादों को डंप कर रहा है. अमेरिकी कृषि विभाग किसानों का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट तरीके से कई सरकारी मदद देता है. इसका असर ये होता है कि वहां के उत्पाद दूसरे देशों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं.

अमेरिका ने मैक्सिको को बना दिया था डंपिंग यार्ड

अमेरिका ने नाफ्टा ट्रेड डील के बाद बड़े पैमाने पर अपने देश से मक्का मैक्सिको को निर्यात किया. मैक्सिको के किसान इन बनावटी सस्ते दामों का मुकाबला नहीं कर सके. नतीजा हुआ कि कॉर्न उत्पादक बर्बाद हो गए. ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बढ़ी और खेतिहर किसान शहरों में मजदूरी के लिए पलायन को मजबूर हुए. अब अमेरिका भारत को लेकर भी यही चाहता है. वो चाहता है कि भारत को एक डंपिंग यार्ड की तरह इस्तेमाल करे, जहां वह अपने सस्ते उत्पादों की मदद से भारतीय कृषि को ही तबाह कर दे.  
 

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