सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar) ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (VK Saxena) की शिकायत पर उनके खिलाफ दर्ज मानहानि के मामले (Defamation Case) में फैसले को चुनौती देने के लिए सत्र न्यायालय का रुख किया है. ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए उन्हें एक महीने की जमानत दी गई है. विशाल सिंह की अदालत सोमवार को उनकी अपील पर सुनवाई करेगी.
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने एक जुलाई को फैसला सुनाया था. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि उनकी उम्र, बीमारी और सजा की अवधि को देखते हुए पांच महीने की जेल कोई कड़ी सजा नहीं है.
अदालत ने कहा कि अच्छे आचरण की परिवीक्षा की शर्त पर रिहाई के लिए उनकी प्रार्थना खारिज कर दी गई. कोर्ट ने साथ ही कहा कि वे अपने बचाव में कोई सबूत पेश नहीं कर सकीं.
वीके सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार ने कहा कि उन्हें कोई मुआवजा नहीं चाहिए और वे इसे डीएलएसए को दे देंगे. अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता को मुआवजा दिया जाएगा और फिर आप इसे अपनी इच्छा अनुसार निपटा सकते हैं.
वीके सक्सेना की मानहानि के मामले में कोर्ट ने 24 मई को मेधा पाटकर को दोषी करार दिया था. सजा पर बहस सुनने के बाद कोर्ट ने 30 मई तक फैसला सुरक्षित रख लिया था.
अदालत के आदेश के बाद मेधा पाटकर ने कहा, "सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता. हम जनजातियों और दलितों के लिए काम कर रहे हैं. हम इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे."
इससे पहले सक्सेना के वकील ने अदालत से मेधा पाटकर के लिए अधिकतम सजा की मांग की थी. दूसरी ओर मेधा पाटकर के वकील ने उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें अच्छी स्थिति में परिवीक्षा पर रिहा करने की मांग की थी.
उन्हें जिस मानहानि मामले में दोषी ठहराया गया है, वह 2001 में वीके सक्सेना ने दायर किया था.
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