दिल्ली की एक अदालत ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को 23 साल पुराने मानहानि के एक मामले में पांच महीने के साधारण कारावास की सोमवार को सजा सुनायी. यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने उनके खिलाफ उस वक्त दायर किया था, जब वह (सक्सेना) गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) का नेतृत्व कर रहे थे. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने यह कहते हुए पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया कि उनके जैसे व्यक्ति द्वारा झूठे आरोप लगाने से अपराध गंभीर हो गया है. अदालत ने पाटकर से यह राशि सक्सेना को देने को कहा. हालांकि, अदालत ने 70 वर्षीय पाटकर को फैसले के खिलाफ अपीलीय अदालत में जाने का मौका देने के लिए सजा को एक महीने की अवधि के लिए निलंबित कर दिया.
अदालत ने कहा कि पाटकर की उम्र और बीमारियां उन्हें 'गंभीर' अपराध से मुक्त नहीं करती हैं, क्योंकि सक्सेना की 'प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता और सामाजिक प्रतिष्ठा को गहरी क्षति पहुंची है. अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पाटकर ने कहा कि उनके वकील इस आदेश को चुनौती देंगे. उन्होंने अदालत कक्ष के बाहर कहा, "सत्य को पराजित नहीं किया जा सकता. हम जो भी काम कर रहे हैं, वह गरीबों, आदिवासियों और दलितों के लिए है... हम विकास के नाम पर विनाश और विस्थापन नहीं चाहते हैं. हमारी किसी को बदनाम करने की कोई इच्छा नहीं है. मेरे वकील आगे कानूनी उपाय करेंगे... हम इसे (अदालती आदेश) चुनौती देंगे.'
मजिस्ट्रेट अदालत ने अपने आठ पन्नों के आदेश में कहा, "जबकि दोषी व्यक्ति कई पुरस्कारों से सम्मानित एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनका यह दर्जा उनके कृत्यों को और भी अधिक निंदनीय बनाता है और समाज में उनका सम्मानित स्थान सत्य को बनाए रखने और ईमानदारी से काम करने की जिम्मेदारी देता है. यह तथ्य उनके दायित्य को और बढ़ाता है कि उनके दर्जे के व्यक्ति ने इस तरह के झूठे और नुकसानदेह आरोप लगाए हैं, क्योंकि यह जनता के विश्वास को कमतर करता है और एक नकारात्मक उदाहरण स्थापित करता है."
इसने कहा कि जबकि पाटकर की उम्र और चिकित्सा स्थिति ऐसे कारक थे जिनके लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता थी, लेकिन ये 'उन्हें उनके अपराध की गंभीर प्रकृति से मुक्त नहीं करते. अदालत ने कहा, "उद्देश्य एक ऐसी सज़ा देना है जो न्यायसंगत और मानवीय दोनों हो. एक या दो साल की लंबी अवधि की कारावास अवधि उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए कठोर हो सकती है, जबकि एक या दो महीने की बहुत कम अवधि शिकायतकर्ता को न्याय से वंचित कर देगी. इसलिए, पांच महीने की साधारण कारावास की सजा उपयुक्त है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सजा उपयुक्त है, लेकिन उनकी परिस्थितियों को देखते हुए अत्यधिक कठोर नहीं है."
न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि पाटकर को आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए सक्षम बनाने हेतु सजा को एक महीने के लिए निलंबित किया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाना सक्सेना के लिए एक 'क्षतिपूरक उपाय' होगा. इसमें कहा गया है कि जुर्माने में 23-24 वर्षों की कानूनी लड़ाई में सक्सेना को हुई 'व्यापक क्षति और दीर्घकालिक पीड़ा' को भी स्वीकार किया गया है.
बता दें कि सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस में मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ 2001 में दो मामले दायर किए थे.
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