वाहनों से निकलने वाला हानिकारक धुआं और हवा में घुल रही सड़क से उड़ती धूल मुंबई की ज़हरीली हवा की सबसे बड़ी ज़िम्मेदार है, एक अध्ययन में ये बात सामने आयी है. मुंबई में गाड़ियों की संख्या दो दशकों में करीब तीन सौ फ़ीसदी बढ़ी है. इसमें 35% वाहन 15 साल से पुरानी श्रेणी के हैं, जो वाहनों से हुए PM10 उत्सर्जन का 49% उत्सर्जित करते पाए गए हैं.
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका अर्बन क्लाइमेट में प्रकाशित “मुंबई उत्सर्जन” पर इस नये अध्ययन ने ये साफ़ किया है कि ट्रांसपोर्ट से 19.6%, सड़क से उड़ती धूल 19.4%, इंडस्ट्री 18%, सॉलिड वेस्ट जलाने से 13.8%, निर्माण कार्य 6.3% और स्लम 5.2% हवा प्रदूषित कर रहे हैं.
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के क्लीन एयर एक्शन विभाग के प्रोग्राम निदेशक श्रीकुमार के ने कहा कि मुंबई की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली सबसे अच्छी मानी जाती थी, लेकिन बीते कुछ समय में हालात बदले हैं. इस पर फ़ौरन ध्यान देने की ज़रूरत है.
श्रीकुमार ने कहा, “पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल यहां बहुत अच्छे ढंग से होता आया है, लेकिन कुछ समय से कम हुआ है. मेट्रो शुरू हुई है तो लोगों को इस ओर बढ़ना चाहिए. गाड़ियों की संख्या चालीस लाख तक पहुंच गई है, ये बहुत बड़ा फिगर है. बाहर से आने वाली जो 7-8 लाख गाड़ियां हैं, उन्हें भी इसमें शामिल करके डेटा को देखा जाए तो पता चलेगा कि कितना रियल में शहर उत्सर्जन झेल रहा है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए फिर से जागरुकता लानी होगी.”
- मुंबई में रजिस्टर्ड वाहनों की कुल संख्या 2000 में 10 लाख से बढ़कर मार्च 2020 में करीब 40 लाख हो गई.
- अकेले मुंबई में पूरे राज्य में वाहनों की कुल संख्या का 10.3% है.
- मुंबई के कुल वाहनों में से 35% 15 साल से अधिक पुरानी श्रेणी के हैं और वे वाहन क्षेत्र से कुल PM10 उत्सर्जन का 49% उत्सर्जित करते पाए गए हैं और इसलिए उन्हें “महा-उत्सर्जक” माना जाता है.
- वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण मुंबई और भारत के अन्य मेट्रो शहरों में वायु प्रदूषण का सबसे अधिक ख़तरा है.
- वाहनों के कुल बेड़े में दोपहिया वाहनों का योगदान सबसे अधिक 54% और कारों का 34% है.
- स्वच्छ ईंधन का उपयोग अभी भी सीमित है और अधिकांश वाहन अभी भी पेट्रोल/डीजल पर निर्भर हैं.
- हालांकि, 2019 और 2020 के बीच मुंबई में सीएनजी वाहनों में 9% की वृद्धि हुई है.
वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन और हवा में उड़ने वाली सड़क की धूल PM10 में योगदान देने वाले प्रमुख प्रदूषक हैं. इसके बाद औद्योगिक उत्सर्जन, नगर पालिका ठोस कचरे को खुले में जलाने से निकलने वाली गैस और निर्माण कार्य से आते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि PM10 कण इतने छोटे होते हैं कि वे प्रभावी रूप से गैस के रूप में कार्य करते हैं. जब सांस अंदर ली जाती है तो ये फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं. खांसी, अस्थमा के दौरे और ब्रोंकाइटिस से लेकर हाई ब्लड प्रेशर, दिल का दौरा, स्ट्रोक और समय से पहले मौत तक कई स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं. युवा और बुजुर्ग लोग सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं.
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