विज्ञापन
This Article is From Jan 01, 2021

सियाचिन का हीरो : सबसे दुर्गम युद्धक्षेत्र में भारत का परचम लहराने वाले रिटायर्ड कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का निधन

कर्नल नरेंद्र बुल ने 1984 में सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया था. इस कदम के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च करने में मदद मिली थी.

सियाचिन का हीरो : सबसे दुर्गम युद्धक्षेत्र में भारत का परचम लहराने वाले रिटायर्ड कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का निधन
कर्नल नरेंद्र के नेतृत्व में भारतीय सेना ने सियाचिन पर खोजी अभियान निकाला था.
नई दिल्ली:

सियाचिन ग्लेशियर में भारत की मौजूदगी और सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम योगदान देने वाले कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार (रिटायर्ड) का गुरुवार- साल 2020 के आखिरी दिन- निधन हो गया. रावलपिंडी, जो कि अब पाकिस्तान में है, में 1933 को जन्मे कर्नल नरेंद्र बुल ने 1984 के अप्रैल महीने में सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्व किया था. इस सोचे-समझे रणनीतिगत कदम के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च करने में मदद मिली थी.

कर्नल कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'हम इस खोजी अभियान पर गए, और हम ऊंचे-ऊंचे दर्रों पर चढ़ाई कर रहे थे. जब भी हम आगे बढ़ते थे, पाकिस्तानी आते थे और हमारे ऊपर ही उड़ान भरते रहते थे. और हमें चिढ़ाने के लिए, कि हमारी मौजूदगी का उन्हें पता है, वो रंग-बिरंगा धुआं छोड़ते थे. हमारे पास हथियार नहीं थे और हम काफी डरे हुए थे.'

हालांकि, पाकिस्तानी सेना को इस बात का अंदाजा शायद ही था कि कर्नल नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में आगे बढ़ रही यह टुकड़ी सालतोरो रेंज- जो सियाचिन ग्लेशियर के साथ-साथ लगती है- उसपर पूरी तरह कब्जा करने का रास्ता तय कर रही थी.

यह भी पढ़ें : Vijay Diwas 2020: जानिए, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

रणनीतिक लिहाज से कहें तो सियाचिन के सालतोरो रेंज पर जिसका नियंत्रण होता है, उसका सियाचिन पर कंट्रोल होता है. पश्चिम में पाकिस्तान से और पूर्व में चीन से लगने वाले इस अहम क्षेत्र पर भारत का नियंत्रण है. कर्नल नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में भारतीय सेना ने सियाचिन के दर्रो को नाप लिया और इस ग्लेशियर, जोकि दुनिया का सबसे ऊंचा और दुर्गम युद्धक्षेत्र है, पर कब्जा कर लिया.

elfahv98

इसके कुछ साल पहले 1978 में उन्होंने दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी कंचनजंगा पर इसके उत्तर-पूर्वी दिशा से चढ़ाई की थी. यह कोशिश इसके पिछले 45 सालों में नहीं की गई थी. उन्होंने 24,000 एल्टीट्यूड से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित हिमालय की नौ अन्य चोटियों पर भी खोजी अभियान का नेतृत्व किया था.

कर्नल नरेंद्र कुमार को प्यार से 'बुल' कहा जाता था. उनका गुरुवार को निधन हो गया. दिल्ली में स्थित आर्मी के बरार स्क्वेयर में उनका अंतिम संस्कार किया गया. भारत के पर्वतारोहियों के लिए साल 2020 बड़ी क्षति का साल रहेगा क्योंकि देश ने एक बड़ी हस्ती को खो दिया है.

Video: लद्दाख का जर्रा-जर्रा भारतीय जवानों के पराक्रमों की गवाही देता है: PM मोदी

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com