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शशि थरूर ने की आडवाणी की तारीफ तो कांग्रेस ने बनाई दूरी, पवन खेड़ा बोले- वे हमेशा अपनी राय खुद रखते हैं

देश के उप-प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी इस हफ्ते 98 साल के हो गए. उनके जन्‍मदिन पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने शुभकामनाएं दीं और एक विवाद को भी जन्‍म दे दिया. अब कांग्रेस ने थरूर के आडवाणी को लेकर दिए गए बयान से दूरी बना ली है.

शशि थरूर ने की आडवाणी की तारीफ तो कांग्रेस ने बनाई दूरी, पवन खेड़ा बोले- वे हमेशा अपनी राय खुद रखते हैं
  • कांग्रेस ने शशि थरूर के लालकृष्ण आडवाणी की प्रशंसा वाले बयान से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है.
  • थरूर ने आडवाणी को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं और उनके सार्वजनिक जीवन की सराहना की थी.
  • कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि थरूर अपनी बात कह रहे हैं और कांग्रेस उनके बयान से खुद को अलग करती है.
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नई दिल्‍ली :

कांग्रेस ने रविवार को लालकृष्‍ण आडवाणी की प्रशंसा वाले शशि थरूर के बयान से खुद को अलग कर लिया है. साथ ही कहा कि शशि थरूर अपनी बात कह रहे हैं. यह विवाद उस वक्‍त शुरू हुआ जब थरूर ने भाजपा नेता को जन्मदिन की शुभकामनाएं भेजीं और आलोचना होने पर उसका बचाव भी किया. कांग्रेस सांसद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्‍स पर लिखा कि आडवाणी के लंबे सार्वजनिक जीवन को सिर्फ एक घटना से जोड़कर देखना सही नहीं है. इसके जवाब में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि थरूर अपनी बात कह रहे हैं.

कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने एक्स पर एक पोस्ट में इस मामले को लेकर कहा, "हमेशा की तरह डॉ. शशि थरूर अपनी बात कह रहे हैं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उनके हालिया बयान से खुद को पूरी तरह अलग करती है."

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इसके साथ ही खेड़ा ने कहा कि थरूर का कांग्रेस सांसद और कांग्रेस कार्यसमिति (Congress Working Committee) के सदस्य के रूप में बने रहना "कांग्रेस की विशिष्ट लोकतांत्रिक और उदारवादी भावना को दर्शाता है." सीडब्ल्यूसी पार्टी की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है.

आडवाणी को थरूर की शुभकामनाओं से शुरू हुआ विवाद

सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले चुके आडवाणी को इस साल भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. आडवाणी हाल ही में शुरू हुए विवाद के केंद्र में हैं और यह सब एक्‍स पर एक पोस्ट से शुरू हुआ.

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उप-प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी इस हफ्ते 98 साल के हो गए. शनिवार को भाजपा नेता को शुभकामनाएं देने वालों में शशि थरूर भी शामिल थे.

कांग्रेस नेता ने एक्‍स पर पोस्ट किया, "आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी को उनके 98वें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं! जनसेवा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, उनकी विनम्रता और शालीनता और आधुनिक भारत की दिशा तय करने में उनकी भूमिका अमिट है."

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टिप्‍पणी से थरूर के कई सहयोगी नाराज 

यह उन टिप्पणियों की श्रृंखला में सबसे नई है, जिसने कांग्रेस नेतृत्व को असहज किया है. साथ ही इसने थरूर के कई सहयोगियों को भी नाराज कर दिया है. खासकर ऐसे समय में जब सत्तारूढ़ भाजपा बार-बार गांधी परिवार पर निशाना साध रही है.

प्रख्यात वकील संजय हेगड़े ने कांग्रेस सांसद के पोस्ट को लेकर एक जवाबी एक्‍स पोस्‍ट में कहा, "माफ कीजिए श्रीमान थरूर, इस देश में 'घृणा के बीज' (खुशवंत सिंह के शब्दों में) फैलाना जनसेवा नहीं है." उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में आडवाणी की भूमिका का जिक्र किया.

अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले के कुछ महीनों में आडवाणी ने मस्जिद स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए पूरे देश में रथ यात्राएं निकालीं थीं, यह एक ऐसा अभियान था जिसने भाजपा को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया.

2020 में लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी को बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित षड्यंत्र के आरोपों से बरी कर दिया.

नेहरू-इंदिरा का उदाहरण देकर किया बचाव

अपने पोस्ट का बचाव करते हुए कांग्रेस नेता ने अपनी ही पार्टी के उदाहरण दिए. शशि थरूर ने तर्क दिया कि जवाहरलाल नेहरू के करियर की समग्रता का आकलन चीन के साथ हुए झटके से नहीं किया जा सकता, जबकि इंदिरा गांधी के करियर का आकलन केवल आपातकाल से नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि उनका मानना ​​है कि "हमें आडवाणी जी के प्रति भी यही शिष्टाचार दिखाना चाहिए."

थरूर ने कहा, "सहमत हूं, लेकिन उनकी लंबी सेवा को एक घटना तक सीमित करना, चाहे वह कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, अनुचित है. नेहरूजी के करियर की समग्रता का आकलन चीन की विफलता से नहीं किया जा सकता है, न ही इंदिरा गांधी के करियर का आकलन सिर्फ आपातकाल से किया जा सकता है. मेरा मानना ​​है कि हमें आडवाणीजी के प्रति भी यही शिष्टाचार दिखाना चाहिए."

वंशवाद को लेकर भी लिख चुके हैं लेख

इस हफ्ते की शुरुआत में अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया संगठन प्रोजेक्ट सिंडिकेट के लिए 'भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय है' शीर्षक से लिखे एक लेख में शशि थरूर ने लिखा था, "अब समय आ गया है कि भारत वंशवाद की जगह योग्यतावाद को अपनाए."

कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में असफल होने वाले सांसद ने कहा कि राजनीतिक परिदृश्य में वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए "गंभीर खतरा" है.

उन्होंने कहा, "जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या जमीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंशवाद से होता है तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. कम प्रतिभाओं से चुनाव लड़ना कभी भी फायदेमंद नहीं होता, लेकिन यह खासतौर पर तब समस्याजनक हो जाता है जब उम्मीदवारों की मुख्य योग्यता उनका उपनाम हो."

भाजपा ने इस मौके का फायदा उठाते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा कि यह लेख थरूर की "राहुल गांधी से निराशा" का प्रतीक है. भाजपा प्रवक्ता और पूर्व कांग्रेस नेता शहजाद पूनावाला ने कहा कि थरूर "खतरों के खिलाड़ी" बन गए हैं.

कांग्रेस सांसद उदित राज ने कहा कि "वंशवादी प्रभाव" केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के हर क्षेत्र में मौजूद है.

कांग्रेस सांसद उदित राज ने कहा, "भारत में लगभग हर क्षेत्र में वंशवादी दृष्टिकोण मौजूद है, एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है, एक व्यापारी का बेटा व्यवसाय करता रहता है और राजनीति भी इसका अपवाद नहीं है... नेहरू से लेकर पवार तक, डीएमके से लेकर ममता तक... ऐसे कई उदाहरण हैं... नुकसान यह है कि अवसर केवल परिवारों तक ही सीमित रह जाते हैं. वंशवादी प्रभाव केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं है. यह नौकरशाही, न्यायपालिका और यहां तक कि फिल्म उद्योग तक भी फैला हुआ है."

पीएम मोदी की प्रशंसा कर भी झेल चुके हैं आलोचना 

इस वर्ष की शुरुआत में थरूर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को "निस्संदेह देश का सबसे प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्ति" बताया था, और कहा था कि मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में उनकी व्यक्तिगत अपील मजबूत बनी हुई है.

इस टिप्पणी की कांग्रेस के कुछ वर्गों ने आलोचना की थी. कुछ नेताओं ने इस तरह के बयानों के समय और राजनीतिक संकेतों पर सवाल उठाए थे.

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