राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार की मराठी भाषा में आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती' का आज विमोचन हुआ.नए संस्करण में 2015 के बाद के घटनाक्रम शामिल हैं. इस अवसर पर शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का फैसला सुनाकर सभी को चौंका दिया. पवार ने यहां यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान में अपनी आत्मकथा का विमोचन करने के अवसर पर अध्यक्ष पद छोड़ने का ऐलान किया जिस पर राकांपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विरोध जताया. इस अवसर पर शरद पवार ने कई यादों को साझा किया, जिन्हें वह शायद ही कभी भुला पाएं. इस दौरान पवार ने उस घटना का भी जिक्र किया, जब उनके भतीजे अजीत पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर शपथ ग्रहण की थी.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ राजनेता शरद पवार ने खुलासा किया है कि जिस दिन उनके भतीजे अजीत पवार ने 2019 में अचानक भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ ली थी, उस दिन क्या हुआ था, जब वह उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रहे थे. साथ ही शरद पवार ने अपने पूर्व सहयोगी शिवसेना को 'समाप्त' करने के भाजपा के प्रयासों के बारे में भी बात की. शरद पवार लिखते हैं कि जब उन्हें पता चला कि उनका भतीजा राजभवन में "शपथ ले रहा है" तो वे "हैरान" थे.
पवार अपने संस्मरण में कहते हैं, "जब मुझे 23 नवंबर, 2019 को सुबह करीब 6.30 बजे फोन आया कि अजीत और राकांपा के कुछ विधायक राजभवन में हैं और अजीत, फडणवीस के साथ शपथ ले रहे हैं, तो मैं चौंक गया." उन्होंने कहा, "जब मैंने राजभवन में मौजूद कुछ विधायकों को फोन किया, तो मुझे पता चला कि केवल 10 विधायक वहां पहुंचे हैं और उनमें से एक ने मुझसे कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि मैं इसका समर्थन करता हूं. लेकिन यह केंद्रीय भाजपा की योजना थी. एमवीए (महाराष्ट्रविकास अघाड़ी) की योजना को विफल करने के लिए. ऐसे में मैंने तुरंत उद्धव ठाकरे को फोन किया और उन्हें बताया कि अजीत ने जो कुछ भी किया, वो गलत है, राकांपा और मैं उनका समर्थन नहीं करते. मेरे नाम का इस्तेमाल राकांपा विधायकों को राजभवन ले जाने के लिए किया गया था. मैंने उन्हें सुबह 11 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए कहा."
सत्ता हासिल करने के असफल प्रयास के बाद, अजीत पवार राकांपा खेमे में लौट आए. दरअसल, वह अपने साथ दलबदल करने के लिए पर्याप्त विधायकों को राजी करने में असमर्थ रहे थे. पवार का खुलासा ऐसे समय में हुआ है, जब मुख्यमंत्री बनने के लिए अजीत पवार के फिर से पाला बदलने की अटकलें तेज हैं. अजीत पवार ने इसका खंडन किया है, यह घोषणा करते हुए कि वह "जब तक जीवित हैं" राकांपा के लिए काम करेंगे.
इससे अधिक चौंकाने वाले खुलासे में, पवार सीनियर ने आरोप लगाया है कि भाजपा ने 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में तत्कालीन सहयोगी शिवसेना को खत्म करने की साजिश रची थी, क्योंकि यह आश्वस्त था कि राज्य में अपने स्वयं के विकास के लिए यह आवश्यक था. उनका दावा है कि बीजेपी ने शिवसेना के उम्मीदवारों के खिलाफ कई सीटों पर बागियों को उतारा. पवार लिखते हैं, "भाजपा 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने 30 साल से सहयोगी शिवसेना को खत्म करने के लिए बैठी थी, क्योंकि भाजपा को यकीन था कि वह महाराष्ट्र में तब तक सत्ता हासिल नहीं कर सकती, जब तक कि राज्य में शिवसेना के अस्तित्व को कम नहीं किया जाता."
बीजेपी और शिवसेना ने 2019 का चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन उनकी जीत के बाद हुए सत्ता संघर्ष ने उनके लगभग तीन दशकों के गठबंधन को खत्म कर दिया. उद्धव ठाकरे, जिन्होंने भाजपा के लिए दूसरी भूमिका निभाने से इनकार कर दिया था, वैचारिक रूप से कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बने. ठाकरे ने पिछले साल अपने सहयोगी एकनाथ शिंदे द्वारा तख्तापलट के बाद सत्ता खो दी, जिन्होंने शिवसेना को विभाजित किया और महाराष्ट्र में नई सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ भागीदारी की.
पवार अपनी किताब में लिखते हैं, "2019 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के खिलाफ शिवसेना में उबाल, राजनीतिक उथल-पुथल की अफवाहों के बीच शिवसेना ने भाजपा से अलग होने और महाविकास अघाड़ी बनाने के लिए क्या किया, इस पर खुलासा, राजनीतिक हलकों में लहरें भेजीं. भाजपा ने नारायण राणे की स्वाभिमान पार्टी का उसमें विलय कर शिवसेना के जख्मों पर नमक छिड़का. शिवसेना, राणे को देशद्रोही के तौर पर देखती है.''
उन्होंने बताया, "भाजपा ने शिवसेना के खिलाफ लगभग 50 निर्वाचन क्षेत्रों में विद्रोही उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और उनका समर्थन किया. यह सत्ता पर निर्विवाद दावा करने के लिए उनकी संख्या कम करके सेना को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास था." वह कहते हैं कि शिवसेना और बीजेपी के बीच दरार चौड़ी हो रही थी और यह हमारे लिए एक सकारात्मक संकेत था.
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