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गलवान के बाद रिश्ते स्थिर, लेकिन चुनौतियां बरकरार...चीन संग रिश्तों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर

गलवान के बाद भारत और चीन के रिश्तों में तनाव चरम पर था लेकिन पिछले दिनों ट्रंप के टैरिफ की मार के बीच दोनों देशों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ है. विदेश मंत्री ने चीन संग भारत के रिश्तों पर क्या कुछ कहा, जानिए

गलवान के बाद रिश्ते स्थिर, लेकिन चुनौतियां बरकरार...चीन संग रिश्तों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर
  • विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एचटी लीडरशिप समिट में भारत-चीन के रिश्तों पर की बात
  • विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा विवाद के अलावा ट्रेड, निवेश और सब्सिडी जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं
  • कोविड के बाद बंद हुई डायरेक्ट एयर कनेक्टिविटी हाल ही में फिर से शुरू की गई है
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नई दिल्ली:

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आज एचटी लीडरशिप समिट में शिरकत की. जहां उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. समिट में एनडीटीवी के CEO और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल के साथ विदेश मंत्री ने चीन के साथ संबंंधों पर खुलकर बात की. विदेश मंत्री ने कहा कि अक्टूबर 2024 में कज़ान में पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से सीमा पर हालात स्थिर हैं और पेट्रोलिंग पैटर्न जारी है. जयशंकर ने कहा, “सीमा पर शांति जरूरी है ताकि आपसी रिश्ते मजबूत हो सकें पिछले एक साल में स्थिति स्थिर रही है.”

सीमा ही नहीं ट्रेड, निवेश के मुद्दे भी अहम

विदेश मंत्री एस जयशंकर यह भी स्वीकार किया कि चीन के साथ रिश्तों में सिर्फ सीमा विवाद ही नहीं, बल्कि ट्रेड, निवेश और सब्सिडी जैसे मुद्दे भी अहम हैं. विदेश मंत्री ने बताया कि कोविड के बाद डायरेक्ट एयर कनेक्शन बंद था और गलवान के बाद इसे फिर शुरू नहीं किया गया था. हाल ही में हमने एयर कनेक्टिविटी को फिर से शुरू किया है. जयशंकर के मुताबिक, भारत और चीन के बीच रिश्तों को सामान्य करने के लिए कई स्तरों पर बातचीत जारी है, लेकिन इसके बावजूद भी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं.

ड्रैगन भी चाहता है हाथी के साथ डांस करना

आपको बता दें कि दुनियाभर के कई देशों ट्रंप के टैरिफ की मार झेल रहे हैं तब चीन भी भारत के साथ रिश्तों में बेहतरी के अवसर तलाश रहा है. इसी का नतीजा है कि दोनों देशों के बीच कुछ महीने पहले ही सीधी फ्लाइट्स फिर से शुरू हुई है. वहीं जब ट्रंप बेलगाम होकर ट्रैरिफ थोपे जा रहे थे तब चीन ने कहा था कि ड्रैगन यानी चीन और एलिफेंट मतलब भारत को एक साथ डांस करना चाहिए. जिसका अर्थ था कि भारत और चीन एक साथ बेहतर संबंध बनाकर ट्रंप के टैरिफ से निपट सकते हैं.

अमेरिका के साथ 80-90 के दशक सिर्फ आर्थिक रिश्‍ते बढ़े

एस. जयशंकर ने बताया, 'अमेरिका के साथ 80-90 के दशक और सन 2000 के आसपास हमारा आर्थिक रिश्ता बढ़ा, लेकिन रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में ऐसा नहीं हुआ, जबतक कि न्यूक्लियर डील नहीं हुई. हमारी कई यूरोपीय देशों के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं. लेकिन वो चीन को प्राइमरी पार्टनर मानते हैं. आर्थिक रिश्ते उतने पूरे नहीं दिखते हैं. वहीं, हम भारत और रूस के रिश्‍तों को देखें, तो रक्षा सहयोग भारत और रूस के बीच अहम कड़ी रहा है.

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