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भारत के सपोर्ट में आगे आया चीन, अमेरिका को दिया मुंहतोड़ जवाब

निशांत मिश्रा
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 25, 2025 11:24 am IST
    • Published On अगस्त 25, 2025 10:39 am IST
    • Last Updated On अगस्त 25, 2025 11:24 am IST
भारत के सपोर्ट में आगे आया चीन, अमेरिका को दिया मुंहतोड़ जवाब

भारत, चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापारिक और कूटनीतिक तनाव जगजाहिर है. इसी बीच चीन के राजदूत शू फेहॉन्ग ने भारत पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ का विरोध किया और दोनों देशों को एक-दूसरे का साझेदार बनने की वकालत की. अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल और हथियार खरीदने के कारण 50% तक टैरिफ लगा दिया, जिसे चीन ने ‘दबंगई' करार दिया. इस बीच, भारत और चीन, 2020 की गलवान झड़प के बाद तनाव के बावजूद, अपने रिश्तों को बेहतर करने की ओर बढ़ रहे हैं. शू ने भारत-चीन को एशिया का ‘डबल इंजन' बताया और पीएम मोदी की आगामी चीन यात्रा को रिश्तों में नई जान फूंकने वाला कदम करार दिया.

भारत पर ट्रंप टैरिफ का विवाद

बात शुरू होती है साल 2025 के अगस्त महीने से, जब विश्व मंच पर देशों के बीच व्यापार और कूटनीति का खेल अपने चरम पर था. अमेरिका, जो लंबे समय से वैश्विक व्यापार का ‘बड़ा भाई' माना जाता था, अब भारत जैसे उभरते देशों पर टैरिफ की तलवार लटका रहा था. पहले 25% टैरिफ, फिर और 25% की धमकी! वजह? भारत का रूस से सस्ता तेल और हथियार खरीदना, जिसे अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद मान लिया. लेकिन भारत का तर्क साफ था कि वो अपने करोड़ों गरीब नागरिकों को महंगाई से बचाने के लिए सस्ता तेल खरीद रहा था. भारत ने यह भी याद दिलाया कि बाइडन प्रशासन ने ही उसे वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर करने के लिए रूस से तेल लेने को कहा था. फिर यह नाराजगी क्यों?

इस बीच, दिल्ली के गलियारों में एक नई हलचल थी. वह हलचल थी चीन के साथ रिश्तों में गर्माहट की. साल 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प ने दोनों देशों के बीच ठंडी जंग छेड़ दी थी. सीमा पर तनाव अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था, लेकिन दोनों देश धीरे-धीरे पुराने जख्मों को भरने की कोशिश कर रहे थे और इस कहानी का नया मोड़ आया, जब चीन के राजदूत शू फेहॉन्ग ने एक बयान से सबका ध्यान खींच लिया.

'भारत-चीन एकता दुनिया के लिए जरूरी'

गुरुवार को दिल्ली में एक सभा में शू फेहॉन्ग ने खुलकर अमेरिका को ‘दबंग' करार दिया. साथ ही उन्होंने भारत और चीन को एशिया की आर्थिक तरक्की का ‘डबल इंजन' बताया. उनकी बातों का मतलब था कि दोनों देश मिलकर न सिर्फ अपने लोगों का भला करें, बल्कि पूरी दुनिया को एक नई दिशा दें. उन्होंने भारतीय कंपनियों को चीन में निवेश का न्योता दिया और उम्मीद जताई कि भारत भी चीनी कंपनियों को निष्पक्ष मौके देगा.

यह सब तब हो रहा था, जब कुछ ही दिन पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी दिल्ली आए थे. दो दिन के इस दौरे में उन्होंने कहा, “भारत और चीन को एक-दूसरे को खतरा नहीं, बल्कि साझेदार मानना चाहिए.” यह बयान उस तनाव को भुलाने की कोशिश थी, जो गलवान की घटना के बाद से दोनों देशों के बीच बना हुआ था. वांग यी की बातों ने जैसे शू फेहॉन्ग के बयान की नींव रखी. दोनों देशों के बीच व्यापार और कूटनीति की बर्फ पिघल रही थी, और यह साफ था कि चीन भारत के साथ एक नया अध्याय शुरू करना चाहता था.

लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था. गलवान की यादें अभी भी भारतीयों के जेहन में ताजा थीं. सीमा पर सैनिकों की तैनाती और तनाव की खबरें बार-बार सुर्खियां बनती थीं. फिर भी दोनों देशों ने धीरे-धीरे बातचीत शुरू की थी और अब, शू फेहॉन्ग का बयान इस बात का संकेत था कि चीन इस रिश्ते को और मजबूत करना चाहता था. उन्होंने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को केंद्र में रखकर वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बचाने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने की बात कही. यह एक ऐसा वादा था, जो सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं था, बल्कि विश्व मंच पर दोनों देशों की एकता का प्रतीक था.

7 साल बाद चीन यात्रा पर जाएंगे पीएम मोदी

अब शू फेहॉन्ग ने ऐलान किया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन जाएंगे. यह उनकी 7 साल बाद पहली चीन यात्रा होगी. तियानजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में मोदी हिस्सा लेंगे. इस दौरान उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी होगी. शू ने कहा, “यह यात्रा भारत-चीन रिश्तों में नई ऊर्जा भरेगी.” यह खबर जैसे दोनों देशों के बीच एक नई उम्मीद की किरण लेकर आई.

20 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शामिल होंगे, लेकिन सबकी नजर भारत और चीन के इस नए दोस्ताना अंदाज पर होगी. क्या यह मुलाकात गलवान के जख्मों को पूरी तरह भर देगी? क्या यह दोनों देशों को आर्थिक और कूटनीतिक मंच पर एक-दूसरे का मजबूत साथी बना देगी? ये सवाल हवा में तैर रहे थे, लेकिन शू के शब्दों ने एक बात साफ कर दी थी, चीन भारत के साथ एक नई शुरुआत चाहता था.

(निशान्त मिश्रा NDTV में पत्रकार हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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