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This Article is From Mar 04, 2012

एनजीओ पर प्रधानमंत्री के रूख का स्वागत किया संघ ने

नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सराहना करते हुए कहा है कि उन्होंने कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के विरूद्ध प्रदर्शन करने वालों के प्रति जो स्पष्ट और कड़ा रूख दिखाया है वह स्वागत योग्य है।

संघ ने आरोप लगाया है कि इस प्रदर्शन को हवा देने में चर्च के वरिष्ठ लोग ही नहीं बल्कि कार्डिनल और बिशप स्तर के लोग भी शामिल हैं।

आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइज़र के आज जारी अंक के संपाद्कीय में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री ने असामान्य रूप से कुडनकुलम प्रदर्शनकारियों के खिलाफ जो स्पष्ट और कड़ा रूख अपनाया है, हम उसका स्वागत करते हैं।’ इसमें आरोप लगाया गया है कि कुडनकुलम और उसके आसपास के क्षेत्र में व्याप्त गरीबी का फायदा उठा कर चर्च वहां बड़े पैमाने पर फल-फूल रहे हैं। उन्हें अब डर सता रहा है कि वहां परमाणु संयंत्र लग जाने से क्षेत्र के लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधरेगी और चर्च गरीबी का फायदा उठा कर लोगों को बहला-फुसला नहीं सकेंगे।

संपादकीय में कहा गया है कि केन्द्र ने इस बारे में जो कदम उठाया, वह देर से उठाया है लेकिन ‘देर आए दुरूस्त आए।’ इसमें कहा गया है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास इस बारे में ढेर सारी जानकारी थी, लेकिन वह लंबे समय तक उसे दबा कर बैठा रहा।

संपाद्कीय में इस बात पर आश्चर्य जताया गया है कि केवल 300 परिवार वाला छोटा सा कुडनकुलम इतने दिनों तक विरोध प्रदर्शन कैसे चलाए रख सकता था। इसमें आरोप लगाया गया है कि तमिलनाडु देश का सबसे अधिक विदेशी अनुदान पाने वाला राज्य है और वहां जिन गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को विदेशों से धन मिल रहा है उनमें से 75 फीसदी ईसाई संगठन हैं।

इसमें दावा किया गया ह कि धर्मान्तरण में लगे चर्च आसपास के गरीब लोगों को कुडनकुलम लाकर इतने महीनों से परमाणु संयंत्र के विरूद्ध आंदोलन चलवा रहे हैं।

संघ ने इस बात की भी सराहना की है कि अमेरिका और स्कैंडिनेवियाई देशों से धन प्राप्त करने वाले ऐसे एनजीओ’ज पर मनमोहन सिंह के इस ‘असमान्य’ रूख का प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी समर्थन किया है। इसमें कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने जब ऐसे एनजीओ पर शिकंजा कसना शुरू किया तो उन संगठनों ने सरकार पर ही हल्ला बोल दिया और उस पर ‘अलोकतंत्रिक, बदले की भावना और दमन’ आदि के आरोप लगाने लगे।

संघ ने कहा है कि इस परमाणु संयंत्र का निर्माण कार्य वषरें से जारी था और स्थानीय जनता ने उसका कभी विरोध नहीं किया। लेकिन जैसे ही इसके संचालन का समय पास आया, इन चर्च के लोगों ने वहां की जनता को बरगलाना शुरू कर दिया।

भारत में एनजीओ के कामकाज पर प्रभावकारी निगरानी की व्यवस्था नहीं होने की शिकायत करते हुए संघ ने कहा है कि ऐसा किए जाने की सख्त जरूरत है।

इसमें कहा गया है कि सामाजिक कार्य के नाम पर एनजीओ को विदेशों से बड़े पैमाने पर धन मिल रहा है। गृह मंत्रालय के हवाले से संपादकीय में कहा गया है कि 2010-11 में 233 एनजीओ ऐसे थे जिनमें से प्रत्येक को सौ करोड़ रूपए से अधिक की विदेशी सहायता मिली। उसने दावा किया है, ‘इसमें से अधिकतर एनजीओ चचरे से जुड़े हैं जो सामाजिक कार्य से कहीं अधिक धर्मान्तरण में संलग्न हैं।’

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