समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास करेंगे संघ प्रेरित संगठन: डॉ. मनमोहन वैद्य

आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य ने कहा कि सनातन धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है. सनातन सभ्यता एक आध्यात्मिक लोकतंत्र है. जो लोग सनातन को लेकर बयान देते हैं, उन्हें पहले इस शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए.

समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का प्रयास करेंगे संघ प्रेरित संगठन: डॉ. मनमोहन वैद्य

आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर

पुणे:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पुणे में 14 से 16 सितंबर तक तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक आयोजित की गई. आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ मनमोहन वैद्य और अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने तीन दिनों के इस बैठक के समापन पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े, इसके लिए संघ प्रेरित संगठन प्रयास करेंगे. बैठक में इस विषय पर चर्चा की गई है.

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के भाषण के साथ इस तीन दिन के बैठक का समापन हुआ. बैठक में 36 विभिन्न संगठनों के कुल 246 प्रतिनिधि मौजूद थे.

संघ की यात्रा के चार फेज हैं- डॉ मनमोहन वैद्य
डॉ मनमोहन वैद्य ने बताया कि इस बैठक के अंदर क्या चल रहा है, ये अंदर आए बगैर ही कई तरह की बातें हो रही थीं. संघ के कार्य का आरंभ हुए 97 साल हो गए हैं. इस संघ की यात्रा के चार फेज हैं. पहले फेज में हिंदू समाज संगठित हो सकता है, एक साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकता है, एक स्वर में एक मन से भारत की बात कह सकता है. समाज में इसका विश्वास करना जरूरी थी. इसलिए पहले 25 वर्ष सिर्फ संगठन पर बल था.

आरएसएस के 35-36 संगठन देश में काम कर रहे हैं
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद सेकेंड फेज की शुरुआत हुई. पहला काम तो चल ही रहा था, लेकिन शुरू से ही संपूर्ण समाज को राष्ट्रभाव से प्रेरित करना, ये कल्पना मन में थी. स्वंयसेवक हर क्षेत्र में राष्ट्रीय विचार को लेकर गए. ये संघ के कार्य के विस्तार का ही भाव था. अभी 35-36 संगठन देश में काम कर रहे हैं. ये सभी संगठन स्वतंत्र हैं. आज जो समन्वय बैठक हुई है, उसमें इन तमाम संगठनों के लोगों से भेंट मुलाकात हुई और सबने अपने-अपने विचार संघ से साझा किए.

आरएसएस के सह सरकार्यवाह ने बताया कि संघ का तीसरा फेज 1990 के बाद शुरू हुआ. इसका मुख्य स्वरूप था, समाज के बीच पहुंचना. इसका मकसद समाज के पिछड़े और वंचित वर्ग तक पहुंचना और उनके लिए काम करना था. इसके लिए संचार के सभी माध्यमों का इस्तेमाल किया गया, ताकि समाज के हर वर्ग तक पहुंचा जा सके. समन्वय बैठक के दौरान संघ के प्रेरणा से चलने वाले 35-36 संगठनों में महिलाओं की सहभागिता बढ़े, इसके लिए महिला समन्वय का काम हुआ है. अपने-अपने क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर बात हुई है.

डॉ मनमोहन वैद्य ने बताया कि महिलाओं के बीच व्यापक संपर्क, देश के विकास में महिलाओं की सहभागिता बढ़े इस पर बात हुई. इसके तहत 11 श्रेणी की महिलाओं से संपर्क करना तय किया गया है. इनमें खास तौर पर एनजीओ चलाने वाली, समाजिक और धार्मिक संस्था की प्रमुख, शिक्षा और प्रशासनिक सेवा में कार्यरत और मीडिया में सक्रिय जैसी महिलाओं से संपर्क करना तय किया गया है. इन महिलाओं के लिए अगस्त से लेकर जनवरी तक पूरे देश में 411 सम्मेलन होने हैं. अभी तक 12 प्रांतों में कुल 73 सम्मेलन हुए हैं. इन सभी सम्मेलन को बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. इन सम्मेलन में अभी तक 1 लाख 23 हजार महिलाएं शामिल हुई हैं.

RSS के अलग-अलग संगठन के होकर भी हमें एक होकर काम करना है- डॉ मनमोहन वैद्य
उन्होंने कहा कि जब ऐसे सम्मेलन होते हैं, तो ऐसे कई लोग भी इन सम्मेलन में हिस्सा लेने आते हैं, जिन्हें सीधे तौर पर संघ के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है. लेकिन जब वो ऐसे सम्मेलन में आते हैं तो उन्हें संघ के विचारों के बारे में पता चलता है. इन सम्मेलन में शामिल होने वाले संगठनों के बीच कोई स्पर्धा नहीं है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि हम सबको एक दूसरे का पूरक बनना है. सबने मिलकर अपने-अपने क्षेत्र में एक समृद्ध भारत का चित्र पेश करने को लेकर बात की है. इस समन्वय में ये भी बात हुई कि अलग-अलग संगठन के होकर भी हमें एक होकर काम करना है.

डॉ मनमोहन वैद्य ने कहा कि हमने इस पर भी बात की है कि देश के बारे में अच्छा सोचने वाले लोगों को संघ के साथ जोड़े बगैर भी अलग-अलग विषयों पर साथ कैसे ले सकते हैं. जैसे कि शिक्षा, पर्यावरण, स्वदेशी का विषय, ग्राम विकास का विषय और महिला का विषय है. इसके लिए योग्य मानसिकता को कैसे तैयार किया जाए, इस समन्वय में इस पर भी चर्चा हुई है.

उन्होंने बताया कि 2020 मार्च के बाद कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा, संघ के कार्य लगभग ठप हो गए थे. लेकिन 3 वर्षों में हमने संघ के कार्य को सबसे तेजी से आगे बढ़ाया है. जैसे कि 2020 में 38913 जगहों पर संघ की शाखाएं हुईं. जो अब 2023 में बढ़कर 42613 शाखाएं हुईं. यानी 9.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी. वहीं, रोज चलने वाली शाखा है, वो 2020 में 62491 थी, जो 2023 में 68651 हो गई है. इसमें भी करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वहीं, साप्ताहिक मिलन 2020 में 20300 थे, जो 2023 में 26877 हुई है. ये बढ़ोतरी 33 फीसदी है.

लाखों युवा आरएसएस से जुड़ना चाहते हैं
संघ की देश में कुल 68 हजार 651 दैनिक शाखाएं हैं और इनमें से 60 प्रतिशत विद्यार्थी शाखाएं हैं. चालीस वर्ष की आयु तक के स्वयंसेवकों की शाखाएं 30 प्रतिशत हैं, जबकि चालीस वर्ष से ऊपर के आयु के स्वयंसेवकों की शाखाएं 10 प्रतिशत हैं. संघ की आधिकारिक वेबसाइट पर जॉइन आरएसएस के माध्यम से प्रति वर्ष 1 से सवा लाख नए लोग जुड़ने की इच्छा जता रहे हैं. उनमें से अधिकतर 20 से 35 वर्ष तक की आयु के हैं.

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सनातन सिर्फ धर्म नहीं, एक सभ्यता है- वैद्य
वहीं सनातन संस्कृति को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सनातन धर्म का अर्थ रिलीजन नहीं है. सनातन सभ्यता एक आध्यात्मिक लोकतंत्र (स्पिरिचुअल डेमोक्रसी) है. जो लोग सनातन को लेकर वक्तव्य देते हैं, उन्हें पहले इस शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए. इंडिया और भारत नामों को लेकर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि देश का नाम भारत है, वो भारत ही रहना चाहिए. बल्कि प्राचीन काल से यही प्रचलित नाम है. भारत नाम सभ्यता का मूल है.