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रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे दिल्ली के सरकारी स्कूलों में करवा सकते हैं एडमिशन

पीठ ने कहा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि परिवार उस क्षेत्र के वास्तविक निवासी हैं, जहां बच्चे स्कूलों में प्रवेश चाहते हैं, इस न्यायालय द्वारा दो पिछली तिथियों पर कुछ जानकारी मांगी गई थी.

रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे दिल्ली के सरकारी स्कूलों में करवा सकते हैं एडमिशन
नई दिल्ली:

रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों के लिए दिल्ली के स्कूलों में  दाखिले की मांग वाली याचिका. सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी आदेश जारी करने से इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निपटारा किया, सुनवाई बंद की. सुप्रीम कोर्ट ने  कहा, जो छात्र दाखिले के लिए पात्र हैं, वे पहले दाखिले के लिए आवेदन कर सकते हैं. अगर सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है तो वे दिल्ली हाई कोर्ट जा सकते हैं. 

बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त कदम यह होगा कि वे पहले संबंधित सरकारी स्कूल में जाएं. अगर उन्हें  पात्र होने के बावजूद दाखिला नहीं मिलता है तो बच्चे दिल्ली हाईकोर्ट जा सकते हैं. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश पारित किया.

दरअसल दिल्ली नगर निगम और अन्य प्राधिकरणों को म्यांमार और रोहिंग्या शरणार्थियों के सभी बच्चों को उनके निवास के निकट के स्कूलों में दाखिला देने के निर्देश देने की मांग वाली एक जनहित याचिका का दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही निपटारा कर दिया था. साथ ही याचिकाकर्ता-संगठन को भारत सरकार के गृह मंत्रालय के समक्ष अपना पक्ष रखने की छूट दी थी, जिस पर शीघ्र निर्णय लिया जाना था.फिर याचिकाकर्ता संगठन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

पीठ ने कहा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि परिवार उस क्षेत्र के वास्तविक निवासी हैं, जहां बच्चे स्कूलों में प्रवेश चाहते हैं, इस न्यायालय द्वारा दो पिछली तिथियों पर कुछ जानकारी मांगी गई थी. हमारे 27.01.2025 के आदेश के अनुपालन में दायर नवीनतम हलफनामे में 18 बच्चों के संक्षिप्त विवरण का उल्लेख है जिन्हें स्कूलों में प्रवेश के लिए पात्र बताया गया है.

यह भी कहा गया है कि उनके कुछ भाई-बहन पहले से ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं. ऐसा होने पर, इन बच्चों के लिए उचित उपाय यह होगा कि वे उन सरकारी स्कूलों में आवेदन करें, जिनके लिए वे खुद को पात्र बता रहे हैं और प्रवेश से इनकार किए जाने की स्थिति में, यदि वे ऐसे प्रवेश के हकदार हैं, तो संबंधित बच्चे दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.

ऐसी स्थिति में, जब इस तरह के किसी उपाय की आवश्यकता हो, याचिकाकर्ता-संगठन ने बच्चों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की है

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