सांसद, विधायक या किसी भी चुनाव में अगर कोई जनप्रतिनिधि अपने खिलाफ आपराधिक केस की जानकारी छिपाता है, तो कोर्ट उसकी सदस्यता रद्द कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम फैसला दिया है।
जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा है कि चुनाव में नामांकन दाखिल करने में खुद पर चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाना उम्मीदवारों की एक करप्ट प्रैक्टिस जैसा ही है। यह उस वक्त और भी गंभीर हो जाता है, जब ये मामले संगीन और गंभीर अपराध और भ्रष्टाचार से जुड़े हों।
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाना वोटर को सही फैसला लेने से रोकने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु के एक पंचायत सदस्य की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया है। नामांकन में मामले की जानकारी छिपाने पर मद्रास हाइकोर्ट ने उसका चुनाव रद्द कर दिया था।
अब सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट कई ऐतिहासिक फैसले सुना चुका है, जिसमें भष्टाचार से जुड़े मामलों में दोषी करार दिए जाने से ही सदस्यता रद्द होने और नामांकन पत्र में कोई कॉलम खाली छोड़ना गलत जानकारी देना माने-जाने जैसे फैसले शामिल हैं।
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