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This Article is From May 01, 2016

'उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को मैंने चॉपर से कुछ ऐसा देखा'

'उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को मैंने चॉपर से कुछ ऐसा देखा'
देहरादून: देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से उड़ान भरने के कुछ मिनट के बाद बमुश्किल 15 किलोमीटर की दूरी पर हमारा एक इंजन वाला हेलीकॉप्टर एक सफेद सी पट्टी से गुजर रहा था। यह कोई बादल नहीं था, बल्कि धुआं था। हमें इसकी गंध महससू हो रही थी। यह किसी चीज के जलने की तीखी गंध थी, जो पूरे इलाके में फैली हुई थी।

कुछ पल पहले उत्तराखंड के चमोली जिले के पहाड़ और वहां की घाटियां बिल्कुल अदृश्य सी हो गईं। अब हम बिल्कुल घुप अंधेरे में उड़ान भर रहे थे और अब हमें सिर्फ हेलीकॉप्टर में लगे जीपीएस सिस्टम का ही सहारा था। नीचे टिहरी का इलाका था, जिसका सिर्फ अनुमान भर लगाया जा सकता था, क्योंकि हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

एक महिला आग से लड़ रही थी, ताकि उसका घर बच जाए
उन धुएं की सफेद पट्टियों के बीच हमें सिर्फ जगह-जगह लगी आग की लपटें दिखाई दे रही थीं। झाड़ियां जल रही थीं। एक महिला आग की छोटी लपटों को अपने घर की तरफ आने से रोकने के लिए जोखिम भरी कोशिश कर रही थी। यहां पहाड़ी की बगल में तमाम चीजें खाक हो चुकी थीं, इसलिए शायद यहां आग बुझ गई थी, क्योंकि जलने के लिए कुछ भी नहीं बचा था।

हमारे देहरादून वापस लौटने के कुछ घंटे बाद ही भारतीय वायुसेना के दो एडवांस्ड एमआई-17 चॉपर को भी वहां (जंगलों में) जाने में उन्हीं कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था। वायुसेना के ये चॉपर जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए वहां बाल्टियों से पानी का छिड़काव करने वाले थे, लेकिन उन्हें अस्थायी रूप से अपने अभियान को टालना पड़ा, क्योंकि वहां कुछ भी दिखना असंभव था। ये दोनों हेलीकॉप्टर आग बुझाने में मदद नहीं कर पाए। इस पहाड़ी राज्य के बहुत बड़े हिस्से के जंगलों में यह आग फैल चुकी है।

करीब 200 जगहों पर अब भी सुलगी है आग
केंद्र सरकार के मुताबिक 2,000 हेक्टेयर ज्यादा से वन संपदा जलकर खाक हो गई है। सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के मुताबिक अब भी करीब 200 जगहों पर आग सुलगी हुई है। हालांकि विभिन्न एजेंसियों के करीब 6,000 लोग आग बुझाने के काम में जुटे हुए हैं, लेकिन न तो वायुसेना, न ही एनडीआरएफ और न ही वन विभाग की कोशिशें इन सभी जगहों पर आग बुझाने में कामयाब होती दिख रही हैं।

हवा के कारण यह आग नए इलाकों में फैलती जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारों को कई सवालों के जवाब देने चाहिए। (हालांकि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण कोई राज्य सरकार नहीं है)

कई हफ्ते पहले जब यह साफ हो चुका था कि इस बार की भीषण गर्मी में बिल्कुल सूखा पड़ा हुआ है और बारिश के आसार नहीं हैं, तब वायुसेना को पहले से तैनात क्यों नहीं किया गया, क्योंकि ऐसी गर्मियों में वहां जंगलों में आग लगना हर साल की बात है।

इसरो से डाटा के लिए क्यों नहीं किया संपर्क?
किसी ने भी इसरो से डाटा के लिए संपर्क क्यों नहीं किया, जिनके सैटेलाइट के जरिए ऐसी आग के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है। अब जबकि आग बेकाबू हो चुकी है, ऐसे में अब डाटा के आधार पर कुछ भी करना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि धुएं ने सारी कोशिशें थाम दी हैं।

देश में इस तरह की आग बुझाने के लिए खास तौर पर प्रशिक्षित और साजो-सामान से लैस एक समर्पित अग्निशमन व्यवस्था क्यों नहीं है? और भारत में दुनिया के कई अन्य देशों की तरह अग्निशमन में खासतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले एयरक्राफ्ट्स सही तादाद में क्यों नहीं हैं। आज कई वजहों से- लकड़ी के माफिया से लेकर बेहद गर्म मौसम के कारण उत्तराखंड एक बेहद संकट से जूझ रहा है। देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक उत्तराखंड जो कि जंगलों और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए जाना जाता है, आज वहां सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है।
 

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