दो चचेरे भाई जिनकी उम्र क्रमश: 18 और छह साल हैं, पैरों के टेढ़ेपन और विकास अवरूद्ध होने की समस्या का सामना कर रहे हैं. वे दोनों ही अकेले इस समस्या से परेशान नहीं हैं क्योंकि उनके संयुक्त परिवार में कई बच्चे और बुजुर्ग भी जोड़ों के दर्द से ग्रस्त हैं. वे जानते हैं कि इन समस्याओं की जड़ में वह पानी है जो वे पी रहे हैं लेकिन कुछ कर नहीं सकते क्योंकि दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है. यह कहानी केवल सिंह परिवार की नहीं है बल्कि राजस्थान में स्थित भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर से करीब 80 किलोमीटर दूर सांभर ब्लॉक के देवपुरा और मूंदवाड़ा गांव के अन्य परिवारों की भी है. इनमें से अधिकतर निरक्षर हैं और झील के पानी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि उसने भूजल को दूषित कर दिया है जिसकी वजह से पेयजल में खारेपन और फ्लोराइड की अधिकता है.
इलाके में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) ग्राम चेतना केंद्र के प्रमुख ओम प्रकाश शर्मा के मुताबिक जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बसे इन दो गांवों में दिव्यांगता की दर प्रति एक हजार लोगों में से 10 है जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति एक हजार पर पांच है, इस प्रकार यह सामान्य औसत से दोगुना है.
उन्होंने कहा कि दिव्यांगता का सीधा संबंध इलाके में फ्लोराइड की उच्च मात्रा है और इसकी पुष्टि अध्ययनों में भी हुई है.
दिल्ली स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल में जोड़ प्रत्यारोपण और हड्डीरोग विभाग के निदेशक डॉ. अमन दुआ बताते हैं कि अगर पानी में फ्लोराइड की मात्रा एक मिलीग्राम प्रति एक लीटर से अधिक है तो हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘इससे हड्डियों में अंतर आने लगता है, जोड़ विकृत होने लगते हैं और इसका लक्षण खासतौर पर रीढ़ की हड्डियों में देखने को मिलता है जिससे नसों पर दबाव बढ़ सकता है और लंबे समय तक फ्लोराइड युक्त पानी का इस्तेमाल करने से पैर कमजोर हो जाते हैं.''
केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के मुताबिक जयपुर जिले के इन गांवों के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा चिंता का विषय है क्योंकि सांभर ब्लॉक के कुछ स्थानों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 16.4 मिली ग्राम प्रति लीटर तक मिली है जबकि अनुमान्य दर एक मिलीग्राम प्रति लीटर है. वहीं सांभर झील के पानी में यह दर 2.41 मिलीग्राम प्रति लीटर है.
देवापुरा गांव में निवास कर रहे सिंह परिवार की 18 वर्षीय ललिता ने बताया कि वह जब पांच साल की थी, तभी उनकी मां ने पाया कि मैं सीधी खड़ी नहीं हो पा रही हूं, इसके बाद ही पैरों में दिव्यांगता दिखाई देने लगी और आने वाले सालों में पैरों में विकृति स्पष्ट हो गई. ललिता ने बताया कि बोलने के दौरान भी लड़खड़ाहट आने लगी.
बोलने में भी मुश्किल का सामना कर रही ललिता ने बताया, ‘‘डॉक्टर तय नहीं कर पा रहे थे कि मुझे क्या हुआ है, लेकिन मेरी हड्डियों और मांसपेशियों में कुछ खामी थी.''
उनकी मां शांति देवी ने पेयजल के लिए इस्तेमाल हो रहे पंप की ओर इशारा करते हुए कहा कि शुरु में यहां से आने वाला पानी साफ दिखता है लेकिन जल्द ही बर्तन में नमक जमने लगता है.
उन्होंने बताया, ‘‘हमें यहां खारा पेयजल मिलता है, जिसकी वजह से शरीर के अलग-अलग हिस्सों में दर्द होता है. हमारे बच्चे अलग-अलग उम्र में दिव्यांग हो रहे हैं, कुछ छह महीने में, कुछ 12 महीने में और कुछ पांच साल में.''
उन्होंने बताया कि सरकार ने विभिन्न स्रोतों से पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू किया लेकिन वह पूरा नहीं हुआ और हमें भूजल पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है.
देवपुरा स्थित प्राथमिक स्कूल की प्रधानाचार्य साक्षी सिंह ने बताया कि स्कूल में 30 बच्चे पढ़ते हैं जिनमें से पांच से छह दिव्यांग हैं.
20 साल का सोनू व्हीलचेयर पर रहता है. उसका पूरा शरीर विकृति का शिकार है और उसके हाथ-पैर टेढ़े मेढ़े हैं.
उनके किसान पिता रमेश सिंह ने कहा, ‘‘हमें समझ नहीं आया कि क्या गड़बड़ हुई. विकृति धीरे-धीरे शुरू हुई और पूरे शरीर में फैल गई, हमने शहरों में डॉक्टरों को दिखाया और उन्होंने इसके लिए खारे पानी को जिम्मेदार ठहराया.”
एक फोटोग्राफर हरीश सिंह ने कहा कि पिछले दो दशकों में स्थिति और खराब हुई है. उनके दो बच्चे विकलांग हैं.
ये भी पढ़ें :
* दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल सहित तीन लोग ‘गो तस्करी' मामले में गिरफ्तार
* राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पैर छूने की कोशिश करने वाली राजस्थान की इंजीनियर सस्पेंड
* सचिन पायलट के 'एकल' अभियान ने राजस्थान में चुनावों से पहले कांग्रेस की चिंता बढ़ाई
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं