राजस्थान की स्वास्थ्य सेवाओं पर डॉक्टरों की हड़ताल के चलते भारी दबाव है. हड़ताल आज 16वें दिन भी जारी रही. निजी अस्पतालों और डायग्नोस्टिक लेबोरेट्रीज के बंद होने के कारण सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का बोझ काफी बढ़ गया है. मरीजों का कहना है कि भीड़ के कारण सरकारी अस्पताल में भर्ती नहीं हो पा रहे हैं. वहीं सरकारी अस्पताल भी अब केवल गंभीर हालत वाले मरीजों को ही भर्ती कर रहे हैं. मरीजों का कहना है कि साधारण एक्स-रे भी एक चुनौती बन गया है.
गर्भवती महिलाओं का कहना है कि वे इस स्थिति से चिंतित हैं. उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि अगर उन्हें प्रसव पीड़ा होती है तो कौन सा सरकारी अस्पताल उन्हें जल्दी भर्ती करेगा. कई लोग इलाज के लिए पड़ोसी राज्यों में चले गए हैं. सरकारी अस्पतालों के बाहर अफरातफरी का माहौल है, जहां गार्ड बड़ी भीड़ को संभाल रहे हैं.
50 साल के राशिद का शरीर आंशिक रूप से लकवाग्रस्त है, जो छुट्टी होने से पहले एक सरकारी अस्पताल के सामान्य वार्ड में भर्ती थे और न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाने के लिए उन्हें ओपीडी में भेजा गया था. डॉक्टर को दिखाने की बारी आई तो ओपीडी बंद हो गई. राशिद की पत्नी परवीन बानो ने कहा, "उनकी रक्त वाहिका फट गई हैं, वह लकवाग्रस्त हैं और बैठ या बात नहीं कर सकते हैं. डॉक्टर उनका इलाज नहीं कर रहे हैं. उन्हें इलाज करना चाहिए, लेकिन कोई उन्हें नहीं संभाल रहा है."
अपने सात साल के बेटे के टूटे हुए पैर का प्लास्टर कराने आए एक व्यक्ति ने कहा कि वे केवल पैर की पट्टी करवाने में कामयाब रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि डॉक्टर उन्हें कब देखेंगे. बेटे के पास बैठे ताराचंद ने कहा, "कोई डॉक्टर नहीं है. हमने ऑटोरिक्शा किराए पर लिया और यहां आ गए. अब अगर हमें इलाज नहीं मिला तो हम आगरा या किसी अन्य पड़ोसी शहर जाएंगे."
सरकार और चिकित्सा पेशेवरों के बीच स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक पर गतिरोध जारी है. हालांकि चुनावी वर्ष में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार इसे अच्छे परिणाम देने वाले बिल के रूप में देख रही है.
इस बिल में हर किसी के लिए स्वास्थ्य सेवा को सुलभ और पहुंच में बनाने का प्रयास किया गया है. इसमें हर कोई इलाज इलाज करवा सकेगा और डॉक्टरों को उन्हें देखना ही होगा, खासतौर पर आपातालकालीन मामलों में.
हालांकि प्राइवेट डॉक्टर सरकार के इस फैसले से खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि बिल में "इमरजेंसी" को परिभाषित नहीं किया गया है. डॉक्टरों ने बिल की अन्य खामियों के बारे में भी बताया है, जैसे कि एक व्यक्ति जिसे दिल का दौरा पड़ा है, उसका आर्थोपेडिक अस्पताल में इलाज कैसे किया जा सकता है. निजी डॉक्टर चाहते हैं कि अनिवार्य चिकित्सा देखभाल केवल बड़े और सभी मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों द्वारा ही की जाए.
अशोक गहलोत सरकार को डॉक्टरों के विरोध के कारण अन्य प्रमुख योजनाओं को लेकर भी जोखिम का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें चिरंजीवी बीमा योजना के तहत 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य कवर भी शामिल है. डॉक्टरों ने इससे बाहर निकलने की धमकी दी है.
एसएमएस अस्पताल के प्रवक्ता डॉ. देवेंद्र पारिख ने कहा कि सरकारी अस्पताल अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं. डॉ पारिख ने कहा, "सरकारी अस्पताल क्षमता के अनुसार काम करने की कोशिश कर रहे हैं. जब रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर थे, तो समस्याएं थीं, लेकिन हम इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं."
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