1782 से 1799 तक टीपू सुल्तान ने मैसूर पर शासन किया था
कर्नाटक में 18वीं शताब्दी के शासक टीपू सुल्तान की जयंती कार्यक्रम के विरोध प्रदर्शन के दौरान मंगलवार को एक व्यक्ति की मौत हो गई। पुलिस का कहना है कि बेंगलुरू से 250 किमो दूर कोडागू में एक दूसरे पर पत्थर फेंकने के दौरान इस आदमी की दीवार से गिरने पर मौत हो गई जिसे कथित तौर पर विश्व हिंदु परिषद का कार्यकर्ता बताया जा रहा है।
मंगलवार को हो रहे इस उत्सव का भाजपा ने बहिष्कार किया है और पार्टी के वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि वह इस कार्यक्रम से जुड़े सभी विरोधों का समर्थन करेगी। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि कुछ सांप्रदायिक तत्व इस कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं लेकिन कई लोग इसके समर्थन में भी हैं।
भाजपा के विरोध पर सीएम ने कहा कि उन्हें पार्टी के बहिष्कार का पहले से ही अंदाज़ा था। बीजेपी और आरएसएस के लोगों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं? मुख्यमंत्री का कहना है कि टीपू सुल्तान एक बेहद सुधारवादी और धर्मनिरपेक्ष राजा थे।
'असहिष्णु राजा थे टीपू सुल्तान'
1782 से 1799 तक टीपू सुल्तान ने मैसूर पर शासन किया था और आलोचकों द्वारा उन पर हिंदुओं के धर्मांतरण और ईसाइयों पर अत्याचार करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो उन्हें उस बहादुर की तरह देखते हैं जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े थे।
आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवी वी नागराज ने टीपू को इतिहास का सबसे असहिष्णु राजा करार देते हुए कहा है कि इस विरोध का कई लोग समर्थन कर रहे हैं। नागराज का आरोप है कि इतिहास में टीपू सुल्तान के दर्ज बयान और उनकी तलवार पर लिखा गया संदेश बताता है कि इसका इस्तेमाल काफिरों को मारने के लिए किया जाता था।
वहीं कांग्रेस का कहना है कि टीपू ऐसे शख्स थे जो सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने और नष्ट हो चुके मंदिरों के पुनर्निर्माण में काफी आगे रहे हैं। इतिहासविद् नरसिम्हा का कहना है कि टीपू सुल्तान अपने आत्म-सम्मान और राष्ट्रसेवा के लिए काफी जाने जाते थे।
हालांकि भाजपा विधायक अब्दुल अज़ीम अपनी पार्टी से अलग नज़रिया रखते हैं। उनका कहना है कि टीपू सुल्तान धर्म निरपेक्ष होने के साथ ही हिंदु और मुस्लमानों को बराबरी पर रखते थे। मस्जिदों के साथ ही मंदिरों का भी खासा ख्याल रखा जाता था।
वरिष्ठ अफसर ओम प्रकाश का कहना है कि वह प्रदर्शनकारियों पर पड़ने वाली पुलिस की लाठियों से बचकर भाग रहा था। विरोध के बावजूद कांग्रेस सरकार ने इस साल से मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के अपने फैसले को वापिस लेने से इंकार कर दिया है।
मंगलवार को हो रहे इस उत्सव का भाजपा ने बहिष्कार किया है और पार्टी के वैचारिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि वह इस कार्यक्रम से जुड़े सभी विरोधों का समर्थन करेगी। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि कुछ सांप्रदायिक तत्व इस कार्यक्रम का विरोध कर रहे हैं लेकिन कई लोग इसके समर्थन में भी हैं।
भाजपा के विरोध पर सीएम ने कहा कि उन्हें पार्टी के बहिष्कार का पहले से ही अंदाज़ा था। बीजेपी और आरएसएस के लोगों से और क्या उम्मीद कर सकते हैं? मुख्यमंत्री का कहना है कि टीपू सुल्तान एक बेहद सुधारवादी और धर्मनिरपेक्ष राजा थे।
'असहिष्णु राजा थे टीपू सुल्तान'
1782 से 1799 तक टीपू सुल्तान ने मैसूर पर शासन किया था और आलोचकों द्वारा उन पर हिंदुओं के धर्मांतरण और ईसाइयों पर अत्याचार करने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो उन्हें उस बहादुर की तरह देखते हैं जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े थे।
आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवी वी नागराज ने टीपू को इतिहास का सबसे असहिष्णु राजा करार देते हुए कहा है कि इस विरोध का कई लोग समर्थन कर रहे हैं। नागराज का आरोप है कि इतिहास में टीपू सुल्तान के दर्ज बयान और उनकी तलवार पर लिखा गया संदेश बताता है कि इसका इस्तेमाल काफिरों को मारने के लिए किया जाता था।
वहीं कांग्रेस का कहना है कि टीपू ऐसे शख्स थे जो सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने और नष्ट हो चुके मंदिरों के पुनर्निर्माण में काफी आगे रहे हैं। इतिहासविद् नरसिम्हा का कहना है कि टीपू सुल्तान अपने आत्म-सम्मान और राष्ट्रसेवा के लिए काफी जाने जाते थे।
हालांकि भाजपा विधायक अब्दुल अज़ीम अपनी पार्टी से अलग नज़रिया रखते हैं। उनका कहना है कि टीपू सुल्तान धर्म निरपेक्ष होने के साथ ही हिंदु और मुस्लमानों को बराबरी पर रखते थे। मस्जिदों के साथ ही मंदिरों का भी खासा ख्याल रखा जाता था।
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