बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर आठवीं पर सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं. तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम होंगे. इस बीच चुनावी रणनीतिकार और बिहार की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले प्रशांत किशोर ने कहा कि 2024 के चुनावों पर इसका प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि अगले कुछ महीनों में ये गठबंधन कैसे काम करता है. अगर ये अच्छे से काम करते हैं तो ताकत बढ़ेगी और यदि वे अच्छी तरह से सरकार नहीं चलाते तो इसका नुकसान होगा.
2015 और आज के महागठबंधन में जमीन आसमान का फर्क है. 2015 एक राजनीतिक और शासकीय दोनों तरीके से नया प्रयोग किया गया था. उस प्रयोग को जनता के बीच में लेकर गए थे. जनता ने उसके पक्ष में जनमत दिया था और फिर सरकार बनी थी. अभी ऐसी कोई बात नहीं है. 2020 में महागठबंधन ने जिस फॉर्मेशन में चुनाव लड़ा था उसे जनमत नहीं मिला. जनमत एनडीए को मिला था. अब ये एक नई फॉर्मेशन बना रहे है. ये उससे अलग है. 2015 में वो एक राजनीति माहौल और एक अलग प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा था. इसे बिहार से आगे देखा जा रहा था. 2015 तीन दलों का महागठबंधन था, ये 7 दलों का है. 2015 में महागठबंधन जनता से चुनकर आया था, अब ये ये जनता चुने के बाद एक सोच-विचार करके एक पॉलिटिकल अरेंजमेंट किया गया है. अगर लोगों की स्थिति ठीक होगी, तो ही कोई राजनीतिक गठबंधन टिक पाएगा, वरना वह नहीं टिक पाएगा.
प्रशांत किशोर ने कहा कि इसे अवसरवादी गठबंधन नहीं कह रहा है, बस तथ्य बता रहा हूं. नीतीश कुमार को पीएम के लिए खुद को पिच करते नहीं सुना है. अन्य विपक्षी नेताओं को भी ये कहते नहीं सुना है.मीडिया ये अनुमान लगा रहा है कि ये भी एक संभावना हो सकती है. पीएम बनना दूर की बात है, इस पद के लिए उम्मीदवार बनना भी पॉपुलैरिटी पर निर्भर करता है. अभी बहुत जल्दी होगा, थोड़ा समय दीजिए उसके बाद ही टिप्पणी कर सकते हैं. 2010 के नीतीश कुमार में और अब बहुत अंतर है. 2010 में उनके पास 117 विधायक थे, 2015 में 72 और अब बस 40 से अधिक हैं.जो लोग कहते हैं कि टेफ्लॉन कोटेड है, उन्हें जानना चाहिए कि आंकड़े ऐसा नहीं कहते. जेडीयू के साथ आगे किसी प्लान को लेकर प्रशांत किशोर ने कहा कि मैं आखिरी बार मार्च में नीतीश कुमार से मिला था, हम अलग रास्तों पर हैं. मैं नीतीश को शुभकामनाएं देता हूं.
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