सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना केस बंद कर दिया है. जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने माफी के मद्देनज़र अवमानना की कार्यवाही बंद की. साल 2009 में तहलका पत्रिका को दिए गए एक इंटरव्यू के बाद ये अवमानना केस शुरू हुआ था. दरअसल उस दौरान प्रशांत भूषण ने कहा था कि भारत के 16 पूर्व CJI भ्रष्ट हैं.
भूषण की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि वह पहले ही माफी मांग चुके हैं. मामले को आगे बढ़ाकर गंदे पानी में घुसने की क्या जरूरत है. इस मामले की शुरुआत 2009 में हुई थी और कोर्ट ने इस मामले में हरीश साल्वे को एमिकस क्यूरी किया था. यह मामला लंबे समय से निष्क्रिय पड़ा था. ये साल 2020 में पुनर्जीवित हुआ जब इसे भूषण के खिलाफ उनके कुछ ट्वीट्स पर 2020 में अवमानना के मामले के साथ जोड़ दिया गया था.
बीसीआई ने प्रशांत भूषण की निंदा की थी
वहीं इस महीने भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणी को लेकर अधिवक्ता प्रशांत भूषण की आलोचना की थी और कहा था कि किसी को भी उच्चतम न्यायालय एवं इसके न्यायाधीशों का 'उपहास' करने का अधिकार नहीं है. वकीलों को 'लक्ष्मण रेखा' नहीं लांघनी चाहिए. बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने एक प्रेस विज्ञप्ति में आरोप लगाया कि भूषण जैसे लोग 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं' और भारत विरोधी अभियान में शामिल हैं.
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दरअसल भूषण ने 10 अगस्त को इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए जकिया जाफरी और धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) जैसे मामलों में शीर्ष अदालत के हालिया फैसलों की आलोचना की थी. बीसीआई ने कहा, ‘‘अधिवक्ता ने इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए सारी हदें पार कर दीं.
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