सुप्रीम कोर्ट ने 'धार्मिक स्वरूप में बदलाव' के मुद्दे पर जैन समुदाय के दो वर्गों के बीच विवाद से संबंधित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 को एक ही धर्म के दो संप्रदायों के बीच विवाद में लागू नहीं किया जा सकता है. यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के उस धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है, जैसा 15 अगस्त, 1947 को था.
शीर्ष अदालत श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन के तपगच संप्रदाय से संबंधित मोहजीत समुदाय के अनुयायी शरद जावेरी और अन्य की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1991 के अधिनियम को लागू करने और स्वरूप में बदलाव को रोकने की मांग की गयी थी.
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में विवाद श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन समुदाय के तपगच संप्रदाय के दो धड़ों के बीच में था.
शीर्ष अदालत ने कहा, ''उपरोक्त विवाद का समाधान केवल अनुच्छेद 32 के तहत याचिका के बयानों और विपक्ष के जवाबी हलफनामों के आधार पर नहीं हो सकता.''
पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता जिन अधिकारों का दावा करते हैं, उनकी प्रकृति को साक्ष्य के आधार पर स्थापित करना होगा. जिन अधिकारों का दावा किया जाता है और अधिकारों के कथित उल्लंघन को भी सबूतों के आधार पर स्थापित करना होगा.''
शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 92 के तहत या इससे इतर भी एक मुकदमे के रूप में पर्याप्त उपाय उपलब्ध हैं.
पीठ ने कहा, “इस पृष्ठभूमि में, यह अदालत संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है. याचिकाकर्ताओं को कानून में उपलब्ध अन्य उपायों के साथ आगे बढ़ने की आजादी दी जाती है.''
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