कोविड के दौरान प्रवासी मजदूरों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए स्वतः संज्ञान का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही अहम टिप्पणी की है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के बावजूद लोग अभी भी भूख से मर रहे हैं. सरकारी दावों के बावजूद लोग भूख से मर रहे हैं. सरकार सुझाव दे कि प्रवासी मजदूरों को राशन और कार्ड दोनों कैसे समय पर मिले. ये चिंता का विषय है, जबकि कई बार कहा गया है कि देश में कोई भी नागरिक भूख से न मरे. केंद्र और राज्य सरकारों को नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए हरसंभव उपाय करना चाहिए और पीड़ित नागरिक राहत के लिए सरकार तक नहीं पहुंच पा रहा है तो सरकार को अपनी योजनाओं का फायदा पहुंचाने के लिए नागरिकों तक पहुंचना चाहिए. प्यासा कुएं के पास जाने में सक्षम ना हो तो कुआं ही प्यासे तक पहुंचे. सरकार इस विचार को हकीकत की जमीन पर उतारने के लिए उपाय करे. SC ने कहा कि सभी प्रवासी कामगारों को रियायती खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए राशन कार्ड दिए जाने चाहिए. इसे कैसे लागू किया जाए, इस पर कोर्ट ने केंद्र से सुझाव मांगा है. प्रवासी कामगारों की समस्या पर सुनवाई करते हुए जस्टिस MR शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने ये टिप्पणी की है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते हमारे देश में दो व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण हैं- किसान और प्रवासी मजदूर. प्रवासी मजदूर देश के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं, उन्हें कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
कोविड के दौरान प्रवासी मजदूरों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए स्वतः संज्ञान लेकर शुरू की गए मामले में जस्टिस शाह ने टिप्पणी की कि भारत में किसान और प्रवासी मजदूर ये दो वर्ग हैं, जो मदद के पात्र हैं. उनकी मदद में कुछ राज्य पिछड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कई राज्य आधे लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके हैं. वहीं ASG ऐश्वर्य भाटी ने जस्टिस शाह की बेंच को बताया कि हमने पंजीकरण के मामले में सभी कदम उठाए हैं. जस्टिस शाह ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अदालत को जानकारी दी गई थी कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बिना राशन कार्ड के हैं. भारत में कोई भी नागरिक भूख से नहीं मरना चाहिए. लेकिन नागरिक भूख से मर रहे हैं. गांवों में लोग अभी भी पेट पर कपड़ा बांधकर पानी पीकर भूख को मारने को मजबूर हैं.
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