तस्वीर सौजन्य - एसोसिएटेड प्रेस
मुंबई:
मुंबई की एक अदालत में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की उस याचिका पर सुनवाई होनी है जिसमें उन्होंने अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की अपील की है लेकिन इस बीच तीस्ता पर सीबीआई के लगाए आरोपों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि सीबीआई ने एफआईआर में तीस्ता की संस्था सबरंग कम्यूनिकेशन पर बिना इजाज़त फोर्ड फाउंडेशन से 1.5 करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया है। लेकिन एनडीटीवी के हाथ लगी सीबीआई की एफआईआर में विदेशी विनिमय कानून के उल्लंघन के अलावा तीस्ता की संस्था को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी बताया गया है।
एफआईआर में लिखा है "सबरंग कुछ इस तरह की गतिविधियों में लिप्त है जो भारत की आंतरिक सुरक्षा में रोड़ा पैदा करती है साथ ही सांप्रदायिक एकता के लिए भी हानिकारक है।" लेकिन इन्हीं आरोपों का विरोधाभास करते हुए एफआईआर में ये भी लिखा गया है कि संस्था का काम 'शांति से जनसभा आयोजित करना, वकीलों को दंड कानून का दुरुपयोग करने से रोकना, शांति कायम रखना और अलग अलग समुदायों से जुड़ी संवेदनशील रिपोर्टिंग में मीडिया का समर्थन करना है।'
ऐसे में ये साफ नहीं हो पा रहा है कि इस तरह की गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा या सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाली कैसे हो सकती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता को जमानत ना देने की अर्जी में सीबीआई ने अपना पक्ष रखते हुए यही कहा है कि सबरंग 'एक गहरी साजिश' का हिस्सा है जिसके लिए जरुरी है कि उन्हें 'हिरासत में लेकर अकेले में पूछताछ' की जाए। वहीं तीस्ता के वकीलों की दलील है कि इस तरह की मांग आर्थिक नहीं, आंतकवाद से जुड़े मामलों में की जाती है।
कई मानव अधिकार संगठन, राजनीतिक पार्टीयां और वकीलों ने सीतलवाड़ के खिलाफ सरकार के इस कड़े रवैये की आलोचना करते हुए कहा है कि ऐसी कार्यवाही करके पुराना हिसाब बराबर किया जा रहा है। बता दें की तीस्ता काफी समय से 2002 में हुए गुजरात दंगों के पीड़ितों के समर्थन में बात करती आ रही हैं।
गौरतलब है कि सीबीआई ने एफआईआर में तीस्ता की संस्था सबरंग कम्यूनिकेशन पर बिना इजाज़त फोर्ड फाउंडेशन से 1.5 करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया है। लेकिन एनडीटीवी के हाथ लगी सीबीआई की एफआईआर में विदेशी विनिमय कानून के उल्लंघन के अलावा तीस्ता की संस्था को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी बताया गया है।
एफआईआर में लिखा है "सबरंग कुछ इस तरह की गतिविधियों में लिप्त है जो भारत की आंतरिक सुरक्षा में रोड़ा पैदा करती है साथ ही सांप्रदायिक एकता के लिए भी हानिकारक है।" लेकिन इन्हीं आरोपों का विरोधाभास करते हुए एफआईआर में ये भी लिखा गया है कि संस्था का काम 'शांति से जनसभा आयोजित करना, वकीलों को दंड कानून का दुरुपयोग करने से रोकना, शांति कायम रखना और अलग अलग समुदायों से जुड़ी संवेदनशील रिपोर्टिंग में मीडिया का समर्थन करना है।'
ऐसे में ये साफ नहीं हो पा रहा है कि इस तरह की गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा या सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाली कैसे हो सकती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता को जमानत ना देने की अर्जी में सीबीआई ने अपना पक्ष रखते हुए यही कहा है कि सबरंग 'एक गहरी साजिश' का हिस्सा है जिसके लिए जरुरी है कि उन्हें 'हिरासत में लेकर अकेले में पूछताछ' की जाए। वहीं तीस्ता के वकीलों की दलील है कि इस तरह की मांग आर्थिक नहीं, आंतकवाद से जुड़े मामलों में की जाती है।
कई मानव अधिकार संगठन, राजनीतिक पार्टीयां और वकीलों ने सीतलवाड़ के खिलाफ सरकार के इस कड़े रवैये की आलोचना करते हुए कहा है कि ऐसी कार्यवाही करके पुराना हिसाब बराबर किया जा रहा है। बता दें की तीस्ता काफी समय से 2002 में हुए गुजरात दंगों के पीड़ितों के समर्थन में बात करती आ रही हैं।
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