मध्यप्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी में चल रहा था पास-फेल का खेल, जांच रिपोर्ट में खुली पोल

2011 में मध्यप्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी की शुरुआत जबलपुर में हुई. जिससे राज्य के सारे एमबीबीएस, डेंटल, नर्सिंग, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, पैरामेडिकल के कोर्स संचालित होते हैं.

भोपाल:

2011 में मध्यप्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी की शुरुआत जबलपुर में हुई. जिससे राज्य के सारे एमबीबीएस, डेंटल, नर्सिंग, आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, पैरामेडिकल के कोर्स संचालित होते हैं. पिछले साल एनडीटीवी ने बताया था कि यूनिवर्सिटी में कैसे फर्जीवाड़ा चल रहा है जिसके बाद कुलपति को इस्तीफा देना पड़ा था. हाईकोर्ट के आदेश पर जांच के लिये आयोग का गठन किया गया था. अब इस आयोग की रिपोर्ट आ गई है जो बताती है कि कैसे मध्यप्रदेश में व्यापम दाखिले के लिये हुआ लेकिन व्यापम पार्ट टू में दाखिले के बाद पास-फेल का खेल खेला गया है.

मध्यप्रदेश के सारे मेडिकल, डेंटल, नर्सिंग, पैरामेडिकल, आर्युवेद, होमियपैथी, यूनानी, योगा कॉलेजों का विश्वविद्यालय और गर्वनिंग बॉडी मध्यप्रदेश आर्युविज्ञान विश्वविद्यालय में फर्जी मार्कशीट घोटाला हुआ है. आयोग की जांच में सामने आया है कि प्रश्न पत्र बनाने से लेकर उत्तर पुस्तिका जांचने,रीवैल्यूएशन से लेकर मार्कशीट जारी करने में गंभीर अनियमितता हुई है. छात्रों के ना सिर्फ नंबरों में हेरफेर कर मार्कशीट जारी की गई है बल्कि कई ऐसे छात्रों को पास बताया गया जो परीक्षा में बैठे ही नहीं थे.

एनडीटीवी ने साल भर पहले इस घोटाले की परतें खोली थीं. जिस पर जस्टिस केके त्रिवेदी की जांच कमेटी ने अपनी मुहर लगा दी है. मज़ेदार ये है कि तत्कालीन कुलपति डॉ. टीएन दुबे, तत्कालीन एक्जाम कंट्रोलर डॉ वृंदा सक्सेना सहित जिस पूर्व कुलसचिव डॉ जे के गुप्ता में पहले विश्वविद्यालय ने जांच कमेटी बनाई थी वो खुद सवालों के घेरे में हैं.आयोग ने पाया कि कुलपति, कुलसचिव ने एग्जाम कंट्रोलर को 12 रोल नंबर लिखकर दिए और कहा कि इन्हें पास करना है. वीसी दुबे के ऊपर खुद की हैंड राइटिंग में रोल नंबर लिखकर देने के आरोप हैं. एमबीबीएस, बीडीएस और एमडीएस के 13 स्टूडेंट को स्पेशल री-वैल्यूएशन का फायदा देकर पास कर दिया गया, जबकि यूनिवर्सिटी के अध्यादेश में री-वैल्यूएशन का नियम ही नहीं है. ये सारे छात्र एनआरआई कोटे से थे.ये वो छात्र हैं, जो री-वैल्यूएशन में भी दो बार फेल हो गए थे. इन री-वैल्यूएशन की कॉपियों की जांच की गई तो इसमें ओवर राइटिंग मिली है.

278 छात्र ऐसे मिले हैं, जिनका नामांकन दूसरे नाम से हुआ और परीक्षा दूसरे छात्र ने दी थी. यानी एनरोलमेंट अलग नाम से और एग्जाम देने वाला अलग स्टूडेंट कोई और है. एक्जाम कंट्रोलर ने छुट्टी पर रहते हुए सरकारी ई-मेल के बजाय जी-मेल का उपयोग करके कॉलेजों में प्रैक्टिकल के नंबर दिए हैं. थ्योरी और प्रैक्टिकल में ग्रेस दिए गए हैं जबकि किसी विषय में ग्रेस का नियम नहीं है.

कमेटी का ये भी कहना है कि वर्तमान कुलसचिव डॉ. प्रभात बुधौलिया ने दस्तावेज उपलब्ध कराने में असहयोग किया, हालांकि कुलसचिव इसे गलत बता रहे हैं.जस्टिस त्रिवेदी जांच कमेटी ने सात बिंदुओं की अपनी सिफारिशें सरकार को दी हैं. पूरे मामले पर विश्वास सारंग, चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने कहा है कि हाईकोर्ट के जो दिशानिर्देश होंगे उसका पालन करेंगे जो बदलाव हुए हैं वो हमने ही किया है. हमने पूरी यूनिवर्सिटी के अमले को बदला था.

हालांकि मामले को कानून की दहलीज पर लाने में अहम रोल निभाने वाले लोग जांच रिपोर्ट और खासतौर पर अनुशंसा से खुश नहीं हैं. वकील अमिताभ गुप्ता ने कहा है कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद जो अनुशंसा की गई है उससे बड़ी निराशा हुई है इसमें कंपनी की संलिप्तता उसकी एनक्वायरी नहीं की गई इसमें आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की अनुशंसा होनी चाहिये. बहरहाल इन सबके बीच विश्वविद्यालय के छात्र हैं जो हाथों में आला लेकर इलाज का सपना संजोये हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के बीच लेटलतीफी से कहते हैं किस्मत पर ताला पड़ गया है

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