
दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्ते एक बड़ी परेशानी बन गए हैं, आए दिन बच्चे और महिलाएं इनका शिकार होती हैं. ऐसे मामलों को देखते हुए अब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक बड़ा आदेश जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद और नोएडा में मौजूद आवारा कुत्तों को जल्द से जल्द पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए. कोर्ट ने कहा कि आम लोगों की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है, इसमें भावनाओं को नहीं देखा जा सकता है. ऐसे में आइए आवारा कुत्तों से जुड़े कुछ फैक्ट आपको बताते हैं.

हर साल लाखों लोग होते हैं शिकार
पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों को देखें तो एक साल में आवारा कुत्तों के काटने के मामले लाखों में हैं. इसमें बताया गया है कि बच्चे इसका सबसे ज्यादा शिकार हुए हैं. साथ ही मौत के आंकड़े भी जारी किए गए हैं.
- जनवरी 2024 से लेकर दिसंबर 2024 तक कुत्ते के काटने के कुल 3717336 मामले सामने आए. यानी करीब 37 लाख से ज्यादा लोगों को कुत्तों ने काटा. पीआईबी के आंकड़ों के मुताबिक इसमें 2195122 मामले रूरल इलाकों से आए थे.
- इसी साल कुत्ते के काटने से 37 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, ज्यादातर मामले रेबीज के थे.
- मंत्रालय की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 519704 केस 15 साल से कम उम्र के बच्चों के थे, जिन्हें कुत्ते ने काट लिया था.
- ज्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्होंने कुत्ते के काटने के तुरंत बाद रेबीज की वैक्सीन ले ली. जिसकी वजह से उनकी जान बच गई.

किन राज्यों में कितने मामले?
देश के तमाम राज्यों में कुत्तों के काटने के मामले सामने आते हैं, जिनका आंकड़ा सरकार की तरफ से जारी किया जाता है. राजधानी दिल्ली में पिछले साल यानी 2024 में 25 हजार से ज्यादा डॉग बाइट के मामले सामने आए. वहीं महाराष्ट्र में 4 लाख 85 हजार से ज्यादा मामले सामने आए. तमिलनाडु में चार लाख 80 हजार, गुजरात में तीन लाख 92 हजार, कर्नाटक में तीन लाख 61 हजार, उत्तर प्रदेश में एक लाख 64 हजार, राजस्थान में एक लाख 40 हजार, बिहार में दो लाख 63 हजार, आंध्र प्रदेश में दो लाख 45 हजार और असम में एक लाख 66 हजार मामले सामने आए.
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सरकार की तरफ से उठाए जाते हैं ये कदम
भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से कुत्ते के काटने और रेबीज से जुड़े मामलों को देखा जाता है. इसके लिए राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) के तहत कई कदम उठाए जाते हैं. जिसमें रेबीज वैक्सीन के लिए राज्यों को बजट देना, एंटी रेबीज वैक्सीन हर कस्बे और गांव के सामुदायिक केंद्रों तक पहुंचाना, इसके लिए वर्कशॉप का आयोजन, एंटी रेबीज क्लीनिक बनाना, रेबीज मुक्त पहल की शुरुआत, ट्रेनिंग प्रोग्राम और रेबीज हेल्पलाइन जारी करने जैसे काम होते हैं.
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