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पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के बीच बंटवारे की डूरंड लाइन पर क्‍यों खूनी संग्राम

Pakistan Afghanistan Border: डूरंड लाइन पर भारत की भी नजर हमेशा बनी रहती है. भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए डूरंड रेखा के मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान होना जरूरी है. लेकिन डूरंड लाइन पर अफगानिस्‍तान और पाकिस्‍तान की सेना हमेशा आमने-सामने रहती है.

पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के बीच बंटवारे की डूरंड लाइन पर क्‍यों खूनी संग्राम
डूरंड लाइन की कहानी...
नई दिल्‍ली:

अफगानिस्‍तान में तालिबान ने जब सत्‍ता अपने हाथों में ली, तब पाकिस्‍तान की चिंताएं भी बढ़ गईं. वजह है पाकिस्तान और तालिबान के बीच खिंची डूरंड लाइन.  डूरंड लाइन लाइन लगभग 130 साल पहले अस्तित्‍व में आई थी. यहां इन दिनों पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान की ओर से तोपें गरज रही हैं. हाल ही में हुई गोलीबारी में 3 अफगान नागरिकों की मौत हो गई. दरअसल, तालिबान ने कभी डूरंड लाइन को मान्‍यता नहीं दी है. इसलिए सालों से पाकिस्‍तानी और तालिबान के बीच इस सीमा को लेकर विवाद रहा है. डूरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है, जो 1893 में खींची गई थी. यह लगभग 2600 किलोमीटर लंबी है और पश्तून जनजातीय क्षेत्र से होकर दक्षिण में बलोचिस्तान तक जाती है. किसने खींची थी ये रेखा और क्‍यों डूरंड लाइन बनी हुई है जंग का मैदान आइए आपको बताते हैं. 

क्‍यों खींची गई थी डूरंड लाइन 

ब्रिटिश सिविल सर्वेंट सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और उस समय के अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच डूरंड रेखा के रूप में 12 नवंबर, 1893 को समझौता हुआ था. यह लाइन उस समय भारत और अफगानिस्‍तान के बीच सीमा तय करने के लिए बनी थी. तब वर्तमान पाकिस्तान भी भारत में ही शामिल था. साथ ही उस समय पूर्व में रूस की विस्तारवाद की नीति से बचने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य ने अफगानिस्तान को एक बफर जोन के रूप में इस्तेमाल किया था. इस रेखा को खींचते समय स्थानीय जनजातियों और भौगोलिक परिस्थितियों को पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखा गया था, जिसके कारण यह विवाद का विषय बनी हुई है.

डूरंड लाइन क्यों बनी जंग का मैदान?

डूरंड लाइन का विवाद पाकिस्‍तान को विरासत में मिला है. भारत से जब अलग होकर पाकिस्‍तान अस्तित्‍व में आया, तब डूरंड बॉर्डर उसके हिस्‍से में आया था. अफगानिस्तान ने कभी भी इस रेखा को मान्यता नहीं दी है और इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता रहा है. दरअसल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा के नजदीक रहने वाले पश्तूनों का आरोप है कि इस बॉर्डर ने उनके घरों कों बांट दिया. भाई-भाई में बंटवारा कर दिया. वे 100 से भी ज्‍यादा सालों से उस इलाके में अपने परिवार और कबीले के साथ रहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने एक साजिश के तहत पश्तून बहुल इलाकों के बीच से यह लाइन खींची. इसका परिणाम यह हुआ है कि पश्तून दो देशों के बीच बंट गए. ऐसे में डूरंड लाइन पर पाकिस्‍तान सेना और अफगानिस्‍तान आमने-सामने रहता है.  

आतंकियों की शरणस्थली डूरंड लाइन

डूरंड रेखा के आसपास के इलाके में आतंकवादी गतिविधियां आम हैं. कई आतंकवादी संगठनों ने इस क्षेत्र को अपनी शरणस्थली बना रखा है. इस रेखा के जरिए अफीम की तस्करी होती है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती है. अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता में आने के बाद से डूरंड रेखा पर तनाव बढ़ गया है. तालिबान इस रेखा को अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन मानता है. पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान दोनों पक्ष अपनी-अपनी सीमाओं को लेकर दावा करते हैं. यहीं से तालिबान द्वारा समर्थित आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में हमले करते रहते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ जाता है. 

भारत के लिए महत्‍वपूर्ण डूरंड लाइन

डूरंड लाइन पर भारत की भी नजर हमेशा बनी रहती है. भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए डूरंड रेखा के मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान होना जरूरी है. लेकिन डूरंड लाइन पर अफगानिस्‍तान और पाकिस्‍तान की सेना हमेशा आमने-सामने रहती है. हाल ही में हुई झड़प के बीच कई सैनिकों के मारे जाने की खबर है. भारत और अफगानिस्‍तान के व्‍यापारिक संबंध भी रहे हैं. व्यापार मार्गों को सुरक्षित रखने और तस्करी को रोकने के लिए भी डूरंड लाइन पर शांति बनी रहना जरूरी है. 

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