- सेना का ऑपरेशन ऑल आउट- सर्दियों के मौसम में किश्तवाड़-डोडा में आतंकियों की घेराबंदी तेज.
- ड्रोन, थर्मल कैमरे और सेना समेत कई एजेंसियों के तालमेल से आतंकियों पर चौतरफा दबाव.
- स्थानीय समर्थन खत्म, ऊंचे इलाके में फंसे पाकिस्तानी आतंकी, सेना की निगरानी लगातार जारी.
कश्मीर में जब सर्दी अपने सबसे खतरनाक दौर में होती है, जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है और पहाड़ बर्फ की मोटी चादर ओढ़ लेते हैं, तब आमतौर पर ज़िंदगी थम सी जाती है. लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं. किश्तवाड़ और डोडा के दुर्गम जंगलों और ऊंची पहाड़ियों पर भारतीय सेना ने ऐसा अभियान छेड़ रखा है, जिसने आतंकियों की सर्दी में छिप जाने की रणनीति को पूरी तरह नाकाम कर दिया है. भारतीय सेना बीते सात दिनों से लगातार ‘ऑपरेशन ऑल आउट' चला रही है. यहां करीब 2000 आतंकियों के छिपे होने की खबर है. इस तलाशी अभियान में सेना के करीब दो हजार जवान लगाए गए हैं.
सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तानी आतंकवादी सर्दी के मौसम का इस्तेमाल अपने पक्ष में करते हैं. बर्फबारी, कोहरे और धुंध की वजह से कम दिखाई देने और बंद रास्तों को ढाल बना कर इन जंगलों में छिप जाते हैं. पर इस बार सेना ने अपनी रणनीति बदल दी है. ऊंचाई और बर्फ से ढके इलाकों में अस्थाई बेस, फॉरवर्ड पोस्ट और सर्विलांस पॉइंट बनाए गए हैं. ताकि आतंकी किसी भी सूरत में बच न सकें. सेना के जवान मानइस तापमान, तेज बर्फीली हवाओं और घने जंगलों के बीच लगातार पेट्रोलिंग कर रहे हैं. घाटियां हों या पहाड़ की रिजलाइन, हर इलाके में सेना की मौजूदगी बनी हुई है. सेना का मैसेज साफ है कि भले ही मौसम कठिन क्यों न हो, वो इसका फायदा उठाकर आतंकियों को इन जंगलों में नहीं छिपने देंगे.

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खुफिया इनपुट्स के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और डोडा के जंगलों में करीब दो हजार पाकिस्तानी आतंकियों के छिपे होने की आशंका है. ये आतंकी पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा बलों की सख्त कार्रवाई के चलते ऊंचे और निर्जन इलाकों में भागने को मजबूर हुए हैं. स्थानीय आबादी से कट चुके ये आतंकी अब न तो खुलकर मूव कर पा रहे हैं और न ही बड़े हमले की योजना बना पा रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि कुछ आतंकी डर और दबाव बनाकर गांव वालों से राशन और पनाह मांगने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब स्थानीय समर्थन लगभग खत्म हो चुका है. यही वजह है कि आतंकी और ज्यादा अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं.

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ईनामी जैश कमांडर और स्थानीय लोगों का साथ
किश्तवाड़ के ऊपरी इलाके में चलाए जा रहे अभियान में आतंकी संगठन जैश के कमांडर सैफुल्लाह और उनके करीब आदिल को भी ढूंढा जा रहा है. दोनों पर पांच पांच लाख का ईनाम घोषित है.जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों का कहना है कि ये देश के दुश्मन हैं उन्हें मार गिराया जाना चाहिए.
स्थानीय लोग कहते हैं, "चाहे गर्मी हो या सर्दी. पानी की किल्लत हो तो हमारी सहायता भारतीय सेना करती है. जिस वक्त यह फौज हमें आज्ञा देगी हम तैयार होंगे अपने देश के लिए. हमें जैसे ही कोई आतंकी दिखता है हम सेना को सूचना देते हैं."
कश्मीर के डॉक्टरों ने दिल्ली में ब्लास्ट किया, इस पर स्थानीय लोगों ने कहा, "उन लोगों पर हमें शर्म महसूस होती है. वो हमारे देश के दुश्मन हैं."
मल्टी-एजेंसी ऑपरेशन: एक साथ, एक मकसद
इस बार का ऑपरेशन सिर्फ सेना तक सीमित नहीं है. भारतीय सेना के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ, स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप, वन गार्ड्स और ग्राम रक्षा गार्ड्स, सभी एक सिंक्रोनाइज्ड रणनीति के तहत काम कर रहे हैं. इंटेलिजेंस को पहले कई स्तरों पर वेरिफाई किया जाता है, फिर जॉइंट योजना बनाई जाती है जिसके तहत तलाशी अभियान की शुरुआत होती है. इसका फायदा यह है कि रिस्पॉन्स टाइम बेहद कम हो गया है और आतंकियों को संभलने का मौका नहीं मिल रहा है.

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सेना की रणनीति साफ- घेरो, दबोचो, खत्म करो
इन सर्दियों में सेना की रणनीति दो हिस्से में काम कर रही है. पहला, पहचान किए गए आतंकी ठिकानों को खत्म करना. दूसरा, आतंकियों को ऊंचे और दुर्गम इलाकों तक सीमित रखना. घाटियों, कम ऊंचाई के इलाकों और ऊंची पहाड़ियों में एक साथ ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं ताकि कोई मूवमेंट कॉरिडोर न बचे. हर सर्च ऑपरेशन के बाद उस इलाके पर लगातार निगरानी रखी जा रही है. सेना इसे कहती है- पहले निगरानी (सर्विलांस), फिर त्वरित कार्रवाई (स्विफ्ट ऐक्शन), और वापस सख्त निगरानी (बैक टू सर्विलांस).
टेक्नोलॉजी बनी सबसे बड़ी ताकत
इस बार ऑपरेशन में तकनीक की भूमिका बेहद अहम है. सेना अपने अभियान में ड्रोन सर्विलांस, ग्राउंड सेंसर, सर्विलांस रडार और थर्मल इमेजिंग डिवाइस का तो इस्तेमाल कर ही रही है. रात के अंधेरे में या बर्फ से ढके इलाकों में हीट सिग्नेचर के जरिए भी हलचल पकड़ ली जाती है. ड्रोन से ऐसे इलाकों पर नजर रखी जा रही है जहां पैदल पहुंचना जानलेवा हो सकता है.

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विंटर वॉरफेयर में ट्रेंड जवान
इन ऑपरेशनों के लिए स्पेशल विंटर वॉरफेयर यूनिट्स तैनात किए गए हैं. यह यूनिट बर्फ में सर्वाइवल, स्नो नेविगेशन, एवलांच रिस्पॉन्स और हाई-एल्टीट्यूड कॉम्बैट में पूरी तरह प्रशिक्षित हैं. कठिन हालात में भी इनकी ऑपरेशनल क्षमता बनी रहती है. सेना भी समय और मौके के हिसाब से अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है. हर दिन के मौसम, इंटेलिजेंस के इनपुट्स और जमीनी हालात को देखते हुए प्लान बदले जा रहे हैं. जवानों के रोटेशन, पेट्रोलिंग ग्रिड और पोस्ट्स को लगातार एडजस्ट किया जा रहा है.

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गांव वाले भी बने सुरक्षा कवच
ग्राम सुरक्षा गार्ड्स इस ऑपरेशन की अहम कड़ी हैं. गांवों के आसपास संदिग्ध हलचल की जानकारी तुरंत सुरक्षा बलों तक पहुंचाई जा रही है. सेना की मौजूदगी से ग्रामीणों में भरोसा बढ़ा है और आतंकी नेटवर्क को स्थानीय मदद मिलना लगभग बंद हो गया है. किश्तवाड़ और डोडा की बर्फीली पहाड़ियों में सेना की बढ़ी मौजूदगी एक साफ संदेश देती है अब कोई मौसम, कोई इलाका, आतंकियों के लिए सुरक्षित नहीं है. भारतीय सेना चौकस है. हर घाटी, हर रिज और हर जंगल पर नजर है. ये ऑपरेशन सिर्फ सर्दियों का अभियान नहीं, बल्कि साल भर चलने वाली रणनीति का हिस्सा है, ताकि गर्मियों में भी आतंकियों को सांस लेने का मौका न मिले.
किश्तवाड़ से प्रदीप की रिपोर्ट
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