
चुनाव के पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार यानी फ्री बी बांटने के वादे करने वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने वाली याचिका के बाबत आज चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल किया. चुनाव आयोग ने फ्री बी बांटने को लेकर परिभाषा, दायरा और अन्य बातें तय करने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का स्वागत तो किया है लेकिन कई तर्कों के आधार पर खुद के इसमें शामिल होने की मजबूरी बताई है.
चुनाव आयोग ( Election Commission) ने मुफ्त चुनावी वादे के मामले पर विशेषज्ञ समिति बनाए जाने का समर्थन करते हुए कहा है कि अगर इस मामले पर विशेषज्ञ समिति बनाई जाती है तो उसे इसमे शामिल न किया जाए. EC का कहना है कि संवैधानिक निकाय होने के नाते समिति में उसका रहना निर्णय पर प्रभाव डाल सकता है.
आयोग ने कहा है कि फ्री सामान या फिर अवैध रूप से फ्री का सामान की कोई तय परिभाषा या पहचान नहीं है क्योंकि ये अस्पष्ट है. आयोग में कानूनी प्रकोष्ठ के निदेशक विजय कुमार पांडे की ओर से दायर इस 12 पेज के हलफनामे में कहा गया है कि देश काल और परिस्थिति के मुताबिक कोई चीज एक जरूरत है तो दूसरी ओर वही मुफ्त बांटने की श्रेणी में आ जाती है.
EC ने कहा कि प्राकृतिक आपदा में भोजन, पानी, आवास, इलाज बुनियादी जरूरत है लेकिन सामान्य समय में लालच या मुफ्तखोरी. EC का कहना है कि वर्तमान कानूनी ढांचे में मौजूद मुफ्त की योजनाओं के लिए कोई सटीक परिभाषा नहीं है. EC ने कहा हैं कि मुफ्त की योजना का समाज की स्थिति और प्रकृति, अर्थव्यवस्था, समय आदि के आधार पर अलग-अलग उसका प्रभाव हो सकता हैं.
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई गुरुवार को करेगा.
इससे पहले तीन अगस्त को सुप्रीम कोर्ट और सख्त हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने फ्री बी से निपटने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय बनाने की वकालत की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसमें केंद्र, विपक्षी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, नीति आयोग, RBI और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक इस निकाय में फ्री बी पाने वाले और इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों क्योंकि ये मुद्दा सीधे देश की इकानॉमी पर असर डालता है. सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर ऐसे विशेषज्ञ निकाय के लिए प्रपोजल मांगा था
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