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This Article is From Nov 25, 2023

रोड़े पर रोड़े, बदलती जा रही टाइम लाइन : उत्तराखंड में अब तक का टनल रेस्क्यू ऑपरेशन

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में अप्रत्याशित बाधाओं के चलते बचाव टीमों की सबसे अच्छी योजनाएं विफल हो गईं.

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रोड़े पर रोड़े, बदलती जा रही टाइम लाइन : उत्तराखंड में अब तक का टनल रेस्क्यू ऑपरेशन
दीवाली के दिन 12 नवंबर को सुरंग का एक हिस्सा धंसने के बाद से उसमें 41 मजदूर फंसे हुए हैं.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढहने से 41 मजदूरों के फंसने की घटना को शनिवार को 14 दिन हो गए हैं. घटना के दिन से ही बचाव अभियान शुरू हो गया था. यह अभियान जारी है और इस बीच कई बार आशा की किरणें देखी गईं, अधिकारियों ने नई-नई समय-सीमाएं बताईं. यहां तक कहा गया कि मजदूरों को सुरंग से निकालने में "बस कुछ ही घंटे बाकी" हैं.

हालांकि अप्रत्याशित रुकावटों के चलते यह साफ हो गया कि रेस्क्यू टीमों की सबसे अच्छी योजनाएं विफल हो गई हैं और फंसे हुए मजदूरों को बचाने के प्रयास अब रविवार को फिर से शुरू होंगे. अमेरिकी ड्रिलिंग मशीन में कई दिनों के बाद तीसरी खराबी आ गई है. उसे शुक्रवार को सुरंग से निकाला गया है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) ने शनिवार को कहा, "इस ऑपरेशन में लंबा समय लग सकता है."

उन्होंने कहा, "जब आप किसी पहाड़ पर काम कर रहे होते हैं, तो सब कुछ अप्रत्याशित होता है. हमने कभी कोई समय सीमा नहीं दी."

एनडीटीवी ने अब तक के बचाव अभियान की समय-सीमा पर एक नजर डाली. ऐसे कई मौके आए जब ऐसा लगा कि बाधाओं के बावजूद आखिरकार जल्द सुरंग खुल सकती है.

12 नवंबर : प्राकृतिक आपदा

दिवाली के दिन बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे हिंदू तीर्थ स्थलों तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा सिल्क्यारा-डंडलगांव सुरंग पर का एक हिस्सा सुबह करीब साढ़े पांच बजे भूस्खलन से ढह गया और सुरंग में काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए. 

जिला प्रशासन ने बचाव की कोशिशें शुरू कीं. फंसे हुए मजदूरों को पाइप के जरिए ऑक्सीजन और भोजन पहुंचाने की व्यवस्था की गई. यह सामान एयर कॉम्प्रेशन का उपयोग करके उन तक पहुंचाया जाने लगा.

राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, सीमा सड़क संगठन और राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड सहित कई एजेंसियां बचाव के प्रयास में जुट गईं.

13 नवंबर : शाम तक बचाव?

सुरंग में फंसे हुए मजदूरों से वॉकी-टॉकी के जरिए संपर्क स्थापित किया गया. उनके सुरक्षित होने की सूचना मिली. बताया गया कि मजदूर सुरंग के सिल्कयारा छोर से लगभग 55-60 मीटर की दूरी पर फंसे हुए हैं. कहा जाता है कि उनके पास चलने और सांस लेने के लिए लगभग 400 मीटर की जगह है.

अधिकारियों ने कहा कि उन्हें शाम तक मजदूरों को बचा लेने की उम्मीद है. घटनास्थल पर पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मलबा गिरना जारी है, जिससे बचाव कार्यों में देरी हो रही है.

14 नवंबर : फिर हुआ भूस्खलन 

सुरंग स्थल पर 800  और 900 मिलीमीटर व्यास के स्टील पाइप लाए गए.  इन पाइपों को मलबे के बीच से धकेलकर अंदर तक पहुंचाने की योजना बनी, ताकि मजदूर इनके बीच से रेंगकर बाहर निकल सकें. एक बरमा मशीन, जो हॉरिजोंटल ड्रिलिंग करती है, को मलबे के बीच पाइपों को ले जाने का रास्ता बनाने के लिए लाया गया.

उत्तरकाशी के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक रुहेला ने संवाददाताओं से कहा कि मजदूरों को 15 नवंबर तक निकाला जा सकता है. उन्होंने कहा, ''अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो फंसे हुए मजदूरों को बुधवार तक निकाल लिया जाएगा.''

ऑगर मशीन के लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार किया गया, लेकिन ताजा भूस्खलन से यह क्षतिग्रस्त हो गया. फंसे हुए श्रमिकों में से कुछ को मतली और सिरदर्द की शिकायत के बाद भोजन और पानी के साथ-साथ दवाएं भी दी गईं.

15 नवंबर : घटना स्थल पर विरोध प्रदर्शन

बरमा मशीन के लिए बनाए गए प्लेटफॉर्म को क्षतिग्रस्त होने के बाद तोड़ दिया गया. नए उपकरण, एक अधिक शक्तिशाली अमेरिकी बरमा की मांग की गई. यह नई दिल्ली से रवाना की गई है.

सुरंग के निर्माण में शामिल कई अन्य मजदूरों ने फंसे हुए मजदूरों को बाहर निकालने में देरी को लेकर बचाव स्थल पर विरोध प्रदर्शन किया.

16 नवंबर : "दो-तीन दिन और"

केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने घटनास्थल का दौरा किया और कहा कि बचाव अभियान पूरा होने में दो-तीन दिन और लग सकते हैं. सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री ने कहा कि बचाव कार्य जल्द ही पूरा किया जा सकता है, यहां तक कि 17 नवंबर तक भी, लेकिन सरकार अप्रत्याशित कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए लंबी समय सीमा तय कर रही है.

मंत्री ने यह भी कहा कि बचाव टीमों ने विदेशी विशेषज्ञों से बात की है, जिसमें वह फर्म भी शामिल है जिसने थाईलैंड की एक गुफा में फंसे 12 बच्चों और उनके फुटबॉल कोच को बचाने में मदद की थी. नॉर्वेजियन जियोटेक्निकल इंस्टीट्यूट से भी मदद ली गई है.

भारतीय वायु सेना के विमान द्वारा पहुंचाए गए अधिक शक्तिशाली अमेरिकी बरमा ने साइट पर काम शुरू किया.

17 नवंबर : तेज टूटने की आवाज

रात भर काम करते हुए मशीन ने दोपहर तक 57 मीटर के मलबे में करीब 24 मीटर तक ड्रिल किया.  छह-छह मीटर लंबाई के चार पाइप डाले गए. लेकिन दोपहर 2:45 बजे के आसपास काम रुक गया. अधिकारियों और सुरंग के अंदर काम कर रही टीम को "बड़े पैमाने पर टूटने की आवाज" सुनाई दी. एक और ऑगर मशीन इंदौर से एयरलिफ्ट की गई.

डॉक्टरों ने फंसे हुए मजदूरों के लिए व्यापक पुनर्वास की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि, डर है कि लंबे समय तक सुरंग में रहने से उन्हें मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की स्वास्थ्य सेवा की जररूत हो सकती है.

18 नवंबर : उच्च स्तरीय बैठक

बचाव अभियान सातवें दिन में प्रवेश कर गया, लेकिन ड्रिलिंग फिर से शुरू नहीं हुई क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि सुरंग के अंदर 1750-हार्स पावर अमेरिकी बरमा के कारण होने वाले कंपन से और अधिक मलबा गिर सकता है.

केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय बैठक की जिसमें बचाव के लिए पांच विकल्पों पर विचार किया गया. इनमें मजदूरों तक पहुंचने के लिए पहाड़ी की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग और किनारे से समानांतर ड्रिलिंग शामिल का विकल्प शामिल था.

एक नक्शा सामने आया जो सुरंग के निर्माण में शामिल कंपनी की ओर से कथित गंभीर चूक की ओर इशारा कर रहा था. एसओपी के अनुसार तीन किमी से अधिक लंबी सभी सुरंगों में आपदा की स्थिति में लोगों को बचाने के लिए भागने का रास्ता होना चाहिए. नक्शे से पता चला कि 4.5 किमी लंबी सिल्कयारा सुरंग के लिए भी ऐसे मार्ग की योजना बनाई गई थी, लेकिन वह बनाया नहीं गया.

मजदूरों के परिवारों के सदस्यों ने कहा कि पिछले ड्रिल बंद होने के बाद से वे चिंतित हैं. कुछ परिवारों के सदस्यों और निर्माण में शामिल अन्य श्रमिकों ने एनडीटीवी को बताया कि अगर भागने का रास्ता बनाया गया होता तो मजदूरों को बहुत पहले बचाया जा सकता था.

19 नवंबर : ढाई दिन और?

ड्रिलिंग बंद रही जबकि अधिकारी पहाड़ी की चोटी से छेद बनाकर मजदूरों तक पहुंचने के विकल्प पर काम कर रहे थे. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बचाव अभियान की समीक्षा की और कहा कि हॉरिजोंटल ड्रिलिंग करना सबसे अच्छा विकल्प प्रतीत होता है और ढाई दिनों के भीतर सफलता मिल सकती है.

20 नवंबर : गर्म भोजन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री धामी से फोन पर बातचीत की और बचाव कार्यों पर चर्चा की. पीएम ने इस बात पर जोर दिया कि फंसे हुए मजदूरों का मनोबल बनाए रखने की जरूरत है.

फंसे हुए मजदूरों के लिए कुछ अच्छी खबर यह आई कि बचावकर्मी मलबे के बीच छह इंच चौड़ी पाइपलाइन डालने में कामयाब हो गए. मजदूरों तक खिचड़ी को बोतलों में भरकर भेजा गया. उन्हें नौ दिनों में पहली बार गर्म भोजन मिल सका. हालांकि ड्रिलिंग के काम में बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई.

21 नवंबर : नजर आए मजदूर

मजदूरों को दस दिनों में पहली बार देखा गया. एक पाइप के माध्यम से डाले गए कैमरे ने उनके दृश्यों को कैद कर लिया. अधिकारियों ने उनसे बात की और उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें सुरक्षित बाहर लाया जाएगा. मजदूरों ने हाथ हिलाकर बताया कि वे ठीक हैं.

शाम को अतिरिक्त सचिव तकनीकी, सड़क एवं परिवहन महमूद अहमद ने कहा कि अगले कुछ घंटे महत्वपूर्ण हैं और अगर सब कुछ ठीक रहा तो 40 घंटों में कुछ 'अच्छी खबर' आ सकती है.

22 नवंबर : आशा का दिन

यह वह दिन था जब सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं कि रात तक मजदूरों को निकाल लिया जाएगा. एम्बुलेंस को स्टैंडबाय पर रखा गया और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में 41 बिस्तरों वाला एक विशेष वार्ड तैयार किया गया. कहा गया कि बचाव कर्मियों और मजदूरों के बीच केवल 12 मीटर की दूरी है.

रात में ड्रिल लोहे की जाली से टकराई, लेकिन अधिकारियों ने फिर भी कहा कि वे अगले दिन सुबह 8 बजे तक श्रमिकों को बाहर निकालना शुरू कर सकते हैं.

23 नवंबर : एक और रोड़ा

सुबह लोहे की जाली हटा दी गई और बचाव कार्य फिर से शुरू हो गया. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के महानिदेशक अतुल करवाल ने कहा कि अगर कोई अन्य बाधा नहीं आई तो रात तक श्रमिकों को बचा लिया जाएगा.

हालांकि, शाम को बरमा मशीन एक धातु के पाइप से टकराई. मशीन के ब्लेड की मरम्मत करने, जिस प्लेटफॉर्म पर मशीन चल रही थी उसे मजबूत करने और संचालन में बाधा बन रहे धातु के गार्डर और पाइप को हटाने में कई घंटे लग गए.

24 नवंबर : "दो और पाइप"

अधिकारियों ने 13वें दिन कहा कि केवल 10-12 मीटर की ड्रिलिंग बाकी है और दो और पाइप डालना है. यह मजदूरों तक पहुंचने के लिए पर्याप्त हो सकता है. उत्तराखंड के सचिव नीरज खैरवाल ने कहा कि जमीन भेदने वाले रडार विशेषज्ञों की एक टीम को बुलाया गया था, जिन्होंने कहा है कि अगले पांच मीटर तक कोई बड़ी धातु की बाधा नहीं होने की संभावना है.

यह पूछे जाने पर कि क्या टीमें शनिवार सुबह तक मजदूरों तक पहुंच सकती हैं, अतिरिक्त सचिव तकनीकी, सड़क और परिवहन महमूद अहमद ने कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो यह और भी जल्दी हो सकता है.

ड्रिलिंग शाम को फिर से शुरू हुई लेकिन इसके तुरंत बाद तब रुक गई जब बरमा मशीन का फिर किसी धातु की चीज से सामना हुआ.

एक अधिकारी ने कहा, "बरमा मशीन में फिर से कुछ दिक्कत आ गई है. फंसे हुए मजदूरों तक मैन्युअल तरीके से पहुंचने की कोशिश की जा रही है. हम मलबे का विश्लेषण कर रहे हैं और इसका पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं."

25 नवंबर : अब मैनुअल ड्रिलिंग

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि बरमा मशीन सुरंग के अंदर फंस गई है और इसे बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से एक विशेष उपकरण लाया जा रहा है.

उन्होंने कहा, "हम सभी संभावित विकल्प तलाश रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दैनिक आधार पर अपडेट ले रहे हैं. हमें उम्मीद है कि ऑपरेशन जल्द से जल्द पूरा हो जाएगा."

सुरंग के अंदर अब स्वचालित ड्रिलिंग नहीं होगी और रविवार को ऑगर मशीन बाहर निकालने के बाद ही मैन्युअल ड्रिलिंग शुरू होगी.

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