विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Sep 28, 2022

पीड़ित के साथ नाइंसाफी की भरपाई के लिए किसी बेगुनाह को शिकार नहीं बनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

भियोजन का मामला यह था कि वो होली के मौके पर अपनी करीब छह साल की भतीजी को डांस और गाने की परफॉर्मेंस दिखाने के बहाने ले गया और उसके बाद रेप कर उसकी हत्या कर दी. मामला उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती का है.

पीड़ित के साथ नाइंसाफी की भरपाई के लिए किसी बेगुनाह को शिकार नहीं बनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने छह साल की बच्ची से रेप और हत्या मामले में मौत के सजायाफ्ता दोषी को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुई नाइंसाफी की भरपाई के लिए अदालत किसी बेगुनाह को अन्याय का शिकार नहीं बना सकती. अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए छह साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी कर दिया.

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा दिए गए बयानों में गंभीर विरोधाभास है. ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने ये फैसला किया है. आदेश में यह भी कहा कि आरोपी इतना गरीब है कि वह निचली अदालत में भी अपनी पैरवी के लिए एक वकील करने का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था. अदालत में कई बार अनुरोध के बाद उसे एक वकील की सेवा प्रदान की गई थी.

पीठ ने मामले की जांच ठीक से नहीं करने के लिए अभियोजन पक्ष की भी आलोचना की. पीठ ने कहा कि हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह छह साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या का वीभत्स मामला है. अभियोजन पक्ष ने जांच ठीक से नहीं कर पीड़िता के परिवार के साथ नाइंसाफी की है. बिना किसी सबूत के अपीलकर्ता पर दोष तय किया गया. अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के साथ भी अन्याय किया है. अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए न्यायालय किसी को अन्याय का शिकार नहीं बना सकता.

दरअसल अभियोजन का मामला यह था कि वो होली के मौके पर अपनी करीब छह साल की भतीजी को डांस और गाने की परफॉर्मेंस दिखाने के बहाने ले गया और उसके बाद रेप कर उसकी हत्या कर दी. मामला उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती का है. सत्र अदालत  ने उसे आईपीसी की धारा-302 और 376 के तहत दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसकी अपील को खारिज करते हुए मौत की सजा की पुष्टि की थी. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. अदालत ने कहा कि आरोपी का शुरू से ही यह कहना था कि उसे एक शक्तिशाली व्यक्ति के इशारे पर फंसाया गया है, जिसकी पत्नी गांव की प्रधान है. रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इसमें कई विरोधाभास थे. शव को पहले पुलिस द्वारा देखना, शव को ले जाने वाले स्थल के साथ-साथ जांच के आयोजन के स्थान, तिथि और समय के बारे में विरोधाभास थे.

अदालत ने यह भी कहा कि विशेष रूप से इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में क्षेत्राधिकार वाली अदालत में एफआईआर (FIR) भेजने में पांच दिनों की देरी घातक थी. अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी की चिकित्सक से जांच कराने की भी परवाह नहीं की.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सलमान खान फायरिंग मामला : लॉरेंस बिश्नोई के भाई के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी
पीड़ित के साथ नाइंसाफी की भरपाई के लिए किसी बेगुनाह को शिकार नहीं बनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
रक्षा मंत्रालय के लिए बजट में 6,21,940 करोड़ रुपये का प्रावधान, राजनाथ सिंह ने जताया आभार
Next Article
रक्षा मंत्रालय के लिए बजट में 6,21,940 करोड़ रुपये का प्रावधान, राजनाथ सिंह ने जताया आभार
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;