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नीतीश कुमार के लिए कहीं भारी न पड़ जाए 'टोपी कांड', 2020 में JDU से कितने मुसलमान जीते थे

बिहार में कैसा है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और मुसलमानों का रिश्ता. क्या नीतीश कुमार के साथ हैं बिहार के मुसलमान?

नीतीश कुमार के लिए कहीं भारी न पड़ जाए 'टोपी कांड', 2020 में JDU से कितने मुसलमान जीते थे
  • नीतीश कुमार ने मदरसा बोर्ड की 100वीं वर्षगांठ कार्यक्रम में जमा खान को टोपी पहनाई थी, जिससे विवाद पैदा हुआ.
  • राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि नीतीश कुमार धार्मिक प्रतीकों को सम्मान नहीं करते हैं.
  • बिहार में मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 18 फीसद है. वो कई दलों को वोट करते हैं.
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नई दिल्ली:

विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक विवाद में फंसते हुए नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वो बिहार सरकार के मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते हुए नजर आ रहे हैं. उनके आलोचकों का कहना है कि नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनने से इनकार करते हुए जामा खान को वह टोपी पहना दी. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि नीतीश ने टोपी पहनने से इनकार नहीं किया था. उनका कहना है कि नीतीश कुमार पहले भी ऐसा करते रहे हैं, कई बार जब उन्हें कोई माला पहनाने की कोशिश करता है तो वो वही माला उसे ही पहना देते हैं. यह कार्यक्रम मदरसा बोर्ड के 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया था.टोपी पहनाने या न पहनाने का यह विवाद चुनाव में मुद्दा बन सकता है. 

नीतीश के इस वीडियो पर राजनीति भी शुरू हो गई है. आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि नीतीश कुमार पूरी तरह अचेत हैं. वो पहले कहते थे टोपी भी पहनना है और टीका भी लगाना है.जब वो सीतामढ़ी गए तो उन्होंने एक मंदिर में टीका लगाने से भी इनकार कर दिया. अब उन्होंने टोपी पहनने से मना कर दिया है. वो किसी भी धर्म का सम्मान नहीं कर रहे हैं. सार्वजनिक मंच पर नीतीश कुमार लगातार जैसा व्यवहार दिखा रहे हैं, वो दूसरों को असहज कर रहा है. उनका यह व्यवहार बताता है कि वो सही स्थिति में नहीं हैं.वो ना कोई निर्णय ले पा रहे हैं और ना ही वो प्रदेश के हित में कुछ कर पा रहे हैं. राजद नेता का यह बयान बताता है कि उनकी पार्टी इसे मुद्दा भी बना सकती है. 

बिहार की राजनीति में मुसलमान

बिहार की राजनीति में यह मुद्दा मुसलमानों को अपने पक्ष में करने वाला हो सकता है, जिनकी जनसंख्या बिहार की 10.4 करोड़ की आबादी में करीब 18 फीसदी है. बिहार में मुसलमान आम तौर पर तीन खेमों में बंटे हुए हैं. मुसलमानों का एक बड़ा खेमा राष्ट्रीय जनता दल को वोट करता है. इसे देखते हुए ही राजद को एमवाई की पार्टी कहा जाता है, इसमें एम का मतलब मुसलमान होता है. बाकी के मुसलमानों में से कुछ जनता दल यूनाइटेड और कुछ कांग्रेस को वोट करते रहे हैं.लेकिन 2020 के चुनाव से मुसलमान वोटों की एक और दावेदार सामने खड़ी हो गई थी. वह थी हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम. उस चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि उनके चार विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए थे. 

नीतीश कुमार बार-बार यह याद दिलाते रहते हैं कि उनके राज में बिहार में कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ. भागलपुर के दंगों के बाद अपनी सरकार के कामकाज को भी वो अपनी उपलब्धी बताते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में नीतीश कुमार को मुसलमानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. खासकर केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से लाए गए तीन तलाक बिल और वक्फ बिल को लेकर. इन बिलों का नीतीश कुमार की जदयू ने समर्थन किया था. इससे मुसलमान उनसे खुश नहीं हैं. मुसलमान नेताओं ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का विरोध तक कर दिया था. पार्टी के कई पदाधिकारियों ने इसके विरोध में अपने पदों से इस्तीफा तक दे दिया था. 

जेडीयू का कैसा है मुसलमानों से रिश्ता

साल 2020 के चुनाव में नीतीश की जेडीयू ने 11 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया था.लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं पाया था.इसलिए जब कैबिनेट में बनी तो उसमें कोई मुसलमान चेहरा नहीं था.लेकिन वीआईपी के मुकेश कुमार को कैबिनेट में शामिल किया गया था, जबकि वो चुनाव हार गए थे. जेडीयू ने मुसलमान को कैबिनेट में शामिल न होने को लेकर मुसलमान विधायक के न होने की बात कही थी, इस पर नीतीश कुमार के आलोचकों ने कहा था कि जब हारे हुए मुकेश कुमार को मंत्री बनाया जा सकता है तो किसी मुसलमान को क्यों नहीं.इसके बाद में बसपा के टिकट पर जीते जमा खान को जेडीयू में शामिल कराकर उन्हें मंत्री बनाया गया था. आज जिनसे टोपी नहीं पहनने का आरोप नीतीश कुमार पर लगा है, वो जमा खान ही हैं.साल 2020 का चुनाव पहला मौका था जब जेडीयू से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता था. इससे पहले 2005 के चुनाव में जेडीयू के टिकट पर चार मुस्लिम विधायक चुने गए थे. इसी तरह से 2010 के चुनाव में जेडीयू के टिकट पर सात मुसलमान जीते, 2015 के चुनाव में जेडीयू से टिकट पर पांच मुसलमान जीते थे.

साल 2020 के चुनाव में 19 मुसलमान विधायक चुने गए थे.इनमें राजद के आठ, एआईएमआईएम के पांच, कांग्रेस के चार, भाकपा (माले) और बसपा के एक-एक मुस्लिम विधायक शामिल थे. 

बिहार में मुस्लिम आबादी 

बिहार के सीमांचल के इलाके को मुस्लिम बहुल माना जाता है. इसमें चार जिले- कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज आते हैं. इसके अलावा राजधानी पटना और भागलपुर में भी मुस्लिम आबादी ठीक ठाक है. एआईएमआईएम ने जिन पांच सीटों पर 2020 के चुनाव में जीत दर्ज की थी, वो सभी सीमांचल के इलाकों में ही थीं. एक बार फिर जब बिहार चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तो बात यह हो रही है कि मुसलमानों के मन में क्या है. लेकिन मुसलमान पिछले कुछ सालों से राजनीतिक मसलों पर खुलकर कुछ बोलने से परहेज कर रहे हैं, लेकिन वोट जमकर देते हैं.इस हालात में नीतीश कुमार के लिए टोपी का यह विवाद परेशानी पैदा कर सकता है. 

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